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रविवार, 31 मार्च 2013

खोना मुझे मंजूर नहीं


मैं हूँ .... कहीं गायब नहीं ....
खोना मुझे मंजूर नहीं 
पाने की हर सम्भव कोशिशें हर पल !
मेरा वादा है 
मैं मरकर भी जिंदा रहूंगी 
लफ्ज़ लफ्ज़ लम्हों में 
तुम पुकारोगे 
उद्विग्न होगे 
दोराहे पर असमंजस की स्थिति में होगे 
तभी हल्की बयार तुम्हें छू जाएगी 
और फिर 
स्वगत तुम मुझसे बातें करना 
मैं तुम्हारे मन में प्रत्युत्तर बन अंकुरित होती रहूंगी 
तुम्हारे सर पर हाथ रख 
सारी उद्विग्न्ताएं ले लुंगी 
दोराहे से एक रास्ते पर ले चलूंगी 
.... 
मैंने जो जो चाहा 
यक़ीनन मैं तुम्हें दूंगी 
सच मानो - यह वादा एक सच है !!!

मृत्यु उपरान्त जीवन का दर्शन 
मैं बताऊँगी 
धरती - आकाश - पाताल के उलझे 
रहस्यात्मक धागे खोलकर रखूंगी 
ताकि तुम उन धागों से बुन सको एक नया इतिहास 
अतीत की सलाइयों पर .....


          रश्मि प्रभा 


जीवन के पाँच रहस्य | ज्ञान के मोती









हाँ फिर मिलूँगी 
तब तक 
जब तक महाकाव्य,महाग्रंथ न लिखा जाए 
कि रहस्य कुछ भी नहीं 
आँखों का,मन का भ्रम है 
जो तुमसे मिलता है 
वह अर्थहीन नहीं 
उसकी गालियाँ भी सीढ़ी है 
उस पर भी पाँव रखो 
ताकि तुम जान सको 
कि गाली सुनना अपमानजनक है . 
जो तुम्हें नहीं मिलता 
वह दुर्भाग्य नहीं सौभाग्य है 
तुम व्यर्थ अपनी हार समझ लेते हो . 
चेहरे पर 
मन पर पड़े उँगलियों के निशान 
सिर्फ तुम्हारा सत्य नहीं 
हर किसी का सत्य है 
मानने,नहीं मानने से 
सत्य बदला है कभी ?
नहीं न ....
तो सत्य के साथ रहो 
सलीब पर होकर भी 
तुम तुम ही रहोगे 
तुम्हारे सारे रक्त चूसकर भी 
कोई तुम्हें मार नहीं सकता 
हाँ .... उसकी मौत उसके ही अन्दर रोज होती है 
कथन,कृत्य के दोहरेपन को 
वह कितना भी संवारे 
न छवि बनती है 
न छवि बिगडती है ...
सब अपनी अपनी सोच है 
!!!!!!!!!!!!!!!!!!

                                         

          रश्मि प्रभा 

शनिवार, 30 मार्च 2013

क्योंकि सुरक्षित रहने मे ही समझदारी है - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

रिजर्व बैंक ने एक बार फिर से बेहतर सुरक्षित चेक सिस्टम सीटीएस को बैंकिंग प्रणाली में पूरी तरह से लागू करने के लिए समय सीमा को 31 जुलाई तक के लिए टाल दिया है। पहले यह समय सीमा 31 मार्च तय की गई थी। एक निवेशक के तौर पर आपके लिए इस नए चेक सिस्टम के बारे में जानना जरूरी है। अगर आप सीटीएस यानी चेक ट्रंकेशन सिस्टम वाले चेक का इस्तेमाल करते हैं तो आपका काम जल्दी भी होता है और यह आर्थिक लेनदेन की प्रक्रिया 100 फीसद सुरक्षित होती है। अब आपके चेक को क्लीयर होने के लिए एक बैंक से दूसरे बैंक नहीं जाना होगा।
सभी जरूरी जानकारियों समेत उसकी एक इलेक्ट्रॉनिक इमेज संबंधित पार्टी को भेज दी जाएगी। ये चेक ज्यादा सुरक्षित इसलिए होते हैं, क्योंकि नए चेक सिस्टम में बाएं हिस्से पर, अकाउंट नंबर वाले खाने से ठीक नीचे वॉयड पैन्टोग्राफ होता है, जिसको कॉपी कर पाना अथवा स्कैन कर फर्जी चेक बनाना असंभव है। साथ ही, जहां आप अमाउंट भरते हैं, वहां अब रुपये का सिंबल (प्रतीक) अंकित होगा। पूरे चेक पर बैंक का अदृश्य लोगों होगा, जो कॉपी करने की दशा में आसानी से पकड़ में आ जाएगा।
अब भी 75 से 80 फीसद लेनदेन चेक के जरिये ही होता है। चेक के फर्जी इस्तेमाल के कई मामले आने के बाद आरबीआइ इसे जरूरी बनाने जा रहा है।
सीटीएस के फायदे:
-सीटीएस चेक की क्लीयरिंग 24 घंटे में संभव।
-ऐसे चेक का फर्जी इस्तेमाल असंभव।
-चेक के गुम होने की संभावना नहीं।
-देश में किसी भी जगह किसी भी बैंक में क्लीय़रिंग की सुविधा।
-सभी बैंकों द्वारा मानक चेक सिस्टम को शुरू किया जाना।

उम्मीद है कि आप सब को अब तक अपने अपने बैंक से इस नई प्रणाली से जुड़ी चेकबुक मिल गई होगी ... पर अगर अब भी आप के पास नई चेकबुक नहीं है तो अपने बैंक से संपर्क कर इस सुविधा का लाभ उठाएँ और अपनी बैंकिंग प्रणाली को और सुरक्षित करें !

सादर आपका 

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परिभाषाएं...( ३)

रिश्ते वह विश्वास ! जो अदम्य है .. अगाध है ... अद्भुत है ... जो उस खिलखिलातेबच्चे में जिसे आसमान में उछालाहै , लोकने के लिए....!! वह लक्ष्मण रेखा जो तै करतीहै सीमाएं आचरण की ... व्यवहार की... और उनसे जुड़ेसही गलत की.... वह बोझ ..! जिसे कभी चाहकर.... कभी मजबूरी में ... सहना है खुशी.... और कड़वाहटओं के बीच...!! वह सौगातें ...! जो धरोहर सी.... महफूज़ रखते हैंकभी .. और कभी... कूड़े के ढेरपर छोड़ आतेहैं ....!!! नाज़ुक से ... कभी कांच से... रेशम के धागेसे कभी ... पर बला कीकूवत संजोये रहते हैं...!!!

{ २५७ } आशाओं के दीप जलाओ

गोपाल कृष्ण शुक्ल at पाँखुरी
आशाओं के दीप जलाओगे जब चहुँ ओर प्रकाश ही प्रकाश होगा। यदि टूट गये हों सपने तो क्या यदि छूट गये हों अपने तो क्या सबके सब चलते अपनी राहों पर उजियारी- मतवारी चाहों पर। पर राहों मे फ़ूल बिखराओगे जब चहुँ ओर सुगन्ध-सुवास होगा।।१।। मौसम भी तो बदले तेवर दिशाहीन हो उडते कलेवर रक्त गँध पूरित हवायें आती छाती को चीर-चीर कर जाती। पर बसन्त के गीत गुनगुनाओगे जब चहुँ ओर मन-मुदित मधुमास होगा।।२।। कल क्या होगा किसने देखा क्यों डाल रहे माथे पर तिरछी रेखा कामना ही सबको यहाँ छलती है वर्तिका वेदना की ही जलती है। पर प्रेम का संगीत बजाओगे जब चहुँ ओर प्रेम-हास-परिहास होगा।।३।। ......................... more »

मेरा परिचय

प्रवीण पाण्डेय at न दैन्यं न पलायनम्
आज से पहले अपना इतना विस्तृत परिचय किसी को नहीं दिया है। रश्मि प्रभाजी का आदेश आया तो सोच में पड़ गया, उन्हें कुछ कविताओं के साथ मेरा परिचय व चित्र चाहिये था। किसी भी लेखक को लग सकता है कि उनका लेखन ही उनकी अभिव्यक्ति है, वही उनका परिचय है। सच है भी क्योंकि लेखन में उतरी विचार प्रक्रिया व्यक्तित्व का ही तो अनुनाद होती है। जो शब्दों में बहता है वह लेखक के व्यक्तित्व से ही तो पिघल कर निकलता है। यद्यपि मैं लेखक होने का दम्भ नहीं भर सकता, पर प्रयास तो यही करता रहता हूँ कि जो कहूँ वह तथ्य से अधिक व्यक्तित्व का प्रक्षेपण हो। यदि व्यक्तित्व पूरा न उभरे तो कम से कम उसका आभास या सारांश तो ब... more »

