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शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

अमर मरा करते नहीं - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

आज से ठीक दो साल पहले ब्लॉग जगत खास कर हिन्दी ब्लॉग जगत को एक कठोर आघात का सामना करना पड़ा जिस से कि उबरने की कोशिश अब भी हम सब कर रहे है !

मैं बात कर रहा हूँ ड़ा ॰ अमर कुमार के असमय निधन की ... आज ड़ा ॰ साहब की दूसरी पुण्यतिथि है !


अमर मरे नहीं, अमर मरा करते नहीं..
वो दिलों में रहते हैं, हमेशा हमेशा के लिए...
ब्लॉग बुलेटिन टीम और पूरे हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से दूसरी पुण्यतिथि पर स्व॰ ड़ा॰ अमर कुमार जी को सादर नमन और हार्दिक श्रद्धांजलि !!
सादर आपका 
 
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राजनितिक नफ़ा नुकशान के हिसाब से विवाद पैदा किया जा रहा है !!

पूरण खण्डेलवाल at शंखनाद
विश्व हिंदू परिषद और राम मंदिर जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े हुए संतो द्वारा उद्घोषित ८४ कोसी परिक्रमा को लेकर उतरप्रदेश सरकार और संतों के बीच टकराव की जो स्थति बन रही है वो निश्चय ही दुखद: और निराशाजनक है ! इस तरह से विवाद पैदा करके जहाँ एक और राजनितिक फायदे के लिए कदम उठाये जा रहें हैं वहीँ दूसरी तरफ लगातार उतरप्रदेश के साम्प्रदायिक सद्भाव को भी नुकशान पहुंचाया जा रहा है ! जिसका परिणाम कतई अच्छा मिलनें वाला नहीं है ! उतरप्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार अपनें गठन के बाद से ही उतरप्रदेश में साम्प्रदायिक सद्भाव को बनाए रखनें में नाकाम रही है और उस पर मुस्लिम तुस्टीकरण के आरोप लगातार लग... more »

माँ

* * *तेरे पलकों की छाँव तले* *जब मै अपने आँसू सुखाती हूँ .......* *माँ तब मै बहुत सुकून पाती हूँ ........* * * *तेरे ममतामयी आँचल तले* *कुछ देर जो सो जाती हूँ .....* *माँ तब मै बहुत सुकून पाती हूँ ......* * * *तू बहुत अच्छी तरह से जानती है माँ * *की मै, छोटी - छोटी बात पर * *बहुत जल्दी उदास हो जाती हूँ......* *बेचैन होकर तेरे सीने से लग जाती हूँ* *सच माँ, तब मै बहुत सुकून पाती हूँ ......* * * *इधर उधर की बातों से * *जब तू मुझको फुसलाती है .......* *छोटे - बड़े **उदाहरण** देकर जब तू * *मुझको समझाती है.......* *धीरे - धीरे , हौले - हौले * *जब बालों को सहलाती है* *माँ तब मै बहुत सुकून पाती हू... more »

इस कहानी को कौन रोकेगा?

Anu Singh Choudhary at मैं घुमन्तू
दो हफ्ते भी नहीं हुए इस बात को। आपको सुनाती हूं ये वाकया। मैं अलवर में थी, दो दिनों के एक फील्ड विज़िट के लिए। मैं फील्ड विज़िट के दौरान गांवों में किसी महिला के घर में, किसी महिला छात्रावास में या किसी महिला सहयोगी के घर पर रहना ज़्यादा पसंद करती हूं। वजहें कई हैं। शहर से आने-जाने में वक़्त बचता है और आप अपने काम और प्रोजेक्ट को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं - ये एक बात है। दूसरी बड़ी बात है कि आप किसी महिला के घर में और जगहों की अपेक्षा ख़ुद को ज़्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं। मेरी उम्र चौतीस साल है और मैं दो बच्चों की मां हूं। बाहर से निडर हूं और कहीं जाने में नहीं डरती। डरती हूं, ल... more »

