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मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

आज के दिन की ४ बड़ी खबरें - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,

प्रणाम !

आज के दिन की ४ बड़ी खबरें :- 

१ ) चीन ने भारतीय सीमा मे अपना ५ वां कम्प लगाया ... इलाका चीनी घोषित !

२ ) पाकिस्तान मे सरबजीत सिंह ब्रेन डैड घोषित !

३ ) ८४ के दंगो मे हत्या के आरोपी कोंग्रेसी नेता सज्जन कुमार अदालत द्वारा पाक साफ घोषित !

और 

४ ) ८४ के क़त्ल ए आम मे बहे खून के गहरे दाग पेट्रोल से साफ होंगे ... पेट्रोल ३ रुपये सस्ता घोषित !

सादर आपका 


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कभी मुंतज़िर चश्में......

mridula pradhan at mridula's blog
कभी मुंतज़िर चश्में ज़िगर हमराज़ था, कभी बेखबर कभी पुरज़ुनू ये मिजाज़ था, कभी गुफ़्तगू के हज़ूम तो, कभी खौफ़-ए-ज़द कभी बेज़ुबां, कभी जीत की आमद में मैं, कभी हार से मैं पस्त था. कभी शौख -ए-फ़ितरत का नशा, कभी शाम- ए-ज़श्न ख़ुमार था , कभी था हवा का ग़ुबार तो कभी हौसलों का पहाड़ था. कभी ज़ुल्मतों के शिक़स्त में ख़ामोशियों का शिकार था, कभी थी ख़लिश कभी रहमतें कभी हमसफ़र का क़रार था. कभी चश्म-ए-तर की गिरफ़्त में सरगोशियों का मलाल था, कभी लम्हा-ए-नायाब में मैं भर रहा परवाज़ था. कभी था उसूलों से घिरा मैं रिवायतों के अजाब में, कभी था मज़ा कभी बेमज़ा सूद-ओ- जिया के हिसाब में. मैं था बुलंदी प... more »

चंद शेर

Anita Singh at दर्पण
लफ्ज़ पढना तो मेरी आदत है तेरा चेहरा किताब सा क्यों है ************************ वफा के बदले में मांगी जो मैने उनसे वफा कहा उन्होंने कि पत्थर पे गुल नही खिलते ******************************* रात देखी है पिघलती हुई जंजीर कोई मुझे बतायेगा इस ख्वाब की ताबीर कोई ******************************* ना जाने क्यूँ हर इम्तिहान के लिए जिन्दगी को हमारा पता याद है ****************************** अनजान शायर

After Google Reader

जब से गूगल रीडर के बंद होने कि सूचना गूगल ने दी है तब से कई लोग मुझसे पूछ चुके हैं कि इसका बेहतर विकल्प क्या हो सकता है? मैं खुद भी इस उलझन में था, क्योंकि अमूमन पिछले चार सालों से मैं गूगल रीडर के अलावा और कोई भी आरएसएस फीड रीडर प्रयोग में नहीं लाया था. फिर कुछ छानबीन के बाद मुझे ये चार रीडर कुछ अच्छे लगे : 1. http://www.watchthatpage.com/ 2. http://page2rss.com/ 3. http://www.changedetection.com/ 4. http://theoldreader.com/ मुझे गूगल रीडर का सर्वश्रेष्ठ विकल्प इनमें से सबसे आखरी वाला Theoldreader लगा, सो यहाँ सिर्फ उसकी ही बात करते हैं. 1. इसका इंटरफेस बिलकुल गूगल रीडर जैसा ही है, ... more »

श्रीनगर यात्रा भाग २ ..गुलमर्ग और पहलगाम की खूबसूरत वादियों में ....

श्रीनगर यात्रा भाग २ ..गुलमर्ग और पहलगाम की खूबसूरत वादियों में .... श्रीनगर होटल से निकलते हुए गुलमर्ग जब तक देखा नहीं था ..चित्रों में देखा हुआ सुन्दर होगा यही विचार था दिल में ..पर कोई जगह इत्तनी खूबसूरत हो सकती है ..यह वहां जा कर ही जाना जा सकता है ...........चित्र से कहीं अधिक सुन्दर ..कहीं अधिक मनमोहक ..और अपनी सुन्दरता से मूक कर देने वाला ........ गुलमर्ग के रास्ते पर ( चित्र पूर्वा भाटिया ) ....उफ्फ्फ कोई जगह इतनी सुन्दर ..जैसे ईश्वर ने खुद इसको बैठ के बनाया है ..कश्‍मीर का एक खूबसूरत हिल स्‍टेशन है यह ... इसकी सुंदरता के कारण इसे धरती का स्‍वर्ग भी कहा जाता है। यह देश... more »

कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

मजदूर दिवस पर----- स्वतंत्र भारत के प्राकृतिक वातावरण में हम बेरोक टोक सांस ले रहे हैं, पर एक वर्ग ऐसा है, जिसकी साँसों में नियंत्रण है,ये वर्ग है हमारा "मजदूर"- "दुनियां के मजदूरों एक हो" का नारा पूरी दुनियां में विख्यात है,क्या केवल नारों तक सीमित है,मजदूर "कामरेड" और लाल सलाम जैसे शब्दों के बीच अरसे से घुला-मिला यह मजदूर.अपने आप को नहीं समझ पाया है कि वह क्या है.यह सच है कि जिस तेजी से जनतांत्रिक व्यवस्था वाले हमारे मुल्क में, मजदूरों के हितों का आन्दोलन चला उतनी ही तेजी से बिखर गया,मजदूरों के कंधों से क्रांति लाने वाले ... more »

नवनीत सिंह की कवितायें

Ashok Kumar Pandey at असुविधा....
नवनीत सिंह बिलकुल नए कवि हैं. जब उन्होंने इस इसरार के साथ कवितायें मेल कीं कि 'न पसंद आये तो भी प्रतिक्रिया दें' तो उनकी कविताओं को गौर से पढ़ना ज़रूरी लगा. इनमें अभी कच्चापन है, अनगढ़ता भी और शब्द स्फीति भी, लेकिन इन सबके साथ एक गहरी सम्बद्धता और रा एनर्जी है जो उनके भीतर की संभावना का पता देती है. भूमंडलोत्तर काल में युवा हुई पीढ़ी के अपने अनुभव हैं और उन्हें दर्ज़ कराने के लिए अपनी भाषा -अपनी शैली. वहां 'वृक्ष और टहनियों के दर्द' का एहसास भी है और 'धनुष-बाण के कारखाने बंद ' किये जाने का अनुभव भी. लोगों को पहचानने के उनके अपने नुस्खे हैं, जिनसे आप असहमत भले हों पर जिन्हें नज़रं... more »

सिंहपुरी के पास मित्र से वार्तालाप

दृश्य – हम घर से महाकाल अपनी बाईक पर जा रहे थे, गोपाल मंदिर से निकलते ही सिंहपुरी के पास हमारे एक पुराने मित्र मिल गये जो हमारे साथ एम.ए. संस्कृत में पढ़ते थे, अब पंडे हैं । मित्र – और देवता क्या हाल चाल हैं ? हम – ठीक हैं, आप बताओ कैसे क्या चल रिया है ? मित्र – बस भिया महाकाल की छाँव में गुजार रिये हैं. हम – अरे भिया असली जीवन के आनंद तो नी आप लूट रिये हो, अपन तो बस झक मार रिये हैं, इधर उधर दौड़ के, रोटी के चक्कर में निकले थे.. और चक्कर बढ़ता ही जा रिया है। मित्र – अरे देवता असली मजे तो जिंदगी के आप ले रिये हो, कने कहां कहां घूम रिये हो, बड़ी सिटी में रह रिये हो, और अपने को तो ऐसे ... more »

कार्टून :- बुढ़ापे में पेन्शन की उम्मीद में बैठे हो ?