मन

प्रतिभा सक्सेना at शिप्रा की लहरें
जान रही हूँ तुम्हें ,समझ रही हूँ , तुम वह नहीं जो दिखते हो! वह भी नहीं - ऊपर से जो लगते रूखे ,तीखे,खिन्न! चढ़ती-उतरती लहरों के आलोड़न , आवेग-आवेश के अथिर अंकन अंतर झाँकने नहीं देते ! * तने जाल हटते हैं जब, आघातों के वेगहीन होने पर , सारी उठा-पटक से परे, एक सरल-निर्मल सतह की ओझल खोह से झाँक जाता है, शान्त क्षणों में बिंबित दर्पण सा मन ! ऊपरी तहों में लिपटे भी , कितने समान हम ! *

राजस्थान के सूखे मेवे : केर, सांगरी, कुमटिया

Ratan singh shekhawat at ज्ञान दर्पण
राजस्थान में वर्षा की कमी व सिंचाई के साधनों की कमी की वजह से हरी सब्जियों की पहले बहुत कमी रहती थी वर्षा कालीन समय में जरुर लोग घरों में लोकी,पेठा आदि उगा लिया करते थे व ग्वार, मोठ की फली आदि खेतों में हो जाया करती थी पर वर्षा काल समाप्त होने के बाद सब्जियों की भयंकर किल्लत रहती थी| हालाँकि आज सिंचाई के साधनों व यातायात के साधन बढ़ने के चलते अब पूर्व जैसी परिस्थितियां नहीं है| पर पहले सब्जियों के मामले में राजस्थानी गृहणियों को बहुत कमी झेलनी पड़ती थी| प्रकृति ने राजस्थान में ऐसे कई पेड़ पौधे उगाकर राजस्थान वासियों की इस कमी को पूरा करने के लिए केर, सांगरी व कुमटिया आदि सूखे मेवों की ... more »

संभावना

देवेन्द्र पाण्डेय at बेचैन आत्मा
अटके हो किसी के आस में तो झरो! जैसे झरते हैं पत्ते पतझड़ में रूके हो किनारे साथी की तलाश में तो बहो! तेज धार वाली नदी में बिन माझी के नाव की तरह धऱती पर पड़े हो तो उड़ो! जैसे उड़ती है धूल बसंत में हाँ तुमसे भी कहता हूँ... वृक्ष हो तो नंगे हो जाओ! माझी हो तो संभालो अपनी पतवार! आँधी हो तो समझ जाओ! तुम उखाड़ नहीं पाओगे कभी भी किसी को समूल! जर्रे-जर्रे में होती है आग, पानी, हवा, मिट्टी या फिर.. आकाश बनने की संभावना। ................

घोटू के दोहे

Ravindra Prabhat at परिकल्पना
*(1)* नए नए हम सीरियल ,देखा करते नित्य । किसको फुर्सत है भला ,पढ़े नया सहित्य ॥ *(2)* ना तो मीठे बोल है,ना सुर है ना तान । चार दिनों तक गूंजते ,फिर खो जाते गान ॥ *(3)* वो गजलों का ज़माना,मन भावन संगीत । अब भी है मन में बसे ,वो प्यारे से गीत ॥ *(4)* साप्ताहिक था धर्मयुग ,या वो हिन्दुस्थान । गीत,लेख और कहानी,भर देते थे ज्ञान ॥ *(5)* कवि सम्मलेन रात भर,श्रोता सुनते मुग्ध । प्रहसन ,सस्ते लाफ्टर ,कर देते है क्षुब्ध ॥ *(6)* अंगरेजी का गार्डन ,फूल रहा है फ़ैल । एक बरस में एक दिन,बोते हिंदी बेल ॥ *(7)* छोटे छोटे दल बने,सब में है बिखराव । तो फिर कैसे आयेगा ,भारत में बदलाव ॥ ... more »

डर

स्याह सी खामोशियों के इस मीलों लंबे सफ़र में तन्हाइयों के अलावा .. साथ देने को दूर-दूर तक कोई भी नज़र नहीं आता . जी में आता है कि कहीं तो एक उम्मीद दिखे कोई तो हो हमक़दम जिसके हाथों को थाम के चलें. पर फिर वही डर...वही खटका मन का ... कि गर कोई मिल भी गया तो.................. बीच राह में वो छोड़ कर न जाए मुझे कुछ और खाली कुछ और अधूरा सा न कर जाए . उनका क्या हो जो लोग जन्मते ही हैं ...ज़िंदगी का सारा खालीपन और उदासी अपने में समेटने के लिए .

Bhimashankar Jyotirlinga Temple भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मन्दिर

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-05 SANDEEP PANWAR मन्दिर के पास वाली दुकानों से मावे की बनी मिठाई खरीदने के बाद हमने मन्दिर प्रांगण में प्रवेश किया। हमने पहले वहाँ एक परिक्रमा रुपी भ्रमण किया ताकि वहाँ के माहौल का जायजा लिया जा सके। उसके बाद वहाँ नहाने के लिये एक कुन्ड़ तलाश लिया। कुंड़ के सामने ही एक सामान बेचने वाली मराठी महिला बैठी हुई थी। पहले मैंने कुंड़ में घुस कर स्नान किया उसके बाद सामान के पास खड़ा होने की मेरी बारी थी तब तक विशाल भी कुंड़ में स्नान कर आया। लोगों ने अंधी श्रद्धा के चक्कर में स्नान करने के कुंड़ ... more »

फ़ेसबुकिया फ़ागुन

ताऊ टीवी चैनल से ताऊ जी से मिला होली का पिरसाद …..ग्रहण करिए पिछले कुछ सालों में होली के आसपास लकडी पानी बचाने का घनघोर नारा लगाने का रिवाज़ चल निकला है , तो इसका भी तोड है न म्हारे फ़ोडू के पास , देखिए हमारे सूरमाओं ने होली पे हो हल्ला मचा के रख दिया है ..झेलिए इस फ़ेसबुकिया फ़ागुन को ……………. DrKavita Vachaknavee रंगों से खेले लगभग 15 वर्ष हो गए.... और चाह कर भी खेलना संभव नहीं। यहाँ तो अभी कल व परसों भी हिमपात का दिन है। होली आप सब के जीवन में अनन्त खुशियों के रंग भरे। अपने मित्रों परिजनों के साथ आप सौ बरस और रंग खेलें और आप पर बीस-पचास रंग हर बरस डलते रहें ... :) रंग भरी... more »

लौटना गब्बर का फिर रामगढ़

गगन शर्मा, कुछ अलग सा at कुछ अलग सा
*वह तो हफ्ते दस दिन में मंदिर, गुरुद्वारे के लंगर से चार-पांच दिन का बटोर लाता हूँ तो ज़िंदा हूं, तुमसे तो वह भी नहीं होगा. हमारे विगत को जानते हुए कोइ हमारा स्मार्ट कार्ड या आधार कार्ड भी नहीं बनाएगा. तुमने जो किया है उससे बुढापे की पेंशन भी मिलने से रही। इसलिए पर्वों-त्योहारों खासकर होली को तो भूल ही जाओ जिसने हमारी यह गत बना दी थी* * *रामगढ़ की एतिहासिक लड़ाई के बाद सब कुछ मटियामेट हो चुका था. ना डाकुओं का दबदबा रहा, ना वो हुंकार, आदमी ही ना रहे तो गिनती क्या पूछनी. ले दे कर सिर्फ सांभा बचा था, वह भी चट्टान के ऊपर किसी तरह छिपा रह गया था, इसलिए। वर्षों बाद जेल काट तथा बुढापा ओ... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

शुक्रवार, 29 मार्च 2013

'खलनायक' को छोड़ो, असली नायक से मिलो - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम !

सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पहले 12 मार्च 1993 को मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाके में शामिल दोषियों को सजा देते हुए अपना अंतिम फैसला गुरुवार को सुना दिया। इस बम धमाके में 257 लोग मारे गए और सात सौ से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इन धमाकों में हताहतों की संख्या हजार के पार जा सकती थी अगर मुंबई पुलिस को जंजीर का साथ नहीं मिलता। यह वही जंजीर है जिसने धमाकों के दिन कई हजार किलो के आरडीएक्स व विस्फोटक बरामद ढूंढ निकाले थे।
जंजीर नाम का कुत्ता मुंबई पुलिस के मशहूर डॉग स्क्वायड का एक कुत्ता था जिसने अपनी सूझबूझ से उस दिन पूरे मुंबई तत्कालीन बंबई में 3329 किलोग्राम विस्फोटक आरडीएक्स, 600 डेटनेटर, 249 हैंड ग्रेनेंड्स और 6406 जिंदा युद्ध सामग्री को ढूंढ निकाला। अगर जंजीर ने ऐसा कारनामा नहीं किया होता तो देश की इस आर्थिक राजधानी में और कई धमाके होते और हजारों लोग मारे जाते। सुनहरे रंग का लैब्राडोर नाम का यह
कुत्ता अपनी बहादुरी से हर किसी को अपना दीवाना बना लिया था। मुंबई पुलिस का वह सबसे लाडला डॉग बन गया। हालांकि आज वह इस दुनिया में नहीं है। 
17 नवंबर 2000 को बोन कैंसर के कारण जंजीर की मौत हो गई थी। मुंबई पुलिस ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ हजारों की जान बचाने वाले इस हीरो का अंतिम संस्कार कर दिया। जब उसका अंतिम संस्कार किया जा रहा है उस दौरान मुंबई पुलिस के कई आला अफसर मौजूद थे। ज़ंजीर की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पिछले हफ्ते जब इंटरनेट पर किसी ने यहाँ दी फोटो के साथ यह सूचना लगाई कि ज़ंजीर का निधन एक दिन पहले ही हुआ है तो लोगो मे शोक की लहर दौड़ गई और फेसबुक , ट्विटर जैसी साइट्स पर यह फोटो काफी बड़ी संख्या मे शेअर की गई ! 