मैं उससे कह रहा था

Vimalendu Dwivedi at उत्तम पुरुष
मैं उससे कह रहा था कि तुम्हें नींद न आती हो तो मेंरी नींद में सो जाओ और मैं तुम्हारे सपने में जागता रहूँगा । असल में यह एक ऐसा वक्त था जब बहुत भावुक हुआ जा सकता था उसके प्रेम में । और यही वक्त होता है जब खो देना पड़ता है किसी स्त्री को । यह बात तब समझ में आयी जब मुझ तक तुम्हारी गंध भी नहीं पहुँचती है और भावुक होने का समय भी बीत चुका है । एक दिन देखता हूँ कि सपने व्यतीत हो गये हैं मेरी नींद से । सपने न देखना जीवन के प्रति अपराध होता है कि हर सच पहले एक सपना होता है । यह सृष्टि ब्रह्मा का सपना रही होगी पहले पहल, और उसी दिन लिखा गया होगा पहला शब्द- प्रेम ! आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्... more »

राजनेताओं के पोस्टर देखकर ख़याल आता है

सच-सच बताना... अगर आपका सहमत हैं तो कहिये फिर

न राधा न रुक्मणी

lori ali at आवारगी
प्रिय सारंग, खुश रहो बारिश के बीच तुम यों मिल आये जैसे बहुत उदास दिनों के बीच कोईं मीठी सी याद. एकदम से भरे बाज़ार में पुराने दोस्त का मिल जाना, और कॉफ़ी की गरमागरम भांप की बीच से झांकता अतीत का एक टुकड़ा। सब कुछ कितना ख्वाब्नाक, कितना किताबी। हर मोड़ पर इंतज़ार करते तुम और मेरी न रुक पाने की हज़ार मजबूरियों के बावजूद हमेशा रुक जाने की तमन्ना। सारंग ! तुम्हारे हमेशा की तरह अपनी बोलती आँखों से मुझे देखना और मेरे चहरे पर तुम्हारी निगाहों की झल लगना. सब कुछ वही है, सब कुछ तुम्हारे पुकार लेने पर मेरा मुड़ कर देखना और मेरा "एक मिनट आयी !" कहने पर तुम्हारा लम्बी देर , म... more »

जो भी निकली, बहुत निकली

Rajeev Sharma at Do Took
जुबां से मैं न कह पाया, वो आंखें पढ़ नहीं पाया इशारों की भी अपनी इक अलग बेचारगी निकली।। मेरे बाजू में दम औ' हुनर की दुनिया कायल थी हुनर से कई गुना होशियार पर आवारगी निकली।। तसव्वुर में समंदर की रवां मौजों को पी जाती मैं समझा हौंसला अपना मगर वो तिश्नगी निकली।। जरा सी बात पे दरिया बहा देता था आंखों से मेरी मय्यत पे ना रोया ये कैसी बेबसी निकली।। जिसे सिखला रहा था प्यार के मैं अलिफ, बे, पे, ते मगर जाना तो वो इमरोज की अमृता निकली।। दवा तो बेअसर थी और हाकिम भी परेशां थे मुझे फिर भी बचा लाई मेरी मां की दुआ निकली।।

गधा सम्मेलन - 2013 के आयोजन की सूचना

ताऊ रामपुरिया at ताऊ डाट इन
जैसे दुनियां में शुरू से ही, एक ही जाति में दो वर्ग होने का फ़ैशन रहा है वैसे ही ब्लाग जगत तो क्या बल्कि कोई भी जीव समाज इससे कभी अछूता नही रहा. देखा जाये तो गधे और घोडे भी शायद एक ही प्रजाति के जीव हैं पर घोडों को अपने ऊपर विशेष गर्व है. घोडा कहलाना फ़ख्र की बात है और गधा कहलाना अपमान की, जबकि दोनों ही बिना सींग के हैं और दोनों ही लीद करते हैं. दोनों मे कुछ भी फ़र्क नही है. एक राज की बात आपको और बता देते हैं कि ये तथाकथित घोडे भी कभी गधे ही थे पर चालाकी, मौका परस्ती और चापलूसी से अपने आपको स्वयंभू घोडा घोषित कर लिया. इस वजह से जो भी मान सम्मान, पुरस्कार, सुविधाएं होती हैं व... more »

जानिये क्या व कैसे होता है डायबिटीज (मधुमेह) रोग.