मेरी बिटिया

तुझे बड़े भाग्य से पाया मैंने तुझे बड़े जतन से पाला मैंने तन मन मेरा महकाया तुमने जीवन फूल खिलाया तुमने तु मेरी कोमल छाया है मेरा ही रूप पाया तुमने जीवन तुम पर लुटाया मैंने हर झंझावत से बचाया तुम्हें घर आंगन महकाया तुमने इंद्रधनुषी रंग विखराया तूने हर को स्नेह की डोर में बांधा तुमने ... more »

मुंशी प्रेमचंद की अमर रचना दो बैलों की कथा

इस साप्ताहिक स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा के स्वर में पुरुषोत्तम पाण्डेय की कहानी "लातों का देव" का पाठ सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी दो बैलों की कथा जिसे स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। कहानी "दो बैलों की कथा" का गद्य भारत डिस्कवरी पर उपलब्ध है। इस कथा का

तपती धरती पर एक बूँद गिरी हो जैसे

फेसबुक और ब्लॉग्गिंग के विषय में बहुत कुछ लिखा जाता रहा है कि लोग ब्लॉग्गिंग से फेसबुक की तरफ पलायन कर गए हैं ..और अब फेसबुक पर स्टेटस लिख कर ही संतुष्ट हो जाते हैं आदि आदि. पर मेरी यात्रा उलटी रही. फेसबुक पर मैंने 2006 में ही अकाउंट बनाया था जबकि ब्लॉगिंग ज्वाइन की 2009 में . पहले फेसबुक पर मेरी फ्रेंड्स लिस्ट में सिर्फ जाने-पहचाने मित्र और रिश्तेदार ही थे पर ब्लॉग्गिंग ज्वाइन करने के बाद काफी ब्लॉग दोस्त (कर्ट्सी शोभा डे ) भी फेसबुक पर मित्रों में शुमार हो गए . फिर भी मैं बहुत कम लोगों को ही add करती हूँ . बहुत ज्यादा सक्रिय भी नहीं हूँ..कि सबकी स्टेटस पढूं, कमेन्ट करूँ लिहाज... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

सोमवार, 29 अप्रैल 2013

गुम होती नैतिक शिक्षा.... ब्लॉग बुलेटिन

जीवन चलता रहता है, किसी भी दशा में और कैसी भी दशा में। जीवन अपनें पनपने और उभरनें की जद्दोजहद में हर ओर बढता है। वाकई विधाता की दी हुई कितनी सुन्दर चीज़ है यह। हम और आप आज कल  विकसित हो चुकी मानव सभ्यता हैं जो कई करोडो वर्ष की विकास यात्रा का परिणाम हैं। लेकिन यह विकसित मानव समाज़ कितना वीभत्स है इसकी कल्पना मात्र से मन सिहर उठता है। आखिर इस वीभत्सता के कारण क्या हैं? कैसी मज़बूरी है जो मनुष्य को पाशविकता के घनघोर जंगल में धकेल रही है। आज ही अखबार में पढा की एक माँ ने कुछ घंटो के बच्चे को कूडे के ढेर में फ़ेंक दिया और स्वयं को एक कठिन संकट से बचा लिया। जब पुलिसिया पूछताछ से उस स्त्री ने सच उगला तो वह सच कितना घिनौना था। आखिर कैसे एक माँ अपनी ही संतान को कूडे में फ़ेक सकती है। आज कल देश भर में जागरूकता फ़ैल रही है, ऐसा नहीं है की आज कल वारदातें बढ गई हैं बल्कि आज कल लोगों तक सच सामनें आनें लगा है। यह घटनाएं पहले भी होती रहीं है और आज भी यह उसी हिसाब से हो रही हैं। हर कोई समाज सुधारनें की बात करनें में लगा है और बडी बडी बातें करके पब्लिसिटी बढानें में लगा हुआ है। मीडिया भी एक खबर को दिखा दिखा, ओ री चिरईया जैसे गीत बजा बजा कर हमारी संवेदनाएं भडकानें में लगा हुआ है। लेकिन यही मीडिया ब्रेक में सन्नी लियोन को दिखानें से गुरेज़ नहीं करता। हर ब्रेक में होते प्रचार में होती अश्लीलता पर उसका ध्यान नहीं जाता। आखिर यह अश्लीलता फ़ैलानें वाले प्रचार को बन्द क्यों नहीं करते। यदि विज्ञापन का कोई सेंसर बोर्ड नहीं है क्या? अगर है तो फ़िर वह करता क्या है। वैसे भी हम लोग तो पश्चिम की नकल करके अपनी तरक्की के पैमानें गढते हैं तो वह दिन दूर नहीं जब हम इसका और भी घनघोर रूप देखें। हमारे युवाओं को रोल माडल के रूप में स्वामी विवेकानन्द, रानी लक्ष्मीबाई, शहीदे-आज़म भगत सिंह और नेताजी सुभाष होनें चाहिए लेकिन उनकी जगह हमारे रोल माडल यह बाज़ार तय करता है। ऐसे में फ़िर रामायण, गीता और महाभारत की शिक्षा तो फ़िर जानें ही दीजिए। 

पिछले दिनों कुछ स्कूली बच्चों से मिला, कोई चौथी और पांचवी कक्षा के बच्चे होंगे और स्कूल के किनारे रुक कर बाते कर रहे थे। हमनें उनकी बाते सुनने की कोशिस की... वह यह बात कर रहे थे की फ़लां फ़लां हीरो कितना स्मार्ट है और उसकी गर्ल फ़्रेंड कितनी हाट है। अब साहब दस बारह साल के बच्चों की बात सुनकर हैरान थे। हमनें उनको रोका और उनसे थोडी बात की। केवल इतना पूछा की भारत देश का राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान क्या है। कोई सही जवाब न दे पाया। फ़िर हमनें पूछा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर कौन हैं। जवाब में वह फ़िर से मौन थे। मित्रों उन बच्चों नें इसके बाद हमको इग्नोर किया और अपने काम में व्यस्त हो गये। न जाने क्या बडबडाए जिसको हम समझ न पाए। वैसे इसमें इनका कोई दोष नहीं होगा, क्योंकी यह तो वही जानेंगे न जो समझेंगे और सीखेंगे। स्कूल में व्यापारी हैं जो पैसा लेते हैं और किताबों को उडेल देते हैं, होमवर्क पकडा कर अपनें कार्य की इति-श्री कर लेंगे। हर ओर ऐसा ही होता रहेगा। 

मित्रों समाज को सुधारनें के लिए अपनें ही घर से शुरुआत होगी। एक बच्चा जब बोलना सीखता है तब वह अपनें बुज़ुर्गो ंसे न जानें कैसी कैसी शिक्षा लेता है। बचपन से ही उसके मन में नैतिकता का अंकुर बोना होगा। सही को सही और गलत को गलत कहनें की शिक्षा देनी होगी। स्कूल और कालेज़ उसे केवल एक मैकेनिकल रोबोट बना कर छोडेंगे और ऐसे में बाल अंकुर को घर से ही नैतिक शिक्षा देकर उसे सही आदर्श सिखानें होंगे। शिक्षण संस्थानों को भी नैतिक शिक्षा को पाठ्यक्रम में लेकर बच्चो को सही शिक्षा देनी होगी। टेलीविजन चैनलों को भी अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए अपना काम करना होगा। आप भी सोचेंगे क्या ऐसा होगा? जी मुश्किल तो है लेकिन नामुमकिन नहीं। थोडी जागरूकता के साथ काम करना होगा तो ज़रूर होगा। कम से कम घर से शुरुआत तो कर ही सकते हैं... एक नया भारत बनेगा... इस सोच के साथ कम से कम अपने हिस्से का काम तो कर ही सकते हैं।

सोच कर देखिए... 

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चलिए आज के बुलेटिन की ओर
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एक प्रेमकथा का किस्सा

sunil deepak at जो न कह सके
कुछ दिन पहले "जूलियट की चिठ्ठियाँ" (Letters to Juliet, 2010) नाम की फ़िल्म देखी जिसमें एक वृद्ध अंग्रेज़ी महिला (वेनेसा रेडग्रेव) इटली के वेरोना शहर में अपनी जवानी के पुराने प्रेमी को खोजने आती है. इस फ़िल्म में रोमियो और जूलियट की प्रेम कहानी से प्रेरित हो कर दुनिया भर से उनके नाम से पत्र लिख कर भेजने वाले लोगों की बात बतायी गयी है. यह सारी चिठ्ठियाँ वेरोना शहर में जूलियट के घर पहुँचती हैं, जहाँ काम करने वाली युवतियाँ उन चिठ्ठियों को लिखने वालों को प्रेम में सफल कैसे हों, इसकी सलाह देती हैं. रोमियो और जूलियट (Romeo and Juliet) की कहानी को अधिकतर लोग अंग्रेज़ी नाटककार और लेखक विलिय... more »