आज जब मीडिया का ध्यान 'खलनायक' की ओर है आइये हम सब १९९३ के इस नायक को याद करें जिसने पूरी वफादारी से मुंबई की रक्षा की !

देश के इस वफादार 'सिपाही' को हमारा नमन !

सादर आपका 

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यादों ने कहा

क्या ??

न जाने कौन था वह -----------

कोई अपना रहा होगा !

मैं आज भी कभी किसी से माफ़ी नहीं मांगता

पुरानी आदत है!

उस रहगुजर से, जब भी मैं तनहा होकर गुजरा हूँ

कसम से बहुत डरा हूँ !

खैर छोड़ो....मैं भी कितना वाहियात आदमी हूं 

बिलकुल छोड़ो जी ... हम तो वैसे भी कुछ न कहते !

कहो सच है न ...:)

लग तो यही रहा है !

रामप्यारी फ़िल्म्स - हम हैं दबंग The Dictatorial

अडवांस बूकिंग चालू आहे  !

ग़ज़ल

सुनाइए  !

मैं व मेरी परछाई

अक्सर साथ ही रहते है !

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है

आज आया क्या ??

भ्रष्ट ईमान

बड़ा बेईमान !

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

गुरुवार, 28 मार्च 2013

होली के रंग, स्लो नेट और ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम !

पिछले २ - ३ दिनों से फेसबुक पर कुछ मित्रों के स्टेटस से भी पता चला और खुद भी फर्क महसूस कर रहा था कि इंटरनेट कुछ धीमा है ... फिर लगा शायद होली की छुट्टियों मे उपयोग बढ़ जाने के कारण ऐसा है पर आज जब नेट पर खबरें पढ़ रहा था तो मालूम हुआ कि दुनिया भर में अब इंटरनेट पर संकट छा गया है। इसकी वजह से न सिर्फ इंटरनेट यूजर्स को इसकी कम स्पीड से दो-चार होना पड़ रहा है, वहीं आशंका यह भी जताई जा रही है कि इससे कई बैंकों के ईमेल अकाउंट और और महत्वपूर्ण पासवर्ड तक हैक हो सकते हैं। इसको लेकर दुनिया के कई देश बेहद चिंतित हैं। कल शाम से काफी लोगों ने फेसबुक के भी काफी धीमा खुलने या न खुलने की शिकायत की थी |
दरअसल, इसकी वजह स्पैम से लड़ने वाली आर्गेनाइजेशन में आया मतभेद बताया जा रहा है। इस वजह से आशंका जताई जा रही है कि इंटरनेट पर साइबर अटैक हो सकता है। आशंका यह भी है कि यदि इससे जल्द ही न निपटा गया तो जल्द ही कई देशों में बैंकों समेत कई अन्य सुविधाएं बाधित हो जाएंगी। इतना ही नहीं कई बैंकों के अकाउंटों के पासवर्ड भी हैक हो जाने की संभावना है। पांच देशों की साइबर पुलिस इसकी जांच में जुटी है। इस वजह से दुनिया के कई देशों में इंटरनेट की धीमी रफ्तार से इंटरनेट यूजर्स काफी परेशान हैं।
यदि इससे जल्द निजाद न पाई गई तो दुनिया के कई देशों को बड़ा नुकसान होने की पूरी संभावना है। दुनिया भर में हैकर्स इस परेशानी का पूरा फायदा हैकर्स उठाने की ताक में बैठे हैं। बैंकों के अकाउंट और पासवर्ड हैक होने की चिंता ने कई बैंकों की पेशानी पर लकीरें खींच दी हैं। 

अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि भारत मे इसका कितना असर हुआ ... फिलहाल कम स्पीड पर ब्लॉग बुलेटिन तो लग ही रही है ... पढ़ें और बताएं कैसी लगी ???

सादर आपका 

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मेरा बचपन ......

Ashok Saluja at यादें...
*यादें !* चलिए आज आपको अपने बचपन के सैर कराता हूँ ....... और ख़ुद आप को सुनाता हूँ ! होली की याद में इतना तो बनता ही है न ??? अशोक

शिष्टाचार

सुज्ञ at सुज्ञ
पाश्चात्य देशों में जो 'शिष्टाचार' बहुप्रशंसित है वह शिष्टाचार वस्तुतः भारतीय अहिंसक जीवन मूल्यों की खुरचन मात्र है। भारतीय अहिंसक मूल्यों में नैतिकता पर जोरदार भार दिया गया है। पाश्चात्य शिष्टाचार उन्ही नैतिक आचारों के अंश है। सभ्यता और विकास के क्रम में यह शिष्टाचार पश्चिम ने भारतीय अहिंसा के सिद्धांत से ही तो ग्रहण किए है। उनके लिये अहिंसा पालन जितना सुविधाजनक था अपना लिया। परिणाम स्वरूप वह आचरण, उनके शिष्टाचार स्वरूप में स्थापित हो गया। जबकि भारत में यह अहिंसा पालन और नैतिक आचरण किताबों में कैद और उपदेशों तक सीमित हो गया। क्योंकि पालन बड़ा कठीन था और मानवीय स्वभाव सदैव से सरलतागाम... more »

अबके इस होली में !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" at अंधड़ !
अपनी "छवि" बदलनी चाही, अबके हमने भी इस होली में। श्वेत-वसन स्व: अंग चढ़ाकर, अबीर, गुलाल, रंग लगाकर, निकले घर से हम टोली में। PLANNING FOR HITTING THE STREET ! उत्सव के नज़ारे बड़े-बड़े थे, पिचकारी लेकर कई चाँद खड़े थे, ताक में चकोरों की अपने घर की खोली में। अपनी "छवि" बदलनी चाही, अबके हमने भी इस होली में। देख हमें इक चाँद मुस्काया, रंग भरा चेहरा दिल को भाया, ना नुकूर के खेल-खेल में मल दिया गुलाल ठिठोली में। अपनी "छवि" बदलनी चाही, अबके हमने भी इस होली में। SWEET TREATS :) फिर ऐसा रंग चढ़ा होली को , दिया भंग बढ़ा हमजोली को, खुद ही आ गया घर हमारे  more »

अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते

ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते सच है कि हम ही दिल को संभलने नहीं देते आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज है हर वक़्त हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते गर्मी-ए-मोहब्बत में वो है आह से माअ़ने पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते. *- अकबर इलाहाबादी *

शर्म का पर्दा ...

उदय - uday at कडुवा सच ...
वैसे तो, आज का हर आदमी, कवि है, कलाकार है बस, नहीं है तो,......एक अच्छा दुकानदार नहीं है ? ... उनकी सिसकियाँ थमने का नाम नहीं ले रही हैं 'उदय' अब 'रब' ही जाने, कैसा जलजला आया है उन पर ?? ... उनका भी अंदाज, कुछ अजब, कुछ गजब, कुछ निराला है खुद को ही,............................ खुद बधाई दे रहे हैं वो ? ... कश्मकश, सपने, महकती रातें, और वो बेबाक लिपटना तेरा गर हम चाहें भी तो, कैसे...................भूल जायें वो मंजर ? ... मैंने तो 'उदय', सिर्फ आँख से शर्म का पर्दा हटाया है यहाँ तो लोग हैं, जो जिस्म भी खुल्ला ही रखते हैं ? ...

मेरी बेटी श्रेयांसी की रचना

मेरी बेटी श्रेयांसी ने कंप्यूटर पर रची ये तस्वीर. एक घर , जो उसके सपने में है. तारे जो उसे प्यारे लगते हैं. कहीं किसी कोने में रात का भी डर है. इसलिए घर की तलाश में भटकता बच्चा भी बगल में खड़ा मिल जाएगा.

बच्चे की सीख

* * *बचपन* *से ही मुझे अध्यापिका बनने तथा बच्चों को मारने का बड़ा शौक था. अभी मैं पाँच साल की ही थी कि छोटे-छोटे बच्चों का स्कूल लगा कर बैठ जाती. उन्हें लिखाती पढ़ाती और जब उन्हें कुछ न आता तो खूब मारती. मैं बड़ी हो कर अध्यापिका बन गई. स्कूल जाने लगी. मैं बहुत प्रसन्न थी कि अब मेरी पढ़ाने और बच्चों को मारने की इच्छा पूरी हो जाएगी. जल्दी ही स्कूल में मैं मारने वाली अध्यापिका के नाम से प्रसिद्ध हो गई. एक दिन श्रेणी में एक नया बच्चा आया. मैंने बच्चों को सुलेख लिखने के लिए दिया था. बच्चे लिख रहे थे.* * * * अचानक ही मेरा ध्यान एक बच्चे पर गया जो उल्टे हाथ से बड़ा ही गंदा हस्तलेख लिख रहा थ... more »

परिभाषाएं - (२ )

तारे वह तिलिस्म - जो सारी दूरीमिटा देते हैं- धरती और आकाशके बीच ! वह रहनुमा - जो भटके हुओंकी होते हैं- आखरी उम्मीद ! वह अपने - जो आशिश्ते हैं - अपने से दूरअपनों को !