अनियमित जीवनशैली व अधिक स्वाद की चाहत के बढते चलन से जो घातक रोग इस समय समूचे विश्व में तेजी से पैर पसार रहा है और जिसमें एशिया विश्व से आगे व भारत एशिया से भी आगे चल रहा है वह डायबिटीज रोग मानव शरीर में कैसे घर करता है यह जानकारी सिलसिलेवार तरीके से हमें दे रहे हैं जाने-माने चिकित्सक डा. पंकज अग्रवाल- डायबिटीज को समझने के लिये हमें शुगर को समझना होगा । यहाँ शुगर का मतलब है ग्लुकोज या शर्करा । यह हमारे शरीर के लिये कोई अवांछित पदार्थ नहीं है बल्कि यह हमारे शरीर का श्रेष्ठ ईंधन है । शरीर को अपने प्रत्येक कार्यकलाप के लिये आवश्यक उर्जा इसी शुगर जो ग्लुकोज रुप ... more »

जीवन हैं अनमोल रतन !

जीवन में हमेशा परिवर्तन होता ही रहता हैं |कभी हम उच्चतर शिखर पर होते हैं तो कभी विफलता के बिलकुल समीप |हमे अपने स्वप्नों की जिंदगी वाली सोंच कों हमेशा खुद पर हावी रखना हैं |हम अक्सर परिस्थितिजन्य सोंच एवं उनके दृश्यांकन में उलझे रहते हैं ,हमे बुरी दशाओं में भी अच्छी चीजों की कल्पना करने का साहस करना होंगा ,क्यूंकि हम मनुष्य हैं और अपनी खुद की दुनिया के निर्माता भी हैं |दस वर्ष की उम्र से ही हम अपने विचारों और कर्मो की वजह से भविष्य का निर्माण करने लगते हैं | वाराणसी में एक रिक्शा चालक के घर में जन्मे आई ए एस आफिसर श्री गोविन्द जायसवाल का लालन पालन अनेक विषमताओं ,गरीबी और सीमित... more »

स्व॰ ड़ा॰ अमर कुमार जी को सादर नमन

शिवम् मिश्रा at बुरा भला
*अमर मरे नहीं, अमर मरा करते नहीं..* *वो दिलों में रहते हैं, हमेशा हमेशा के लिए...* *पूरे ब्लॉग जगत की ओर से दूसरी पुण्यतिथि पर स्व॰ ड़ा॰ अमर कुमार जी को सादर नमन और हार्दिक श्रद्धांजलि !!*
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!! 

5 टिप्पणियाँ:

Sushil Bakliwal ने कहा…

डा. अमर कुमारजी को भावभीनी श्रद्धांजली । जन-जागरुकता के लिये मेरी पोस्ट जानिये क्या व कैसे होता है डायबिटीज (मधुमेह) रोग. के विस्तार प्रयास हेतु आभार सहित...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विनम्र श्रद्धांजलि, शाब्दिक स्मृतियों में अमर रहेंगे

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

विनम्र श्रद्धांजलि।

Archana Chaoji ने कहा…

लिंक तो देखा पा रही हूँ ,पर नेट स्लो होने से खोल नहीं पा रही ... अमर जी को पढ़ना सुखद लगता था , कमी कभी पूरी नहीं हो सकती उनकी ..हमारी यादो में हमेशा रहेंगे वे ... सादर नमन

अजय कुमार झा ने कहा…

लोग चले जाते हैं , यादें रह जाती हैं , यादें सिर्फ़ यादें । हम उन चंद खुशकिस्मतों में से हैं जिन्हें डॉ. साहब का परम स्नेह पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । शिवम भाई आपका आभार ।

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