व्यंग्य: रेवडियाँ ले लो रेवडियाँ

सुमित प्रताप सिंह Sumit Pratap Singh at सादर ब्लॉगस्ते!
कल शहर में रेवडियाँ बाँटी गयीं थीं. रेवडियाँ बाँटने के लिए एक भव्य समारोह का आयोजन किया था. समारोह के आयोजक ऐसा समारोह हर साल करते हैं और अपने चाहने वालों के लिए नियम से रेवडियाँ बाँटते हैं. रेवडियाँ प्राप्त करने की कोई विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं होती. बस आपको रेवड़ी बाँटू कार्यक्रम में उपस्थित होना आवश्यक है. हाँ यदि आप अधिक व्यस्त हैं और कार्यक्रम में आने का कष्ट नहीं उठाना चाहते, तो आपके निवेदन पर रेवडियाँ आपके घर पर भी पहुंचाईं जा सकती हैं. यदि आपकी जान-पहचान न भी हो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता. आप रेवड़ियों के दाम चुकाने की हिम्मत रखें, तो रेवडियाँ रेवड़ी देने वाले के साथ ... more »

मर्यादा का उल्लंघन ....

mahendra mishra at समयचक्र
सृष्टि की रचना करते समय ईश्वर ने समस्त जगत के लिए और जीव जगत के लिए एक धर्म और मर्यादा नियत की है और यदि कोई इनका उल्लंघन करता है तो उसे उसके दुष्परिणाम भोगने ही पड़ते हैं . ग्रह- नक्षत्र भी अपनी निर्धारित धुरी पर ही परिक्रमा करते हैं और यदि वे अपने निर्धारित मर्यादित पथ से भटक जाएँ तो समस्त सृष्टि में हाहाकार की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी और ग्रह नक्षत्र एक दूसरे से टकराकर समाप्त हो जायेंगें . मनुष्य के लिए भी मर्यादाएं नियत की गई हैं और अगर कोई मनुष्य इनका उल्लंघन करता है तो वे परिणाम स्वरुप त्रासदी और कष्ट पाते हैं . मर्यादा का उल्लंघन करने के संबंध में एक छोटी से लघु कथा प्रस्तुत ... more »

"प्रगतिपथ"

Meenakshi Mishra Tiwari at "मन दर्पण"
चलता जा प्रगति पथ पर तू, कंटक पथ के पुष्प बनेंगे।। धूप जो तुझको चुभ रही है आज, कल छाया स्वयं आकाश बनेगा।। कंठ जो तेरा सूख रहा आज, नदियाँ कल तू ले आएगा।। उठ अब प्रण कर ले तू शपथ, मार्ग न कोई अवरुद्ध कर पायेगा।। देख !! मनोबल न गिर पाए तेरा , तू स्वयं ही अपना संबल बनेगा ।।

हरामखोरी हमारा राष्ट्रीय चरित्र है

Ajit Singh Taimur at Akela Chana
एक बड़ी पुरानी सीख है . हमारे पुरखे हमें देते आये हैं . अगर किसी की मदद करना चाहते हो तो उसे मछली मत दो , बल्कि मछली पकड़ना सिखाओ .दोनों के अपने अपने फायदे हैं . जिसे आप मछली देंगे वो आपका ज़बरदस्त fan हो जाएगा . उसे बैठे बिठाए मुफ्त का खाना जो मिल गया . अब वो अक्सर आपका दरबार लगाएगा . जी हुजूरी करेगा . रोज़ आपसे मछ्ले मांगेगा .अगर आप उसे मछली पकड़ना सिखा दें तो इसमें भी एक बहुत बड़ा रिस्क है . अगर वो मछली पकड़ना सीख गया तो शायद फिर आपकी जी हुजूरी करने , आपको तेल लगाने नहीं आयेगा ............... बहुत से राजनैतिक , सामाजिक और धार... more »

सिनेमा के शानदार 100 बरस को अमित, स्वानंद और अमिताभ का संगीतमय सलाम

noreply@blogger.com (Sajeev Sarathie) at रेडियो प्लेबैक इंडिया
प्लेबैक वाणी -44 - संगीत समीक्षा - बॉम्बे टा'कीस सिनेमा के १०० साल पूरे हुए, सभी सिने प्रेमियों के लिए ये हर्ष का समय है. फिल्म इंडस्ट्री भी इस बड़े मौके को अपने ही अंदाज़ में मना या भुना रही है. १०० सालों के इस अद्भुत सफर को एक अनूठी फिल्म के माध्यम से भी दर्शाया जा रहा है. बोम्बे टा'कीस नाम की इस फिल्म को एक नहीं दो नहीं, पूरे चार निर्देशक मिलकर संभाल रहे हैं, जाहिर है चारों निर्देशकों

आँखें नम होतीं हैं मेरी Ankhein Nam Hotin Hain Meri

Neeraj Dwivedi at Life is Just a Life
आज चल पडा है रूठ कर एक कतरा आँख से, हो गया बलिदान फिर एक भाव ही विन्यास से। ये याद है उसकी या मेरे अश्रु की फरियाद है, झरी जैसे निचुड़ती अंतिम बूँद हो मधुमास से। रह गयी हो बस यही अस्थि पञ्जर युक्त कारा, चल पड़ी हो पुनः जगकर मृत्यु के परिहास से। स्वप्न के सन्दर्भ में भी जी रहा हूँ दर्द केवल, सत्य खुशियों की बिखरती ओस सी है घास से। थक गयी है देह चन्दा छोड़ दो ये आसमान, देही चल पड़ी है राह में मुक्ति की सन्यास से। अब तुम्हारी याद की जरुरत नहीं रहती मुझे, आँखें नम होतीं हैं मेरी दिल्ली में अक्सर शर्म से। -- नीरज द्विवेदी https://www.facebook.com/LifeIsJustALi... more »

रश्मिरथी / द्वितीय सर्ग / भाग 7 ........दिनकर

संगीता स्वरुप ( गीत ) at राजभाषा हिंदी
'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ? कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ? धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान? जाति-गोत्र के बल से ही आदर पाते हैं जहाँ सुजान? 'नहीं पूछता है कोई तुम व्रती , वीर या दानी हो? सभी पूछते मात्र यही, तुम किस कुल के अभिमानी हो? मगर, मनुज क्या करे? जन्म लेना तो उसके हाथ नहीं, चुनना जाति और कुल अपने बस की तो है बात नहीं। 'मैं कहता हूँ, अगर विधाता नर को मुठ्ठी में भरकर, कहीं छींट दें ब्रह्मलोक से ही नीचे भूमण्डल पर, तो भी विविध जातियों में ही मनुज यहाँ आ सकता है; नीचे हैं क्यारियाँ बनीं, तो बीज कहाँ जा सकता है? 'कौन जन्म लेता किस... more »

'विज्ञान परिषद प्रयाग शताब्दी सम्मान' से कृष्ण कुमार यादव भी सम्मानित

राष्ट्रभाषा हिन्दी के माध्यम से विज्ञान लोकप्रियकरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिये विज्ञान के प्रति समर्पित संस्था 'विज्ञान परिषद प्रयाग' ने अपने शताब्दी वर्ष में विभिन्न विभूतियों को 'विज्ञान परिषद प्रयाग शताब्दी सम्मान' से विभूषित किया। प्रशासन के साथ-साथ लेखन और ब्लागिंग में अनवरत सक्रिय एवं सम्प्रति इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवायें कृष्ण कुमार यादव को भी इस अवसर पर 'विज्ञान परिषद प्रयाग शताब्दी सम्मान' से सम्मानित किया गया। उक्त सम्मान 27 अप्रैल 2013 को इलाहाबाद में विज्ञान परिषद प्रयाग के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में छत्तीसगढ... more »

वाशिंगटन में २३ अप्रेल की सुबह

राकेश खंडेलवाल at गीत कलश
*आज तेईस अप्रेल की ये सुबह ** **ओढ़ कर जनवरी थरथराने लगी** **सर्द झोंकों की उंगली पकड़ आ गई** **याद इक अजनबी मुस्कुराने लगी * *बादलों****की** **रजाई****लपेटे** **हुये*** *रश्मियां****धूप** **की****कुनमुनाती** **रहीं*** *भाप****काफ़ी** **के****मग** **से****उमड़ती** **हुई*** *चित्र****सा** **इक****हवा** **में****बनाती** **रही*** *हाथ****की** **उंगलियां****एक** **दूजे****से** **जुड़*** *इक****मधुर** **स्पर्श****महसूस** **करती****रहीं** * *और****हल्की** **फ़ुहारें****बरसती** **हुईं*** *कँपकँपी****ला** **के****तन** **में****थी** **भरती*** * * *गाड़ियों****की** **चमकती****हुई** **रोशनी*** *कुमकुम... more »

मेरी कविता- नई इबारत!!!