दुआ

वो उदास आँखों वाली लड़की सुर्ख फूल सब्ज़ पत्ते नर्म हवा रुकी रुकी बारिश और मिट्टी की सौंधी महक को चाहने वाली, माहताब से बदन वाली वो लड़की... उदास रहती थी पतझड़ में. उसे सूखी ज़मीन और नीला आसमान ज़रा नहीं भाते उसकी आँखों को चूमे बिना ही चखा है मैंने कोरों पर जमे नमक को... एक रात नींद में वो मुस्कुराई और बादल उसके इश्क में दीवाना हो गया.... यकीन मानों खिली धूप में बेमौसम बारिश यूँ ही ,बेमकसद नहीं हुआ करती.... (न कोई अनमेल ब्याह,न अपवर्तन के नियम....) नीले आसमान पर लडकी के लिए मैंने लिखी जो दुआ वही तो है ये इन्द्रधनुष... अनु

अबे, सुन बे गुलाब

naveen kumar naithani at लिखो यहां वहां
(यादवेन्द्र का प्रस्तुत आलेख गुलाव जैसी प्रजातियों वाले फूलों से जुड़े पर्यावरणीय मसलों पर चर्चा के साथ हमारी निर्यात नीति पर भी कुछ जरूरी सवाल उठाता है) अबे ,सुन बे गुलाब: जल संकट और फूल की कीमत -यादवेन्द्र अभी अभी वेलेन्टाइन डे गुजरा है और भारत में यह दिन सांस्कृतिक पहरेदारों केउपद्रवों के कारण पिछले कुछ सालों से ज्यादा चर्चित रहा है।अपने प्रेम का इजहार करने के लिए सुन्दर फूलों -खास तौर पर गुलाब - की देश के अन्दरकी बिक्री और विदेशों में निर्यात के रिकार्ड दर रिकार्ड के लिए भी इस दिन कोख़ास तौर पर याद किया जाता है। बंगलुरु और पुणे जैसे इ... more »

अजीब जिद्दी हैं ये

मेरे ख़याल बिखरे पड़े हैं रास्तों पर अनजान दहलीजों पर कहाँ से गुजरूँ कि इनसे कभी फिर सामना न हो ये बहुत सवालिया किस्म के हैं न खुद दम लेते है न मुझे दो पल सुकून से आने जाने देते हैं कोई इन्हें समेट कर कहीं दूर शहर के बाहर फेंक क्यूँ नहीं आता पर फिर लगता है की ये कहीं मुझे ढूँढ़ते हुए वापिस मेरा दरवाजा तो नहीं खटखटाएंगे अजीब जिद्दी हैं ये... 
 
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!!

बुधवार, 27 मार्च 2013

हैप्पी होली - २ - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

आज आपको एक किस्सा सुनता हूँ ...

एक शरीफ लड़के, (जी हाँ, लड़के भी शरीफ होते है), की सगाई एक बहुत ख़ूबसूरत लड़की, (जी हाँ, लड़कियाँ बहुत खूबसूरत भी होती है), से हुई।

 पर वो लड़का उस लड़की से कभी नहीं मिला था, ना ही उस से बात की थी।
(जी हाँ, आज भी ऐसा होता है) 

 बस सब लोगो से उसकी खूबसूरती की तारीफ ही सुनी थी।

अपनी सुहाग रात पर लड़का बड़ा ख़ुशी-ख़ुशी अपने कमरे में गया और बड़े स्टाइल से अपनी पत्नी का घूंघट उठा कर उससे बोला।

 लड़का: "तुम सच में बहुत ख़ूबसूरत हो, समझ नहीं आता की तुम्हे क्या तोहफा दूँ?"

 लड़की शर्माती हुई बोली, "दो आप ता दिल तले, वो दे दो।"

इस किस्से से हमें यह सबक मिलता है कि सुनी सुनाई बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए खुद भी थोड़ी जांच पड़ताल करनी चाहिए।

अब जैसे मैं तो यहाँ आपको पोस्टो के लिंक दे दूंगा ... पर आप खुद जा कर उनको पढ़ना जरूर ... ;)

आप सब को होली की हार्दिक शुभकामनायें !

सादर आपका

शिवम मिश्रा

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होली और तुम्हारी याद

वे सारे रंग जो साँझ के वक्त फैले हुए थे क्षितिज पर मैंने भर लिया है उन्हें अपनी आँखों में तुम्हारे लिए वर्षों से किताब के बीच में रखी हुई गुलाब पंखुड़ी को भी निकाल लिया है तुम्हारे कोमल गालों के गुलाल के लिए तुम्हारे जाने के बाद से मैंने किसी रंग को अंग नही लगाया है आज भी मुझ पर चड़ा हुआ है तुम्हारा ही रंग चाहो तो देख लो आकर एकबार दरअसल ये रंग ही अब मेरी पहचान बन चुकी है तुम भी कहो कुछ अपने रंग के बारे में

आओ होली खेले आओ

होली की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ ...... फागुन में ये मन नृत्य करे रंगों के संग मन रास करे राधा और श्याम के संग-संग सबके जीवन में रंग भरे ॥ पिचकारी-गुजिया-रंग-अबीर एक दूजे से प्यार करे जाहिर मिलकर सब खुशियाँ मनाओ आओ होली खेले आओ

एक शाम मेरे नाम ने पूरे किए अपने सात साल !

वक़्त का पहिया बिना रुके घूमता ही रहता है। आपके इस चिट्ठे ने भी आज समय के साथ चलते हुए अपनी ज़िंदगी के सात साल पूरे कर लिए हैं। सात सालों के इस सफ़र में करीब पौने छः लाख पेजलोड्स, हजार से ज्यादा ई मेल सब्सक्राइबर और उतने ही फेसबुक पृष्ठ प्रशंसक, मुझे इस बात के प्रति आश्वस्त करते हैं कि इस ब्लॉग के माध्यम से मैं आपकी गुज़री शामों में सुकून के कुछ पल मुहैया करा सका हूँ। पिछले साल मैंने इस अवसर (अगर ये विषय आपकी पसंद का है तो पूरा लेख पढ़ने के लिए आप लेख के शीर्षक की लिंक पर क्लिक कर पूरा लेख पढ़ सकते हैं। लेख आपको कैसा लगा इस बारे में अपनी प्रतिक्रिया आप जवाबी ई मेल या  more »

युक्तं मधुरं, मुक्तं मधुरं

  प्रवीण पाण्डेय at न दैन्यं न पलायनम्
होली की पदचाप सारी प्रकृति को मदमत कर देती है। टेसू के फूल अपने चटक रंगों से आगत का मन्तव्य स्पष्ट कर देते हैं। कृषिवर्ष का अन्तिम माह, धन धान्य से भरा समाज का मन, सबके पास समय, समय आनन्द में डूब जाने का, समय संबंधों को रंग में रंग देने का, समय समाज में शीत गयी ऊर्जा को पुनर्जीवित करने का। नव की पदचाप है होली, रव की पदचाप है होली, शान्तमना हो कौन रहना चाहता है। कौन रंग मैं अंग लगाऊँ मन के भावों को यदि कोई व्यक्त कर सकता है तो वे हैं रंग, मन को अनुशासन नहीं भाता, मन को कहीं बँधना नहीं भाता, मन शान्त नहीं बैठ पाता है। मन की विचार प्रक्रिया से हमारा संपर्क 'हाँ या  more » 

आज होली में.

पुरुषोत्तम पाण्डेय at जाले
चलो खेलें, नया खेल आज होली में बदल डाले सारे बेमेल आज होली में. बन्द कर दो ये समाचार-मीडिया जो दिल तोडते हैं हडताल- हुल्लड, अनसन या जो माइक बोलते हैं मुँह पर चिपका दो टेप उनके जो जहर घोलते हैं. कह दो खुल्ले में ना करो बकवास आज होली में. चलो खेलें, नया खेल आज होली में. बदल डालें सारे बेमेल आज होली में. कलमकारो तुम कलम में बिष-बीज मत डालो लिखो कुछ ऐसा तुम समय की धार बदल डालो रंगों-गुलालों में मुहब्बत हो, मन चाहे लगा डालो दिलों का भेद मिट जाये, तमन्ना आज होली में चलो खेलें, नया खेल आज होली में ... more »

होली के रंग

kamlesh kumar diwan at Kamlesh Kumar Diwan
होली के रंग होली के रंग छाँयेगे कोई न हो उदास । मौसम ही सब समायेगे कोई न हो उदास । नदियाँ ही रँग लाई हैं तितली के पँखों से ध्वनियाँ मधुर सुनाई दें पूजा के शँखो से पँछी भी चहचहायेगे आ जाये आस पास । होली के रँग छायेगे कोई न हो उदास । पुरवाईयो ने बाग बाग पात झराये बागो से उड़ी खुशबूओं ने भँबरे बुलाये अमिया हुई सुनहरी मौसम का है अंदाज । बोली के ढँग आयेगें कोई न हो उदास । होली के रँग छाँयेगे कोई न हो उदास । कमलेश कुमार दीवान 26/02/10