[image: slnew] मेरी कविता बदल दी है मैने उन सब बातों के लिए जो तुमको मान्य न थी... मेरी कविता बदल दी है मैने उन सब बातों के लिए जो सबको मान्य न थी... मेरी कविता बदल दी है मैने उन सब बातों के लिए जो समाज को मान्य न थी... मेरी कविता बदल दी है मैने उन सब बातों के लिए जो मजहब को मान्य न थी... मेरी कविता बदल दी है मैंने उन सब बातों के लिए जो आलोचकों को मान्य न थी.. मेरी कविता- इन सब मान्यताओं की निबाह की इबारत बनी अब मेरी कहाँ रही वो बदल कर ढल गई है एक ऐसे नये रुप में जो काबिल है साहित्य के सर्वश्रेष्ठ प्रकाशन में प्रकाशित किए जा सकने के लिए मेरी कविता अब इस नये रु... more »



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अब आज्ञा दीजिये 

आपका 

देव 
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रविवार, 28 अप्रैल 2013

इंडियन होम रूल मूवमेंट


प्रणाम मित्रों, 
आज २८ अप्रैल एक महत्त्वपूर्ण दिवस है | इस तारीख का महत्त्व आज आपके सामने लाते हैं । 

अखिल भारतीय होम रूल लीग, एक राष्ट्रीय राजनीतिक संगठन था जिसकी स्थापना १९१६ में स्व. बाल गंगाधर तिलक द्वारा भारत में स्वशासन के लिए राष्ट्रीय मांग का नेतृत्व करने के लिए "होम रूल" के नाम के साथ की गई थी | भारत को ब्रिटिश राज में एक डोमिनियन का दर्जा प्राप्त करने के लिए ऐसा किया गया था | उस समय ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड और न्यूफ़ाउंडलैंड डोमिनियन के रूप में स्थापित थे |

होम रूल का झंडा 



प्रथम विश्व युद्ध के संदर्भ में
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अधिकांश भारतीयों और भारतीय राजनीतिक नेताओं ने प्रथम विश्व युद्ध और उन भारतीय सैनकों को जो बर्तानिया सरकार की तरफ से जर्मनी, ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य और तुर्क साम्राज्य के खिलाफ लड़ रहे थे को लेकर अपने अपने मत थे | उन्होंने इस युद्ध में लड़ रहे भारतीय सैनिकों को अपनी प्रतिक्रिया में विभाजित किया गया था | उत्तरार्द्ध की भागीदारी भारत के मुसलमानों को सताने की मंशा से की गई थी, जिसमें इस्लाम के खलीफा के रूप में सुल्तान सरगना थे |

बहुत से भारतीय क्रांतिकारियों, युद्ध का विरोध किया और जो नरमपंथी और उदारवादी थे उन्होंने युद्ध का समर्थन किया | इस मुद्दे ने भारत के राजनीतिक दलों को अलग अलग वर्गों विभाजित कर दिया और स्वशासन के मुद्दे के लिए बढ़ती मांग को भड़कती आग की तरह छोड़ दिया है जिसके सुलगने का अभी तक कुछ अतापता नहीं था |

संस्थापक और संस्थापना
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१९१६ से १९१८ के बीच, जब युद्ध खत्म होने की कगार पर था उस समय कुछ प्रमुख भारतीयों जैसे जोसेफ़ बप्तिस्ता, बाल गंगाधर तिलक, जी.एस. खापर्डे, सर एस.सुब्रमनिया आइयर, और थियोसोफिकल सोसाइटी की लीडर एनी बसंत ने आपस में सहमति के साथ समस्त भारत में एक राष्ट्रीय गठबंधन लीग बनाने का फैसला लिया जो के विशेष रूप से भारत के लिए बर्तानिया साम्राज्य के भीतर होम रूल, या स्वशासन की मांग करने के लिए डट कर कड़ी रह सके | बाल गंगाधर तिलक ने पुणे, महाराष्ट्र में पहली लीग की स्थापना की जिसका मुख्यालय दिल्ली में स्तिथ था और इसकी गतिविधियों के प्रमुख शहर थे मुंबई, कलकत्ता और मद्रास |

यह कदम उस समय काफी चर्चा में रहा और भारतीयों के बीच काफी उत्तेजना भी उठता रहा | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बहुत से सदस्य और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के कई सदस्यों जो १९१६ के लखनऊ पैक्ट के समय से सम्बंधित थे, को इस विचार ने आकर्षित किया | लीग के बड़े नेताओं ने उग्र भाषण दिए | सैकड़ों और हजारों भारतीयों के हस्ताक्षर की हुई याचिकाएं ब्रिटिश अधिकारियों को सौंपी गईं | मुस्लिम लीग और इंडियन नेशनल कांग्रेस के बीच उदारवादियों और कट्टरपंथियों के साथ ही एकता का एकीकरण श्रीमती एनी बेसेंट की एक उल्लेखनीय उपलब्धि थी. बाद में १९१७ में ऐनी बेसेंट को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और यह आन्दोलन भारत के दूरदराज़ गावों तक फैल गया और अपना प्रभाव बनाने लगा | लीग ने राजनीतिक जागरूकता फैलाने के लिए सिंध, पंजाब, गुजरात, संयुक्त प्रांत, बिहार, उड़ीसा और साथ ही मद्रास और दुसरे सभी राज्यों को एक सक्रिय राजनीतिक आंदोलन के लिए उठ खड़ा किया और सभी एक जुट हो कर नए क्षेत्रों में राजनीतिक जागरूकता फैलाने में शामिल हो गए |

कांग्रेस से अंतर
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लीग ने कॉलेज के छात्रों, शिक्षित भारतीयों और शहरों में लोगों को दिलों में भड़कती आग, उत्साह, उत्सुकता और उनकी प्रतिक्रियाओं से, ब्रिटिश सरकार को यह दिखने का प्रयास किया के भारत की जनता इस मुद्दे को लेकर कितनी सतर्क और प्रभावित है | हालाँकि इतनी जागरूकता के और इस मुद्दे के प्रति ब्रिटिश सरकार के थोड़े बहुत उत्साह के बावाजूद यह मतभेद और विभाजित सोच हमेशा बनी रही के अपनी विचारधारा को व्यक्त करने के लिए सार्वजानिक प्रदर्शनों, या सहमति और समझौते के साथ विधान परिषदों के लिए चुनाव लड़ा जाये जो की वायसराय की रबर स्टांप से ज्यादा आलोचना का कारण था |

इसके आगे का विकास रुक गया, क्योंकि गांधी और उनके सत्याग्रह के अहिंसक तरीके बड़े पैमाने पर आधारित सविनय अवज्ञा:, अन्य गतिविधियों और क्रांति इसका कारण बने | गाँधी की हिन्दू जीवन शैली, व्यव्हार और भारतीय संस्कृति के प्रति उनका लगाव और सम्मान ने भारतीय जनता के दिलों में उनके प्रति आदर जगा दिया और वो जनता के बीच बेहद लोकप्रिय हो गए | टैक्स विद्रोहों पर ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ चंपारण, बिहार और खेड़ा, गुजरात के किसानों के नेतृत्व में उनकी जीत ने उन्हें एक राष्ट्रीय हीरो बना दिया.

गांधी के समझ लिया था के असली भारत ९००,००० गांवों में बस्ता है, मुंबई, दिल्ली, कलकत्ता और मद्रास के शहरों में नहीं | भारतीय लोगों में अधिकांश गरीब अनपढ़ और किसान थे ना की पश्चिमी शिक्षित वकील |

विघटन
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१९२० में, अखिल भारतीय होम रूल लीग ने गांधी को इसके अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया | एक वर्ष में ये संगठन एक संयुक्त भारतीय राजनीतिक मोर्चे के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में विलय हो गया और इसका स्वयं का अस्तित्व खत्म हो गया |

आज की कड़ियाँ 


























आशा करता हूँ आज का बुलेटिन पसंद आएगा । धन्यवाद् 
तुषार राज रस्तोगी 

जय बजरंगबली महाराज | हर हर महादेव शंभू  | जय श्री राम 

शनिवार, 27 अप्रैल 2013

१०१ नॉट आउट - जोहरा सहगल - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

प्रसिद्ध नृत्यांगना और अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री जोहरा सहगल आज यानि 27 अप्रैल 2013  को 101 साल की हो गई ।

जोहरा का असली नाम साहिबजादी जोहरा बेगम मुमताजुल्ला खान है। उनका जन्म 27 अप्रैल, 1912 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के रोहिल्ला पठान परिवार में हुआ। वह मुमताजुल्ला खान और नातीक बेगम की सात में से तीसरी संतान हैं। हालांकि जोहरा का पालन-पोषण सुन्नी मुस्लिम परंपराओं में हुआ, लेकिन वह बचपन से ही विद्रोह मानसिकता की थीं।
लाहौर से स्कूली शिक्षा और स्नातक करने के बाद जोहरा अपने मामा के साथ जर्मनी चली गई। वहां उन्होंने खुद को बुर्के से आजाद कर लिया और संगीत की शिक्षा ली। वर्ष 1935 में जोहरा जाने-माने नर्तक उदय शंकर से मिलीं और उनके डांस ग्रुप का हिस्सा बन कर पूरी दुनिया घूमीं।
1940 में अल्मोड़ा स्थित शंकर के स्कूल में नृत्य की शिक्षा देने के साथ ही उनकी मुलाकात कामेश्वर से हुई, जिनसे जोहरा ने 1942 में शादी की। फिर उन्होंने मुंबई आकर पृथ्वी थियेटर में नृत्य निर्देशक के रूप में काम करना शुरू किया, जहां वह अपनी सख्त मिजाजी के लिए जानी जाती थीं। यहीं से उनका फिल्मों का सफर भी शुरू हो गया। बॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म हम दिल दे चुके सनम, कभी खुशी कभी कम, चीनी कम जैसे कई फिल्मों में काम किया।
फिल्मी सफर की दास्तान
-वर्ष 1945 में पृथ्वी थियेटर में 400 रुपये मासिक वेतन पर काम शुरू किया। इसी दौरान इप्टा ग्रुप में शामिल हुई।



-वर्ष 1946 में ख्वाजा अहमद अब्बास के निर्देशन में धरती के लाल और चेतन आनंद की फिल्म नीचा सागर में काम किया।
-धरती के लाल भारत की पहली फिल्म थी, जिसे कान फिल्म समारोह में गोल्डन पाम पुरस्कार मिला।
-मुंबई में जोहरा ने इब्राहीम अल्काजी के प्रसिद्ध नाटक दिन के अंधेरे में बेगम कुदसिया की भूमिका निभाई।
-गुरुदत्त की वर्ष 1951 में आई फिल्म बाजी तथा राजकपूर की फिल्म आवारा के प्रसिद्ध स्वप्न गीत की कोरियोग्राफी भी की।
-1964 में बीबीसी पर रुडयार्ड किपलिंग की कहानी में काम करने के साथ ही 1976-77 में बीबीसी की टेलीविजन श्रृंखला पड़ोसी नेबर्स की 26 कडि़यों में प्रस्तोता की भूमिका निभाई।
 
जोहरा सहगल जी के फिल्मी सफर की जानकारी के लिए पढ़ें :-  
 

पूरे हिन्दी ब्लॉग जगत और पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से जोहरा सहगल जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें ! यही दुआ है कि भगवान इनको और लंबी उम्र दे.. चरण स्पर्श जोहरा जी !!

सादर आपका 


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आया

'इक शब..'

मात्र देह नहीं है नारी .. 2

प्रकृति का नियम

दिल की कशिश

सीबीआई का हलफनामा है या सरकारी दबाव का कबूलनामा !!

तेरे नां दी इक बूँद

अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो

"धरा बचायें: हाइकू"

चिड़िया

पुरुष की नकारात्मक प्रवृत्ति का शिकार अंततः एक स्त्री ही बनती है- एक अवलोकन

भारत में लोकतंत्र है अथवा तुष्टिकरण-तंत्र ?

तुम इतना भी नहीं समझते ?----

आज ही के दिन...

चोट, स्टिच और कविता

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

गणित के जादूगर - श्रीनिवास रामानुजन - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

गणित के जादूगर - श्रीनिवास रामानुजन 

(22/12/1887 - 26/04/1920)

महज 32 साल की उम्र में दुनिया से विदा हो गए रामानुजन, लेकिन इस कम समय में भी वह गणित में ऐसा अध्याय छोड़ गए, जिसे भुला पाना मुश्किल है। अंकों के मित्र कहे जाने वाले इस जुनूनी गणितज्ञ की क्या है कहानी?
जुनून जब हद से गुजरता है, तो जन्म होता है रामानुजन जैसी शख्सियत का। स्कूली शिक्षा भी पूरी न कर पाने के बावजूद वे दुनिया के महानतम गणितज्ञों में शामिल हो गए, तो इसकी एक वजह थी गणित के प्रति उनका पैशन। सुपर-30 के संस्थापक और गणितज्ञ आनंद कुमार की मानें, तो रामानुजन ने गणित के ऐसे फार्मूले दिए, जिसे आज गणित के साथ-साथ टेक्नोलॉजी में भी प्रयोग किया जाता है। उनके फार्मूलों को समझना आसान नहीं है। यदि कोई पूरे स्पष्टीकरण के साथ उनके फार्मूलों को समझ ले, तो कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से उसे पीएचडी की उपाधि आसानी से मिल सकती है।
अंकों से दोस्ती
22 दिसंबर, 1887 को मद्रास [अब चेन्नई] के छोटे से गांव इरोड में जन्म हुआ था श्रीनिवास रामानुजन का। पिता श्रीनिवास आयंगर कपड़े की फैक्ट्री में क्लर्क थे। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, लेकिन बच्चे की अच्छी परवरिश के लिए वे सपरिवार कुंभकोणम शहर आ गए। हाईस्कूल तक रामानुजन सभी विषयों में अच्छे थे। पर गणित उनके लिए एक स्पेशल प्रोजेक्ट की तरह था, जो धीरे-धीरे जुनून की शक्ल ले रहा था। सामान्य से दिखने वाले इस स्टूडेंट को दूसरे विषयों की क्लास बोरिंग लगती। वे जीव विज्ञान और सामाजिक विज्ञान की क्लास में भी गणित के सवाल हल करते रहते।
छिन गई स्कॉलरशिप
चमकती आंखों वाले छात्र रामानुजन को अटपटे सवाल पूछने की आदत थी। जैसे विश्व का पहला पुरुष कौन था? पृथ्वी और बादलों के बीच की दूरी कितनी होती है? बेसिर-पैर के लगने वाले सवाल पूछने वाले रामानुजन शरारती बिल्कुल भी नहीं थे। वह सबसे अच्छा व्यवहार करते थे, इसलिए स्कूल में काफी लोकप्रिय भी थे। दसवीं तक स्कूल में अच्छा परफॉर्म करने की वजह से उन्हें स्कॉलरशिप तो मिली, लेकिन अगले ही साल उसे वापस ले लिया गया। कारण यह था कि गणित के अलावा वे बाकी सभी विषयों की अनदेखी करने लगे थे। फेल होने के बाद स्कूल की पढ़ाई रुक गई।
कम नहीं हुआ हौसला
अब पढ़ाई जारी रखने का एक ही रास्ता था। वे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे। इससे उन्हें पांच रुपये महीने में मिल जाते थे। पर गणित का जुनून मुश्किलें बढ़ा रहा था। कुछ समय बाद दोबारा बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी, लेकिन वे एक बार फिर फेल हो गए। देश भी गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा था और उनके जीवन में भी निराशा थी। ऐसे में दो चीजें हमेशा रहीं-पहला ईश्वर पर अटूट विश्वास और दूसरा गणित का जुनून।
नौकरी की जद्दोजहद
शादी के बाद परिवार का खर्च चलाने के लिए वे नौकरी की तलाश में जुट गए। पर बारहवीं फेल होने की वजह से उन्हें नौकरी नहीं मिली। उनका स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा था। बीमार हालात में जब भी किसी से मिलते थे, तो उसे अपना एक रजिस्टर दिखाते। इस रजिस्टर में उनके द्वारा गणित में किए गए सारे कार्य होते थे। किसी के कहने पर रामानुजन श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले। अय्यर गणित के बहुत बड़े विद्वान थे। यहां पर श्री अय्यर ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और उनके लिए 25 रुपये मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध भी कर दिया। मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में भी क्लर्क की नौकरी भी मिल गई। यहां काम का बोझ ज्यादा न होने के कारण उन्हें गणित के लिए भी समय मिल जाता था।
बोलता था जुनून
रात भर जागकर वे गणित के नए-नए सूत्र तैयार करते थे। शोधों को स्लेट पर लिखते थे। रात को स्लेट पर चॉक घिसने की आवाज के कारण परिवार के अन्य सदस्यों की नींद चौपट हो जाती, पर आधी रात को सोते से जागकर स्लेट पर गणित के सूत्र लिखने का सिलसिला रुकने के बजाय और तेज होता गया। इसी दौरान वे इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी के गणितज्ञों संपर्क में आए और एक गणितज्ञ के रूप में उन्हें पहचान मिलने लगी।
सौ में से सौ अंक
ज्यादातर गणितज्ञ उनके सूत्रों से चकित तो थे, लेकिन वे उन्हें समझ नहीं पाते थे। पर तत्कालीन विश्वप्रसिद्ध गणितज्ञ जी. एच. हार्डी ने जैसे ही रामानुजन के कार्य को देखा, वे तुरंत उनकी प्रतिभा पहचान गए। यहां से रामानुजन के जीवन में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। हार्डी ने उस समय के विभिन्न प्रतिभाशाली व्यक्तियों को 100 के पैमाने पर आंका था। अधिकांश गणितज्ञों को उन्होने 100 में 35 अंक दिए और कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को 60 अंक दिए। लेकिन उन्होंने रामानुजन को 100 में पूरे 100 अंक दिए थे।
उन्होंने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया। प्रोफेसर हार्डी के प्रयासों से रामानुजन को कैंब्रिज जाने के लिए आर्थिक सहायता भी मिल गई। अपने एक विशेष शोध के कारण उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की उपाधि भी मिली, लेकिन वहां की जलवायु और रहन-सहन में वे ढल नहीं पाए। उनका स्वास्थ्य और खराब हो गया।
अंतिम सांस तक गणित
उनकी प्रसिद्घि बढ़ने लगी थी। उन्हें रॉयल सोसायटी का फेलो नामित किया गया। ऐसे समय में जब भारत गुलामी में जी रहा था, तब एक अश्वेत व्यक्ति को रॉयल सोसायटी की सदस्यता मिलना बहुत बड़ी बात थी। और तो और, रॉयल सोसायटी के पूरे इतिहास में इनसे कम आयु का कोई सदस्य आज तक नहीं हुआ है। रॉयल सोसायटी की सदस्यता के बाद वह ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने।
करना बहुत कुछ था, लेकिन स्वास्थ्य ने साथ देने से इनकार कर दिया। डॉक्टरों की सलाह पर भारत लौटे। बीमार हालात में ही उच्चस्तरीय शोध-पत्र लिखा। मौत की घड़ी की टिकटिकी तेज होती गई। और वह घड़ी भी आ गई, जब 26 अप्रैल, 1920 की सुबह हमेशा के लिए सो गए और शामिल हो गए गौस, यूलर, जैकोबी जैसे सर्वकालीन महानतम गणितज्ञों की पंक्ति में। 
आज महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की ९३ वीं पुण्यतिथि के अवसर पर पूरे हिन्दी ब्लॉग जगत और पूरी बुलेटिन टीम की ओर से हम उन को शत शत नमन करते है ! 
सादर आपका 
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Caricature: Children Park - चिल्ड्रन पार्क