मना रहे हैं सब मिलकर होली।

आती है होली हर बार, लेकर रंगों की भरमार, महक रही है प्रेम से धर्ती, मना रहे हैं सब मिलकर होली। सभी गले मिल रहे हैं, प्रेम के फूल खिल रहे हैं, देकर इक दुजे को शुभकामनाएं, मना रहे हैं सब मिलकर होली। नफरत की जगह है दिलों में प्यार, न जाती धर्म की है दिवार, गिले शिकवे सब भूलकर, मना रहे हैं सब मिलकर होली। है होली का ये संदेश, न नफरत न रखो क्लेश, ऐसे लगे नित्य धरा पर, मना रहे हैं सब मिलकर होली। मना रहे हैं सब मिलकर होली।

होली और होलिका

rajendrakumar sharma at चिंतन(chintan)
*होली और दशहरे में एक समानता है * *होली पर होलिका का दहन होता है * *दशहरे पर रावण का दहन होता है * *दोनों ही बुराईयों के प्रतीक थे * *परन्तु होली स्त्री थी रावण पुरुष था * *रावण अहंकार का प्रतीक था * *तो होली ईर्ष्या की प्रतीक थी * *ईर्ष्या में व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का नुकसान करने के दुराग्रह में * *स्वयं का को भी मिटा सकता है * *होली इस तथ्य को चरितार्थ करती है * *रावण का पुरुष होना होलिका का महिला होना * *बुराईयों के बारे में यह दर्शाती है की * *वे कही भी किसी भी रूप में हो सकती है * *उनका विनाश होना यह दर्शाता है की * *चाहे कितने भी वरदान की शक्तिया बुराईयों को मिल जाए * *उन्हें नष्ट ह... more »

विक्रम वेताल १०/ नमकहराम

Ramakant Singh at ज़रूरत
आज होली पर राजा विक्रम जैसे ही दातुन मुखारी के लिए निकला वेताल खुद लटिया के जुठही तालाब के पीपल पेड़ से उतर कंधे पर लद गया दोनों निकल पड़े नगर के रेल्वे फाटक की ओर रास्ते में एक क़स्बा मिला सोनपुरा राह में एक जीव देखकर वेताल जिज्ञासा से भर उठा सांवला थुलथुल शरीर, खिचड़ी बाल साउथ इंडियन लुक किन्तु बंगाली मिक्स वेताल ने राजन से कहा राजन मै हमेशा एक कहानी सुनाता हूँ और आप मौन रहकर मेरा माखौल उड़ाते हो किन्तु आज ऐसा नहीं करने दूंगा आज की कहानी किसी नमकहराम जीव से सुनें किन्तु प्रश्न मैं ही पूछूँगा आज सही उत्तर चाहिए विधान सभा में प्रजाहित में आज आपके ज्ञान और सत्य की परीक्षा है जो स्वी... more »

होली की शुभकामना के साथ........

विशाल चर्चित at काव्य का संसार
चिमटा चला के मारा, बेलन घुमा के मारा फिर भी बचे रहे तो, भूखा सुला के मारा बरसों से चल रहा है, दहशत का सिलसिला ये बीवी ने जिंदगी को, दोजख बना के मारा कैसे बतायें कितनी मनहूस वो घडी थी इक शेर को है जिसने शौहर बना के मारा वैसे तो कम नहीं हैं हम भी यूं दिल्लगी में उसपे निगाह अक्सर उससे बचा के मारा चर्चित को यूं तो दिक्कत, चर्चा से थी नहीं पर बीवी ने आशिकी को मुद्दा बना के मारा - विशाल चर्चित

कार्टून :- बैठे-ठाले मेरी तो लंका लुट गई रे

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

मंगलवार, 26 मार्च 2013

हैप्पी होली - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

सोचा किसी अपने से बात करें;
अपने किसी ख़ास को याद करें;
किया जो फैसला होली मुबारक कहने का;
तो दिल ने कहा क्यों ना आपसे शुरुआत करें।
होली मुबारक।


सादर आपका 
शिवम मिश्रा
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होली पर दोहे

एक चुटकी गुलाल--------

होली की राम राम जी,

होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाए !

होली

होलीजीन में होलियाना व्यंग्य : सोशल मीडियाई और गॅजेटियाई होली

आदिवासी अंचल में होली की तैयारियां...

हाइकू: होली आयी

चश्मे पे जब हो जाये , रंगों की बौछार---

कैसे मनाऊँ होली तुम बिन साजन

ब्लॉग़वुड के होली समाचार ………

होली हैं .....

फागुन मोरे आँगना

होली है

होली की चुटकी

क्या खाली पीली होली ?

होली की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें

2013 होली : संक्षिप्त

होली मुबारक....

रंगो का विवाद

उड़ा गुलाल ...........

रंगवाली होली

"होली की हार्दिक शुभकामनायें..........."

रंग-बिरंगी होली ...

रंगों की मेरी दुनिया

"नाच मेरी बुलबुल" की दूसरी सेमी फ़ाईनलिस्ट मिस. दराला कुमारी

राज भाटिया प्रेज़ेन्ट्स 'ब्लॉगोले'...खुशदीप

रंगों का मेला-देश काल से परे...

होली का हुल्लड़

''..होली आई रे ..''

होली रंग बिरंगी

कहीं खो सी गई है वो होली.......

44. होली में भांग: दो पुरानी यादें

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 ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से आप सब को सपरिवार होली ही हार्दिक शुभकामनाएँ !

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

सोमवार, 25 मार्च 2013

१ अप्रैल से रेल प्रशासन बनाएगा सब को फूल - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !
इस बार के रेल बजट में रेलमंत्री द्वारा पिछले दरवाजे से बढ़ाया गया रेल यात्रा किराया एक अप्रैल से लागू होने जा रहा है। ऐसे में यदि आप अगले महीने की पहली तारीख से रेल यात्रा टिकट बुक या रद्द कराने जा रहे हैं तो पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे खर्च करने के लिए तैयार रहें।
जारी हुई अधिसूचना : टिकट बुकिंग और रद्द कराने पर लगने वाले नए शुल्क के लिए रेल प्रशासन की ओर से सभी रेल मंडलों को अधिसूचना जारी कर दी गई है। इसके मुताबिक रेल यात्रा के लिए सभी श्रेणी के टिकटों की बुकिंग और रद्द कराने के शुल्क में पांच रुपये से लेकर 50 रुपये तक की वृद्धि की गई है। यानी, अबतक स्लीपर श्रेणी के जिस टिकट की बुकिंग शुल्क के रूप में यात्रियों को 20 रुपये देने होते थे, एक अप्रैल से उन्हें 30 रुपये देने होंगे। वहीं, यदि यात्री इसी श्रेणी के कंफर्म टिकट को रद्द कराने जाएंगे तो उन्हें 40 रुपये की जगह 60 रुपये चुकाने होंगे।

टिकट की बुकिंग पर बढ़ा शुल्क:-
श्रेणी पहले अब
अनारक्षित 10 15
स्लीपर 20 30
एसी चेयरकार 20 30
एसी थ्री इकोनोमी 20 30
एसी थ्री 20 30
एसी सेंकेंड 20 30
एसी फ‌र्स्ट 20 30
एग्जिक्यूटिव 20 30
फ‌र्स्ट क्लास 20 30
टिकट रद्द कराने पर बढ़ा शुल्क:-
श्रेणी पहले अब
अनारक्षित 20 30
स्लीपर 40 60
एसी चेयरकार 60 90
एसी थ्री इकोनोमी 60 90
एसी थ्री 60 90
फ‌र्स्ट क्लास 60 100
एसी सेंकेंड 60 100
एसी फ‌र्स्ट 70 120
एग्जिक्यूटिव 70 120
तो साहब तैयारी कर लीजिये १ अप्रैल के बाद से हर बार टिकिट बूक या रद्द करने पर "फूल" बनने के लिए !

सादर आपका 
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मन पखेरू उड़ चला है फिर (सुनीता शानू )

*मन पखेरू उड़ चला है फिर (सुनीता शानू ) शब्द को मिलती गयीं नव अर्थ की उंचाइयाँ भाव पुष्पित हो गए मिटने लगी तन्हाईयाँ गीत में स्वर भर दिए हैं प्यार के अलाप ने मन पखेरू उड़ चला फिर आसमाँ को नापने ... *सुनीता शानू का यह काव्य संग्रह अपनी पहली उड़ान में लिखे शब्दों के माध्यम से दिल के हर गहराई में उतरना की कोशिश में है ....प्रेम से रची इन रचनाओं में अधिकतर प्रेम भाव ही उपजा दिखाई देता है ..जो ज़िन्दगी से मिलने पर कविता बन जाता है ..* तुमसे मिल कर ज़िन्दगी बन गयी मैं एक कविता और मैं एक कलम जो हर वक़्त तुम्हारे प्यार की स्याही में बनाती है तस्वीर तुम्हारी ..........*.दिल जब यूँ ही प्यार में पगा होत... more »

पं. पोंगादीन लप्पाचार्य से विस्फोटक बातचीत

देवांशु निगम at अगड़म बगड़म स्वाहा....
कल भारत ने ऑस्ट्रेलिया को जम के धोया | ४ मैचों की सीरीज ४-० से हरा डाली | जगह जगह विश्लेषक अपनी राय दे रहे हैं | पर तहलका मचाया हुआ है *पं. पोंगादीन लप्पाचार्य* ने, उन्होंने कहा की इसकी भविष्यवाणी उन्होंने पहले ही कर दी थी | सो हम आज सुबह-सुबह उनका साक्षात्कार करने चले गए | प्रस्तुत है उनसे बातचीत के मुख्य अंश : *मैं* : नमस्कार पांडी जी | *पंपोल* (पं. पोंगादीन लप्पचार्य ) : नमस्ते बालक, कैसे हो | *मैं* : जी बस बढ़िया, आप सुनाएँ | *पंपोल* : बस सब प्रभु की किरपा है , कहो कैसे आना हुआ | *मैं* : पांडी जी , बस अभी बाहर सुना की आपने भारत के ४-० से जीतने की भविष्यवाणी की थी, तो सोचा जरा आ... more »

एक सादा सी सोच ....