Aina Sidd at Aina - ऐना

Children playing in the park. मेरा बनाया यह कैरिकेचर आपको कैसा लगा?  

शमशाद बेगम  1919-2013 : कैसा रहा हिंदी फिल्म संगीत में उनका सफ़र ?

शमशाद बेगम ये नाम आज का संगीत सुनने वालों के लिए अनजाना ही है। जाना हुआ हो भी तो कैसे ? आजकल पुराने गानों का मतलब साठ और सत्तर के दशक के गीतों से रह गया है। हद से हद पचास के दशक के गीत आप विविध भारती सरीखे सरकारी चैनलों पर सुन पाते हैं। पर जो गायिका चालिस और पचास के दशक में अपने कैरियर के सर्वोच्च शिखर पर हो उसके गीतों की झंकार आज कहाँ सुनाई देगी? अगर पिछले दशक में शमशाद बेगम का जिक़्र आया भी (अगर ये विषय आपकी पसंद का है तो पूरा लेख पढ़ने के लिए आप लेख के शीर्षक की लिंक पर क्लिक कर पूरा लेख पढ़ सकते हैं। लेख आपको कैसा लगा इस बारे में अपनी प्रतिक्रिया आप जवाबी ई मेल या वेब साइट पर जाक... more »

सपने में दिखी जगह पर पहुँच गए अचानक

बी एस पाबला at ज़िंदगी के मेले
दशकों से साथ रहे मेरे एक मित्र अक्सर कहते हैं कि दुनिया में जो अनोखा होता है तेरे साथ ही होता है. और कई बातों को उनहोंने सामने रख कर अपने कथन को सही साबित किया. ऐसा ही कुछ इस बार भी हुया. पिछले सप्ताह पुणे में रह रही बिटिया ने फोन पर संपर्क कर [...] The post सपने में दिखी जगह पर पहुँच गए अचानक appeared first on ज़िंदगी के मेले.

घुटन के गुब्बारे

venus****"ज़ोया" at चाँद की सहेली****
*कस के हाथ कानों पे रखे थे मैंने * *फिर भी यूँ लग रहा था मानो * *शोर दिमाग की नसें चीर डालेगा * *घुटन के गुब्बारे उफन उफन के * *छत से टकराते और लौट आते * *सारा कमरा भर गया गुब्बारो से * *दबाव तेज़ी से बढ़ रहा था उनमे * *और बढ़ता जा रहा था उनका आकार भी* *देखते ही देखते संख्या भी बढने लगी * *और बढ़ता जा रहा था उनके टकराने से * *उत्पन होता शोर भी !* * * *और फिर एक धमाका - "बुम्म्ब " * *जहाँ तहां बिखर गये गुब्बारों के चीथड़े * *इक गर्म सा टुकड़ा आँख पे आ गिरा* *आह ! और नींद से जाग उठी * * * *जाने मैं सपने में थी के * *सपने में वास्तविकता थी !* * * *दबाव इतना बढ़ गया गुब्बारों में की स... more »

आदम से आजम तक

शिवम् मिश्रा at पोलिटिकल जोक्स - Political Jokes
*"निकलना ख़ुल्द से 'आदम' का सुनते आये थे लेकिन ; * * * *बड़े बेआबरू हो कर अमरीकी हवाई अड्डे से 'आजम' निकले !!"*

मुझको भी तुम औरत कर दो...

मेरे कानों में बाँध दो झनकते सन्नाटे... मेरे होंठों पे सुर्ख लाल सी चीखें रख दो... मेरे माथे पे गोल चोट दो, कि खून रिसे... मेरे हाथों मे गोल खनखनाती हथकड़ियाँ... मेरे सूखे हुए अश्कों में अंधेरा घोलो... सज़ा दो उसको मेरी आँख पे काजल की तरह... गले में बाँध दो मजबूरियों का साँप कोई... मेरी चोटी में अपनी काली हसरतें भर दो... अपनी आँखों की पुतलियों को तुम बड़ा करके... उन्हे जोड़ो, मेरे सीने से बाँध दो उनको.... मेरी कमर पे अपनी आँख की हवस बांधो.... हो मेरी उंगलियों में आग का छल्ला कोई... मेरे पैरों में चमचमाती बेड़ियाँ बांधो... उनमें खामोशियों के सुन्न से घुंघरू भी हों... तुमने मर्दानगी... more »

अब बस बहुत हो चुका ....

अभी लोग दामिनी कांड को भूले भी नहीं थे कि एक और शर्मनाक वाक्या हो गया (गुड़िया)। ना जाने क्या हो गया है दिल्ली वालों को, बल्कि अकेली दिल्ली ही क्यूँ, हमारे समाज में ऐसे अपराधों की वृद्धि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती ही जा रही है। फिर क्या दिल्ली, क्या मुंबई और क्या बिहार, इस कदर संवेदन हीन हो गया है इंसान कि उसकी सोचने समझने शक्ति जैसे नष्ट ही हो गयी है। शर्म आनी चाहिए इस पुरुष प्रधान देश के पुरुषों को जो इस कदर गिर गए हैं कि एक पाँच साल की मासूम बच्ची तक को नहीं बख़्शा गया। हालांकी ऐसा पहली बार नहीं हुआ है पहले भी इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं। खास कर दामिनी कांड के  more »

मैं शर्मिंदा हूँ !

हाँ मैं शर्मिंदा हूँ ! क्योंकि मैं पुरुष हूँ, क्योंकि मैं भारतीय हूँ हाँ मैं शर्मिंदा हूँ ! क्योंकि मैं निवासी हूँ उस शहर का जहां महफूज नहीं है, "मासूम बच्ची" भी हाँ मैं शर्मिंदा हूँ ! क्योंकि पहले मैं शान से अपने बिहारी होने पर करता था गर्व क्योंकि ये भूमि सीता-बुद्ध-महावीर-गुरु गोविंद की भूमि थी बेशक लचर शासन व्यवस्था/ साक्षरता ने हमारे बिहार को बना दिया सबसे गरीब पर हम बिहारी कभी दिल से गरीब नहीं रहे पर, आज ये भूमि खूंखार बलात्कारियों की जन्मभूमि कहला रही है हाँ मैं शर्मिंदा हूँ ! (ये बात दिल को लगती है, और बुरी भी है... जो बिहार आज भी सबसे ज्यादा प्रशासनिक अधि... more »

door koi gaye.. shamshad begum- lata- mohmmad rafi -shakeel badayuni- na...

Movie : Baiju Baawraa (1952), Singers : Lata M angeshkar, Shamshad Begam, Mohammad Rafi, Lyricist : Shakeel Badayuni, Music Director : Naushad, सदाबहार शमशाद बेगम हमें अलविदा कह जन्नतनसीब हो गयीं लेकिन उनके गाये बेहद खूबसूरत गीत हमेशा उनकी याद बन कर हमारी सुबह शामों को खुशनुमां बनाते रहेंगे ! उन्हीं के गाये इस मधुर गीत से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित है ! साधना वैद

पेंसिल से ऐसे खुद करें अपने रोगों का इलाज

पेंसिल से संभव है दर्द का इलाज जी हां हमारे हथेली में शरीर के हर अंग के लिए एक पाइंट होता है। हथेली के इन पाइन्ट्स में जो पाइन्ट जिस अंग के लिए होता है उसे दबाने पर वहां का दर्द खत्म हो जाता है। उदाहरण के लिए अगर किसी के सिर में दर्द है तो हथेली पर उपस्थित सिरदर्द के पाइंट को दबाने पर दर्द कम होने लगता है। पेंसिल थेरेपी शारीरिक दर्द और टेंशन को मिटाने की एक आसान पद्धति है। इस थेरेपी से एक्यूपे्रशर,एक्यूकपंचर, सु-जोक, रेफ़्लेक्सोलोजी, इत्यादि के लाभ मिलते हैं लेकिन इसे सीखना और करना बहुत सरल है। जिनके शरीर में दर्द या तनाव हो उन्हें यह थेरेपी करते समय अपनी उंगली पर दर्द का अनुभव हो... more »

गुड़िया भीतर गुड़ियाएं

varsha at likh dala
हम सब गुस्से में हैं। हमारीसंवेदनाओं को एक  बार फिरबिजली के नंगे तारों ने छू दिया है।हम खूब बोल रहे हैं, लिख रहे हैंलेकिन  कोई नहीं बोल रहा है तोवो सरका र और कानून व्यवस्था  के लिए  ज़िम्मेदार लोग। खूबबोल-लिख कर  भी लग रहा है किक्या यह काफी है ? कोई हल है हमारे पास कि  बच्चोंका  यौन शोषण न हो और बेटियोंके  साथ बलात्कार का  सिलसिलारुक जाए। ऐसी जादू की  छड़ी किसी कानून के पास नहीं लेकिन कानून
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

डर लगता है

प्रिये ब्लॉगर मित्रों 
प्रस्तुत है आज की बुलेटिन ताज़ा लिखी एक हास्य कविता के साथ 


दरिंदगी इस कदर बढ़ गई है ज़माने में
डर लगता है यारो तार पर अस्मत सुखाने में

लूटेरे हर जगह फिरते मुंडेरों पे, शाख़ो पे
बना कर भेस अपनों सा लपकते हैं लाखों पे

न लो रिस्क तुम बच के ही रहना दरिंदो से
दिखने में कबूतर हैं ये गिद्ध रुपी परिंदों से

भूलकर भी मत सुखाना अस्मत को तार पर
मंडराते फिरते है रक्तपिपासु वैम्पायर रातभर

इज़्ज़त तार कर देंगे तार पर देख अस्मत को
वापस फिर न आती लौट कर गई शुचिता जो

संभालो पवित्रता अपनी खुद अब दोनों हाथों से
खत्म कर दो हैवानो को जीवन की बारातों से

चलाओ बत्तीस बोर कर दो छेद इतने तुम इनमें
मरें जाके नाले में इंसानियत बची नहीं जिनमें

दरिंदगी इस कदर बढ़ गई है ज़माने में
डर लगता है यारो तार पर अस्मत सुखाने में

आज की कड़ियाँ












उम्मीद है आपको बुलेटिन पसंद आएगा | आभार |
तुषार राज रस्तोगी 

जय बजरंगबली महाराज | हर हर महादेव शंभू  | जय श्री राम 

बुधवार, 24 अप्रैल 2013

गुरु और चेला.. ब्लॉग बुलेटिन

कई साल पहले एक किस्सा सुना था आईए आज आपको भी सुनाता हूं.. "एक साधू अपनें चेलों को शिक्षा देते थे, नारी की इज्जत करो, सम्मान करो। नारी पूजनीय है और नारी देवी है" सभी चेले अपनें गुरु को अपना आदर्ष समझते और गुरु देव के कहेनुसार ब्रम्हचर्य पालन करते। 

एक बार गुरु जी अपनें एक चेले के साथ दूर किसी देश जा रहे थे और रास्ते में एक नदी पडी। नदी किनारे एक स्त्री रो रही थी गुरुजी नें रोनें का कारण पूछा तो उसनें बताया की उसे नदी पार करनी है और इस धार में उसकी हिम्मत नहीं हो रही अकेले नदी पार करनें की। गुरुजी नें उस स्त्री का हाथ पकडा और उसको नदी पार करा दी। गुरुजी को स्त्री का हाथ पकडे देख चेले की मति भ्रमित हो गई। चेला सोचने लगा की कैसा ढोंगी गुरु है। हम लोग स्त्री से दूर रहें, ब्रम्हचारी बन के रहें और यह मजे करता रहे। पूरा दिन चेला गुरु से कटा कटा रहा। गुरुजी नें शाम होनें पर चेले से उसकी बेचैनी का कारण पूछा तो चेला बोला अब बस करो और तुम एक नम्बर के ढोंगी हो। हमको स्त्री से दूर रहनें की शिक्षा देते हो और खुद एक मौका नहीं चूकते। 

गुरु जी ने धैर्य पूर्वक चेले की बात सुनी और बोले, मैं तो उस स्त्री को नदी किनारे ही रख आया था तुम उसे क्यों दिन भर उठाए घूम रहे हो। गुरु के गूढ वचन सुन कर चेला नतमस्तक हो गया। 

मित्रों यह एक कहानी नहीं है आज कल हम और आप न जानें कैसे कैसे कठिन मानसिक चुनौतियों से गुजरते हैं और उनमें से हर कुछ शायद हमारी खुद ही की करनी का ही फ़ल होता है। अगर हम साफ़ हॄदय से हर काम करे और अपनी दैनिक दिनचर्या में इमानदारी रखें तो फ़िर कितनी आसानी होगी न... 



सोच कर देखिए....

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आपका देव

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

बिस्मिल का शेर - आजाद हिंद फौज - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,

प्रणाम !

कभी बिस्मिल जी ने कहा था ...

" ए शहीद ए मुल्क ओ मिल्लत ... मैं तेरे ऊपर निसार ... 
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ... गैर की महफिल मे है ! "


बिस्मिल जी का कहा यह शेर और भी चमक पा गया जब ब्रिटेन के चेल्सी स्थित नेशनल म्यूजियम में शनिवार को आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में 100 से अधिक हस्तियों ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1944 में इंफाल और कोहिमा के नजदीक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली आजाद हिंद फौज और जापान की संयुक्त सेना को पीछे हटाने के लिए ब्रिटेन की सेना के संघर्ष को ब्रिटिश सेना से जुड़ी अब तक की सबसे बड़ी लड़ाई घोषित किया ।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1944 में इंफाल और कोहिमा के नजदीक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली आजाद हिंद फौज और जापान की संयुक्त सेना को पीछे हटाने के लिए ब्रिटेन की सेना को काफी संघर्ष करना पड़ा था। इसे ब्रिटिश सेना से जुड़ी अब तक की सबसे बड़ी लड़ाई घोषित किया गया है। चेल्सी स्थित नेशनल म्यूजियम में शनिवार को आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में 100 से अधिक हस्तियों ने इस लड़ाई के पक्ष में मतदान किया।