कल "राम जी लंदन वाले" फिल्म का अंत देखा और उस अंत का एक संवाद दिल को छू गया यूं तो यह फिल्म कई बार देख चुकी हूँ मैं ,मगर पहले कभी शायद इस संवाद पर ध्यान ही नहीं गया कि इंसान का "असली सुख और अस्तित्व उसके अपनों के बीच ही है" उसके अपनों के बिना उसका जीवन बिलकुल खाली है, सूना है, हर खुशी बेगानी है। वैसे तो हम लंदन वाले यहाँ आकर अपनी नयी दुनिया बना ही लेते हैं आज पहली बार खुद को लंदन वाला कह रही हूँ दोस्तों क्यूँ...यह फिर कभी.... खैर मैं लंदन में बहुत कम और यहाँ के अन्य शहरों में ज्यादा रही हूँ जहां हिंदुस्तानियों की संख्या लंदन की तुलना में बहुत कम रही है। शायद इसलिए मैंने उस संवाद को... more »

बुरा न मानो होली है

............. बुरा न मानो होली है ............ रंगों की बदरी छाई है, होली की बारिश आई है, मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है, शास्त्री सर की कविता रंगू, रविकर सर की कुण्डलियाँ, निगम सर के गीत भिगाऊं, धीरेन्द्र सर जी की गलियाँ, जरा हँसी मजाक ठिठोली है, यह गुरु शिष्य की होली है, मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है, प्रिय संदीप मनोज सखा की ग़ज़लों को भंग पिलाऊं मैं शालिनी जी की अनुभूति को लाल गुलाल लगाऊं मैं, भरी रंगों से ही झोली है, यह मित्र सखा की होली है, मस्ती ने मस्ती घोली है, रंगीन रची रंगोली है, तरह तरह के रंग रंगीले, कुछ नीले हैं कुछ पीले हैं, एक जैसी सबकी सूरत है, स... more »

इस होली में

Anju (Anu) Chaudhary at अपनों का साथ
(जीवन की सोच के हर रंग का मिला जुला सा असर ) इस होली में रंगों की टोली रोशनी का उमड़ता हुआ सैलाब बनी फिर भी रुकावट के लिए खेद है क्यों कि देश को बचाने की मुहीम भी तेज़ है | होली के रंगों की तरह राजनीति भी रंगी है सच्चे-झूठे वादों के घेरे में कहीं ... श्वान कूटनीति कहीं धमकी का धमाका कहीं कोई ढूँढ रहा है एक नया बहाना.... काले शीशे वाली कारों पर बेअसर हो रहा है हर रंग मतवाला | कहीं मुलायम की सरकार तो कहीं चली मोदी के भाषण की तलवार सात रंगों के संग सब खेल रहें होली पर देश के नेता और राजनीति की उतनी ही बदरंग हो-ली मासूम बेटियों पर अत्याचार से ना कोई रंग बचा,ना ही कोई उत्... more

कलम का क्रांतिकारी : गणेश शंकर विद्यार्थी !

रेखा श्रीवास्तव at मेरा सरोकार
कानपुर शहर को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले क्रन्तिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी ने अखबार "प्रताप " से अंग्रेजों के साथ अपनी बगावत को एक अलग दिशा दी . जिसने कलम को ही अपनी बन्दूक और बम बना कर उस शासन की चूलें ही नहीं हिलायीं बल्कि उसके दम पर ही देश को एक नए जोश और देशभक्ति से भरने का काम किया . वे पत्रकारिता में रूचि रखते थे, अन्याय और अत्याचार के खिलाफ उमड़ते विचारों ने उन्हें कलम का सिपाही बना दिया. उन्होंने हिंदी और उर्दू - दोनों के प्रतिनिधि पत्रों 'कर्मयोगी और स्वराज्य ' के लिए कार्य करना आरम्भ किया. उस समय ... more »

ना खेलूं होली

Rajeev Sharma at कलम कवि की
गोपियों सुनलो मोरी के अब के न खेरूं होरी बीते बरसों प्रेम में बीते उनको देखत रहे हम जीते कैसे सोचूं खेलन की बिछड़ गई संगनी मोरी गोपियों सुनलो मोरी के अब के न खेरूं होरी खूब ही खेरा फाग था हमने लाल गुलाबी अबीर के संग में खुशबू रह गई तन में चंदन की खोई हमने पोरी गोपियों सुनलो मोरी के अब के न खेरूं होरी चाहूँ मै भी रंगों रंग जाऊं गोपियों संग सब सखा बुलाऊं खूब ही खेरुं तब होरी जो ढूंड दो मोरी गोरी गोपियों सुनलो मोरी के अब के न खेरूं होरी कान्हा आवे उसे बत्तियो मोपे बीती उसे सुन्नियो सब कहें उसको काम फिर क्यों डोर तोरी गोपियों सुनलो मोरी के अब के न खेरूं होरी

गोदियाल ढाबा !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" at अंधड़ !
* ** **हुए प्यार में तेरे दिवाने ऐसे,* *सड़क पर ही आ गए हम,अरे बाबा,* *उधार का खिलाते कब तक तुमको,* *इसलिए खुद ही खोल दिया ढाबा !* *अब बना-बनाके पकवान अनेकों, * *इतना खिलाएंगे तुमको, * *जो तूम भी बोल उठो; * *तेरे ढाबे का खा के, मैं बदरंग हो गई, * *कल चोली सिलाई आज तंग हो गई, * *और हम बोलेंगे;,* *कुड़ी के नखरे, ओए शाबा, ओए शाबा !! * * *

MP3 से वीडियो बिना ज्यादा मेहनत किये

कल जो पोस्ट मैंने की थी उसमें पोडकास्ट बनाने वाले ब्लोगरों को टेढ़ा मेढ़ा हल सुझाया था, पर उस सुलझन में एक उलझन भी थी। वह उलझन रवि रतलामी जी ने कमेन्ट में लिख भी दी। तो पेश है उस उलझन की सुलझन :) उलझन क्या है? हमारे पास एक MP3 फ़ाइल है, इस MP३ फ़ाइल को यू-ट्यूब पर अपलोड करना है पर यू-ट्यूब तो MP३ फ़ाइल अपलोड करने ही नहीं देता। सुलझन: किसी तरह से इस MP३ फ़ाइल को वीडियो में बदल दीजिये, इसके लिए

यार फागुन------

यार फागुन सालभर में एक बार दबे पांव आते हो खोलकर प्रेम के रहस्यों को चले जाते हो------ यार फागुन तुम तो केवल रंगों की बात करते हो प्यार के मनुहार की बात करते हो शहर की संकरी गलियों में झांकों मासूमों का कतरा कतरा बहता मिलेगा झोपड़ पट्टी में कुछ दिन गुजारो बच्चों के फटे कपड़ों का टुकड़ा ही मिलेगा----- यार फागुन जहां रोटियां की कमी है वहां रोटियां परोसो गुझिया के चक्कर में रोटियां न छीनों एक चुटकी गुलाल मजदूर के गाल पर मलो अपनों को रंगों------- यार फागुन गुस्सा मत होना अपना समझता हूं अपना ही समझना--------- "ज्योति खरे"

हैप्पी बर्थड़े ... मेरे प्यारे कार्तिक

शिवम् मिश्रा at बुरा भला
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

रविवार, 24 मार्च 2013

होली आई रे कन्हाई पर संभल कर मेरे भाई - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

रंगों के त्योहार होली में अब कुछ ही वक्त बचा है। ऐसे में जरूरी है कि आपको इस बात की जानकारी हो कि इस दौरान आपको किस तरह की सावधानियां बरतनी हैं। होली के दौरान खतरनाक रंग और गुलाल से बचने के साथ-साथ खाने पीने के दौरान भी सचेत रहने की जरूरत है। इसके अलावा इस दिन शराब या भांग का सेवन करने से बचें और जितना हो सके सूखे रंगों से होली खेलें। खतरनाक रंगों से होने वाली स्कीन की परेशानियों को ध्यान में रखते हुए बेहतर होगा कि ऐसे कपड़े पहनें, जिनसे शरीर का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा ढका हुआ रहे। बालों को बचाने के लिए सिर पर कैप लगाएं या कपड़ा बांध लें। बेहतर होगा कि होली खेलने से पहले सिर से लेकर पैर तक कोई ऑयल या माश्चराइजर लगा लें।
 
होली के कलर में क्या होता है जानिए :-

हरा रंग - हरे रंग में कापर सल्फेट मिला होता है, जिससे स्किन और आंखों में एलर्जी हो सकती है। दमे के मरीजों के लिए भी यह खतरनाक साबित हो सकता है।
 
सिल्वर और गोल्डन कलर - इसमें एल्युमिनियम ब्रोमाइड होता है। इससे स्किन और लंग कैंसर हो सकता है।  

लाल रंग - इस कलर में मरक्यूरी सल्फाइट होता है जो बेहद जहरीला होने के साथ-साथ स्कीन के लिए बेहद खतरनाक होता है। इससे आंखों की रोशनी तक छिन सकती है।
 
खतरनाक हो सकता है गुलाल -
गुलाल में सिलिका या एस्बेस्टस का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें चमक देने के लिए बारीक कांच भी मिलाया जाता है। इससे स्किन एलर्जी हो सकती है। ये रंग त्वचा, आंख और मुंह के जरिए शरीर के अंदर चले जाते हैं और फिर खतरनाक साबित होते हैं।

दिल के मरीजों के लिए खास टिप्स -
- शराब या भांग का नशा करने से बचें। इनसे ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है, जो होली के रंग को फीका कर सकता है।
- अधिक भागदौड़ से बचकर रहें क्योंकि यह आपकी सेहर पर भारी पड़ सकता है।
- तली हुई चीजों को खाने से परहेज करें।
- दिल के मरीज होली के हुल्लड़ में शामिल होने से पहले अपनी दवाएं लेना न भूलें।

तो साहब इस आलेख मे दी गई इन बातों का रखें ख्याल और मनाएँ होली बिंदास !!

सादर आपका

शिवम मिश्रा
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किताबें बहुत पढी होंगी तुमने ,कभी कोई चेहरा भी तुमने पढा है

इलेक्ट्रोनिक मीडिया का भी अजब हाल है !!

चमक रही है परों में उड़ान की खुश्बू....

रचना आभा को आंसू न आने की टेंशन और नयी भाषा से जूझती रंजू भाटिया

चर्चामंच, वटवृक्ष, ब्लाग4वार्ता पर चली कैंची !

भला कैसे...

इन पर कौन सा एक्ट लगेगा ?

लीजिये, बाँट ही दी उपाधियाँ... भाई, बुरा न मानो होली है ssssss

परिकल्पना की होली

हिंदी साहित्य और छायावाद की दीपशिखा -कवयित्री महादेवी वर्मा और उनकी कविताएँ

सता के मारा

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

शनिवार, 23 मार्च 2013

२३ मार्च, शहादत और हम... ब्‍लॉग बुलेटिन

२३ मार्च.... आज के दिन को हम कैसे याद करते हैं यह हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। शहीदे-आज़म की शहादत का दिन आज के माहौल को देखते हुए कितना प्रासंगिक है... क्या उनकी शहादत से हमनें कोई  शिक्षा ली? या इतिहास के पन्नों में कहीं लपेट कर रख दिया ताकि वर्ष में एक बार उसपर पडी धूल को झाड कर आभासी भक्ति का प्रदर्शन कर इति-श्री कर ली जाए?  जी सच कह रहा हूं... आधी आबादी को पता भी नहीं है की आज के दिन का क्या अर्थ है और उन्हे शायद कोई फ़र्क भी नहीं पडता है। 

कैसे हुई उनकी शहादत

उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है?
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है?
दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें।
सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।

यह वह पंक्तियां हैं जो भगत सिंह नें अपनी शहादत से दो दिन पहले अपनें भाई को लिखी थी। जान सकते हैं कितना शौर्य और किस बहादुरी से मुकाबला करनें का जुनून था। आज ही के दिन २३ मार्च १९३१ को शाम में करीब ७ बजकर ३३ मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई । फाँसी पर जाने से पहले वे लेनिन की नहीं बल्कि राम प्रसाद 'बिस्मिल' की जीवनी पढ़ रहे थे जो सिन्ध (वर्तमान पाकिस्तान का एक सूबा) के एक प्रकाशक भजन लाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस, सिन्ध से छापी थी। कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- "ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।" फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले - "ठीक है अब चलो ।"

फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे -
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे;
मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला।।




फाँसी के बाद कहीं कोई आन्दोलन न भड़क जाये इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके मृत शरीर के टुकड़े किये फिर इसे बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गये जहाँ मिट्टी का तेल डालकर ही इनको जलाया जाने लगा। गाँव के लोगों ने आग जलती देखी तो करीब आये। इससे डरकर अंग्रेजों ने इनकी लाश के अधजले टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंका और भाग गये। जब गाँव वाले पास आये तब उन्होंने इनके मृत शरीर के टुकड़ो कों एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया । और भगत सिंह हमेशा के लिये अमर हो गये। जब गांधी कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में हिस्सा लेने जा रहे थे तो लोगों ने काले झण्डों के साथ उनका स्वागत किया । एकाध जग़ह पर गांधीजी पर हमला भी हुआ, किन्तु सादी वर्दी में उनके साथ चल रही पुलिस ने बचा लिया।

आखिर भगत सिंह चाहते क्या थे

भगत सिंह एक नये हिन्दुस्तान की कल्पना करते थे, वह वैसे तो साम्यवादी थे लेकिन भारत के बहु-आयामी और बहुत जातिय जनतंत्र पर भी एक साफ़ नज़र रखते थे। जब कांग्रेस अंग्रेज सरकार के साथ समझौता करके डोमिनियन स्टेटस पर भी मंज़ूर थी, यह भगत सिंह ही थे जिन्होनें पूर्ण स्वराज का नारा बुलन्द किया। वह एक अपंग भारत के स्थान पर अपनें आप में आत्म निर्भर भारत की कल्पना करते थे, जिसमें समाज का हर वर्ग एक समान आज़ादी का अनुभव कर सके। ब्रिटिश राज से आज़ादी ही उनका मक्सद नहीं था, वरन वह सच्चे माईनें में आज़ादी चाहते थे। 

गांधीवाद या क्रांति

बारह वर्ष के भगत सिंह अपने चाचाओं की क्रान्तिकारी किताबें पढ़ कर सोचते थे कि इनका रास्ता सही है कि नहीं ? गांधी जी का असहयोग आन्दोलन छिड़ने के बाद वे अहिंसात्मक तरीकों और क्रान्तिकारियों के हिंसक आन्दोलन में से अपने लिये रास्ता चुनने लगे। असहयोग आन्दोलन रद्द होनें के बाद देश के तमाम नवयुवकों की भाँति उनमें भी रोष हुआ और अन्ततः उन्होंने देश की स्वतन्त्रता के लिये क्रान्ति का मार्ग अपनाना अनुचित नहीं समझा। उन्होंने जुलूसों में भाग लेना प्रारम्भ किया तथा कई क्रान्तिकारी दलों के सदस्य बने। कुछ समय बाद भगत सिंह करतार सिंह साराभा के संपर्क में आये जिन्होंने भगत सिंह को क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने की सलाह दी और साथ ही वीर सावरकर की किताब 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पढने के लिए दी, भगत सिंह इस किताब से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने इस किताब के बाकी संस्करण भी छापने के लिए सहायता प्रदान की, जून 1924 में भगत सिंह वीर सावरकर से येरवडा जेल में मिले और क्रांति की पहली गुरुशिक्षा ग्रहण की, यही से भगत सिंह के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया, उन्होंने सावरकर जी के कहने पर आजाद जी से मुलाकात की और उनके दल में शामिल हुए| बाद में वे अपने दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों के प्रतिनिधि भी बने। उनके दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों में चन्द्रशेखर आजाद, भगवतीचरण वोरा, सुखदेव, राजगुरु इत्यादि थे। 

आज भी बहुत से लोग इस बात पर बहस करते हुए दिखेंगे कि गांधी के तरीकों और भगत सिंह के तरीकों में से कौन से श्रेष्ठ थे... मित्रों इस बात का निर्णय करनें वाले हम तो कोई नहीं लेकिन आज के भारत की कई समस्याओं का ज़िक्र शहीदे-आज़म पहले ही कर चुके थे। वह कांग्रेस के तौर तरीकों से भली भांति परिचित थे। हम कह सकते हैं देश आज़ाद हो गया लेकिन हम गुलाम के गुलाम रह गये। यदि शहीदे-आज़म के तरीकों से आज़ादी मिलती तो उस आज़ादी के अपनें माईने होते।

ज़रा सोचिए..... 


(अमर शहीदों को शत शत नमन)

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आईए अब आज के बुलेटिन की ओर चलें
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इबादत ...

* * *तेरी मोहब्बत इबादत है मेरी .....* *तू है , तुझसे है,, ये चाहत मेरी* *ख़त्म न हो कभी ये इबादतों का सिलसिला* *प्रार्थना में माँगी हमने ....* *हरदम मोहब्बतें तेरी.....* * * * * *बेचैनी इधर भी है उधर भी .....* *आग इधर भी लगीं है उधर भी* *ना जाने कौन किसकी पहलू में है .....* *कौन किसकी आगोश में* *बस दो दिल पिघल रहे हैं ....* *एक - दुसरे की पनाहों में* *शमाँ जल रही है इश्क की.....* *रोशन चिराग इधर भी है उधर भी....* * *


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मेरा ब्लॉग सुनो

कमाल का टाइटल है, है ना? मेरा ब्लॉग सुनो, भला ऐसा भी होता है क्या ब्लॉग पढ़ा तो जाता है पर सुना भी जाता है क्या? आपके इस प्रश्न का मेरा उत्तर है हाँ, क्यूँ नहीं ब्लॉग भी सुना जा सकता है बशर्ते उसे कोई सुनाने बाला हो। तो सवाल यह है कि कोई सुनाएगा क्यूँ? पर उससे पहले सवाल यह है कि कोई सुनाये ही क्यूँ? अच्छा एक बात बताइये आपकी जिन्दगी की पहली कहानी आपने पढी थी या सुनी थी? भई मैंने तो सुनी थी, पढी


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चुनाव का खर्चा कारपोरेट सेक्टर ही उठा रहे है : कामरेड अशोक मिश्रा

Randhir Singh Suman at लो क सं घ र्ष ! 
ब्रिटिश साम्राज्यवाद से अमरीकी साम्राज्यवाद के सफर में सरकारों का संचालन अपने मुनाफे के लिए कारपोरेट सेक्टर करने लगा है। सरकारे उसकी इच्छानुसार नही चलती है तो उन सरकारों को उन्हे साम्राज्यवाद नेस्तनाबूत कर देता है। यह विचार शहीद भगत सिंह के बलिदान दिवस के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय परिषद सदस्य कामरेड अशोक मिश्रा ने कहा कि आज सत्तारूढ दल और विपक्षी दल दोनो पार्टियों को कारपोरेट सेक्टर ही संचालित कर रहा है। उनके चुनाव का खर्चा कारपोरेट सेक्टर ही उठा रहे है। जनेस्मा प्रवक्ता डा0 राजेश मल्ल ने कहा कि अमेरिकी साम्राज्यवाद नंगा ...more »

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सुनामी हर किसी के हिस्से होती है

रश्मि प्रभा... at मेरी भावनायें... 
यीशू तुमने कहा था - 'पहला पत्थर वह चलाये जिसने कभी कोई पाप न किया हो ...' तुम्हें सलीब पर देख आंसू बहानेवाले तुम्हारे इस कथन का अर्थ नहीं समझ सके या संभवतः समझकर अनजान हो गए ! अपना पाप दिखता नहीं प्रत्यक्ष होकर भी वचनों में अदृश्य होता है तो उसे दिखाना कठिन है ... पर दूसरों के सत्कर्म भी पाप की संज्ञा से विभूषित होते हैं उसे प्रस्तुत करते हुए “*वचनम किम* दरिद्रता” ! दर्द को सुनना फिर उसके रेशे रेशे अलग करना संवेदना नहीं दर्द का मज़ाक है और अपना सुकून ! बातों की तह तक जानेवाले बातों से कोई मतलब नहीं रखते बल्कि उसे मसालेदार बनाकर दिलचस्प ढंग से अपना समय गुजारते हैं ... ... more »

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शहीदों को नमन ...... उनके जोश और जज्बे को सलाम .......

संजय कुमार चौरसिया at " जीवन की आपाधापी " 
आज " शहीद दिवस " पर मैं सभी शहीद क्रांतिकारियों और उनके जोशीले व्यक्तित्व को शत शत नमन करता हूँ ! आज की युवा पीढ़ी के लिए हमारे ये वीर शहीद एक मिशाल हैं ... जो जज्बा देश पर मर - मिटने के लिए इनके पास था , आज उसी जज्बे की जरुरत इस देश को आज के युवाओं से है ! किन्तु आज का युवा जोश में कम अपितु आवेश में अधिक रहता है ! जोश और आवेश में अंतर तो बहुत नहीं हैं किन्तु इनके अर्थ हमारे लिए अलग अलग हो सकते हैं ! एक जोशीला युवक अपने समाज और देश की स्थिति में बदलाव ला सकता है उनको सुधर सकता है ! किन्तु एक आवेशित युवक अपना और अपने समाज का सिर्फ अहित ही कर सकता है क्योकि आवेश का एक रूप गुस्सा भी हो... more »


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नन्ही ब्लागर अक्षिता (पाखी) 'हिंदुस्तान टाइम्स वुमेन अवार्ड' के लिए नामिनेट

आप सभी की शुभकामनाओं से मुझे 'हिंदुस्तान टाइम्स वुमेन अवार्ड' (HT Women Award) - 2013 के लिए 'पावरफुल पेन (Powerful Pen) के तहत नामिनेट किया गया है। इसके तहत उत्तर प्रदेश से कुल 88 लोग नामिनेट हुए हैं, जिनमें 'पावरफुल पेन' (Powerful Pen) कटेगरी में मात्र 17 लोग नामिनेट हैं। इसका रिजल्ट 31 मार्च को घोषित किया जायेगा और अवार्ड विनर्स को ताज विवंता, लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम में सम्मानित किया जायेगा। अवार्ड हेतु विनर्स का चयन पब्लिक पोल और जज़ेज के एक पैनल द्वारा किया जायेगा। इस हेतु मेरा कोड है- 70. आप सभी से अनुरोध है कि मुझे वोट करने हेतु अपने मोबाईल फोन पर *HTW 70 टाईप कर 542... more »


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दिल में होली जल रही है .......................

जिस भी रंग को चाहा वो ही ज़िन्दगी से निकलता रहा लाल रंग .......... सुना था प्रेम का प्रतीक होता है बरसों बीते खेली ही नहीं बिना प्रेम कैसी होली उसके बाद तो मेरी हर होली ........बस हो ..........ली !!! दहकते अंगारों पर अब कितना ही पानी डालो कुछ शोले उम्र भर सुलगा करते हैं दिल में होली जल रही है .......................


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आखिरी ख़त उस दीवाने का...

22 मार्च 1931 साथियो, स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे नहीं चाहता । लेकिन मैं एक शर्त पर जिन्दा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबन्द होकर जीना नहीं चाहता । मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रान्ति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है-- इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हरगिज़ नहीं हो सकता । आज मेरी कमजोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं ... अगर मैं फाँसी से ... more »


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बलिदान दिवस पर शत शत नमन

शिवम् मिश्रा at बुरा भला 
*बलिदान दिवस पर अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शत शत नमन ! * *इंकलाब ज़िंदाबाद !!*


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व्यंग्य: जी हाँ मैं बड़ा व्यंग्यकार हूँ

सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap Singh at सादर ब्लॉगस्ते! 
(यह व्यंग्य समर्पित हैं उन महान लेखकों को जो स्वयं ही बड़े बने हुए हैं और सबके सामने बड़े बन तनकर खड़े हुए हैं।) हुज़ूर आपने मुझे बिल्कुल ठीक पहचाना। जी हाँ मैं व्यंग्यकार हूँ, वो भी बड़ा व्यंग्यकार। आपने अख़बारों में मुझे पढ़ा तो होगा ही। मेरे व्यंग्य अक्सर अख़बारों में जगह पाते ही रहते हैं। मैं नियमित तौर पर छपता हूँ, इसलिए कुछ दुष्ट ईर्ष्यावश मुझे छपतेराम नाम से संबोधित करने लगे हैं। उन्होंने मेरा नाम छपते राम तो रख दिया, लेकिन उन्होंने मेरा कड़ा परिश्रम नहीं देखा। करीब बीस अख़बारों में मैं रोज अपने व्यंग्य भेजता हूँ, तब कहीं जाकर एक-दो अख़बारों में जगह हासिल हो पाती है। मैं... more »


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शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था ईश्वर की तरह

Ashok Kumar Pandey at जनपक्ष 
*तेईस मार्च भारतीय क्रांतिकारी मनीषा के प्रतीक शहीद भगत सिंह और उनके साथियों राजगुरु तथा सुखदेव का शहादत दिवस है तो उसके कोई आधी सदी बाद उसी दिन पंजाबी के क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश भी शहीद हुए थे. इस बार हत्यारे देश के भीतर के थे. वही धार्मिक कट्टरपंथ, जिसकी शिनाख्त और तीव्रतम आलोचना भगत सिंह ने अपने समय में की थी छप्पन सालों बाद उन्हें आदर्श मानने वाले पाश का हत्यारा बना. आज जब देश के भीतर धार्मिक कट्टरपंथी अलग-अलग रूपों में सर उठा रहे हैं और पूरा देश उन्माद के गिरफ्त में है तो उन्हें याद करना इसके ख़िलाफ़ होना भी है. आज इस अवसर पर पाश की कुछ कवितायें...पहली कविता उन्होंने शहीद... more »


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सो मित्रों, आज का बुलेटिन यहीं तक, कल फ़िर मिलते हैं एक नये रूप में.... 

जय हिन्द
देव

लेखागार