वर्ष 1944 में भारत के पूर्वोत्तर इलाके में हुई इस लड़ाई ने नेशनल आर्मी म्यूजियम की ओर से कराई गई प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल किया है। ब्रिटेन की सबसे महान लड़ाई की पहचान करने के लिए आयोजित की गई इस प्रतियोगिता में इसे सबसे ज्यादा मत मिले। इंफाल और कोहिमा की लड़ाई में लेफ्टिनेंट जनरल विलियम स्लिम के नेतृत्व में ब्रिटेन और भारतीय सेना ने जापानी सेना को पीछे खदेड़ दिया था। इस लड़ाई में जापान और आजाद हिंद फौज के करीब 53 हजार सैनिक मारे गए थे और कई लापता हो गए थे। इंफाल में ब्रिटिश सेना के 12,500 सैनिक हताहत हुए थे, जबकि कोहिमा में अन्य चार हजार सैनिक मारे गए गए थे।

वोटिंग में इंफाल-कोहिमा की इस लड़ाई को पांच लड़ाइयों की सूची में सबसे पहले पायदान पर रखा गया है। इंफाल-कोहिमा की जंग को आधे से ज्यादा मत हासिल हुए। वर्ष 1944 में ही हुई नॉरमैंडी की लड़ाई को 25 फीसद मत हासिल हुए और यह दूसरे स्थान पर रही, जबकि 1815 में लड़ी गई वाटरलू की जंग 22 फीसद वोट के साथ तीसरे पायदान पर रही। रॉयल हिस्टोरिकल सोसायटी के फैलो व लेखक डॉक्टर रॉबर्ट लेमैन ने इंफाल-कोहिमा लड़ाई के संबंध में करीब 40 मिनट तक अपनी प्रस्तुति दी। वर्ष 1944 में इंफाल की लड़ाई मार्च-जुलाई तक चली थी, जबकि कोहिमा की लड़ाई अप्रैल में शुरू होकर जून में समाप्त हो गई थी। डॉ. लेमैन ने कहा, "मुझे लग रहा था कि डी-डे या वाटरलू जैसी बड़ी लड़ाइयों में से ही कोई विजेता घोषित होगी। मुझे खुशी है कि इंफाल-कोहिमा को सबसे बड़ी लड़ाई घोषित किया गया। किसी भी लड़ाई की महानता उसके राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक असर से आंकी जाती है।"

अब जब दुश्मन भी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और आज़ाद हिन्द फ़ौज के रण कौशल के गुण गा रहे है ... क्या कोई सरकारी इतिहासकार यह बताने का कष्ट करेगा कि 1944 मे जब यह लड़ाई लड़ी जा रही थी तब भारत मे इस लड़ाई को किस रूप मे देखा या दिखाया गया था ???

शायद ही कोई जवाब मिले ...

दरअसल उस दौरान अंग्रेजों और उनके कोंग्रेसी सहयोगी मित्रों ने उस समय कोई कसर नहीं छोड़ी थी कि भारत की आम जनता तक यह समाचार पहुँचे ही नहीं कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और आज़ाद हिन्द फ़ौज भारत मे दाखिल हो चुकी है और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा रही है !

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ज़िंदाबाद ... 
आज़ाद हिन्द फौज ज़िंदाबाद ...

सादर आपका 


शिवम मिश्रा  
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माँ और बेटा...

Archana at अपना घर
*यहाँ आपको मिलेंगी सिर्फ़ अपनों की तस्वीरें जिन्हें आप सँजोना चाहते हैं यादों में.... ऐसी पारिवारिक तस्वीरें जो आपको अपनों के और करीब लाएगी हमेशा...आप भी भेज सकते हैं आपके अपने बेटे/ बेटी /नाती/पोते के साथ आपकी तस्वीर मेरे मेल आई डी- archanachaoji@gmail.com पर साथ ही आपके ब्लॉग की लिंक ......बस शर्त ये है कि स्नेह झलकता हो तस्वीर में.....* *और आज की तस्वीर में है प्रशान्त यानि पी डी.......अपनी माताजी "मम्मी" के साथ (यही नाम बताया पी डी ने...:-) )* *और प्रशान्त का ब्लॉग है --* *मेरी छोटी सी दुनिया*

टूटे रिश्तों को...जोड़ लेता हूँ !!!

Ashok Saluja at यादें...
*जिन्दगी के टूटे सिरों को * *मैं फिर से जोड़ लेता हूँ, * *ग़मों के बिछोने पर * *ख़ुशी की चादर ओड़ लेता हूँ... * *---अशोक 'अकेला'* *टूटे रिश्तों को...जोड़ लेता हूँ !!!* * अपने हौंसलो से, होड़ लेता हू* * मिले महोब्बत, निचोड़ लेता हूँ* * * * दुनियां के झूठे, रीति-रिवाजो से* * मुस्करा , मुहँ को मोड़ लेता हूँ* * * * अपने ग़मों के, बिछोने पर* * ख़ुशी की चादर, ओड़ लेता हूँ* * * * उलझी जिन्दगी, की डोर को* * हाथ से ख़ुद, तोड़ लेता हूँ* * * * अब तो आदत, सी हो गई है* * टूटे रिश्तों को, जोड़ लेता हूँ* * * * ज़माने संग, चल सकता नही अब* * बस 'अकेला' सपनों में, दोड़ लेता हूँ...* अशोक'अकेला'

"Ten On Ten"

माधव( Madhav) at माधव
माधव के क्लास मे पहला टेस्ट हुआ था. टेस्ट नंबर वैल्यू का था (Test of value). माधव का यह पहला लिखित टेस्ट (Written Test) था . इक्जाम का रिजल्ट बहुत उत्साहवर्धक रहा. माधव को दस मे दस नंबर मिले . क्लास टीचर ने कॉपी मे वेरी गुड लिखा और स्टीकर दिया .

तुम अपनी उड़ान भरो नभ में ............ प्यारी बेटियों के लिए .

तुम खूब पढ़ों तुम खूब बढ़ो आगे सदा ही बढ़ते रहना डरो न तुम कभी किसी  more »

क्या रटे रटाए और सुने सुनाये बयानों को सुनना हमारी मज़बूरी है !!

पूरण खण्डेलवाल at शंखनाद
देश के सामने स्थतियाँ बड़ी विकट है जिनको देश चलाने कि जिम्मेदारी दी वही देश को लुट रहे हैं ! अपनी जिम्मेदारियों में वो ना केवल नाकाम साबित हो रहें है वर्ना दीमक कि तरह देश को खोखला करते जा रहे है ! ना हमारी सीमाएं सुरक्षित है ना हमारे जंगल ,जमीं और नदियाँ सुरक्षित है ! आम आदमी भूख और भय के वातावरण में जी रहा है ! माँ,बहन बेटियाँ हमारी सुरक्षित नहीं है ! इसी देश के वाशिंदे शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर है ! इतना सब सामने होते हुए भी हमें केवल और केवल उन्ही घिसे पीटे और रटे रटाए बयानों को सुनना पड़ता है जिनको हम कितनी बार आगे भी सुन चुके होते हैं ! क्या उन्ही बयानों से हमारा भला  more »

इंसानी भेड़िये कहीं बाहर से नहीं आते ---

डॉ टी एस दराल at अंतर्मंथन
दिल्ली में एक पांच वर्षीय बच्ची के साथ हुए अमानवीय कुकृत्य से सारा देश शोकाकुल है और शर्मशार भी। क्रोधित भी है क्योंकि व्यवस्था से जैसे विश्वास सा उठ गया है। ऐसे में आम आदमी का गुस्सा उबल पड़ा है। प्रस्तुत हैं इसी विषय पर कुछ मन के उद्गार , एक कवि की दृष्टि से : १) दिल खुश हुआ कि, दिल्ली दमदार हुई , फिर एक बार पर, दिल्ली शर्मसार हुई। कुछ जंगली भेड़ियों की कारिस्तानी से, फिर दिल्ली में इंसानियत की हार हुई। २) निर्मल कोमल से, कच्ची धूप होते हैं, बच्चे भगवान् का ही स्वरुप होते हैं। जो मासूमों को कुचलते हैं बेरहमी से , उनके उजले चेहरे कितने कुरूप होते हैं। ३) सीने में जलन है... more »

महान फिल्म निर्देशक सत्यजित रे की २१ वीं पुण्यतिथि पर विशेष

शिवम् मिश्रा at बुरा भला
सत्यजित राय (बंगाली: সত্যজিৎ রায়) (२ मई १९२१–२३ अप्रैल १९९२) एक भारतीय फ़िल्म निर्देशक थे, जिन्हें २०वीं शताब्दी के सर्वोत्तम फ़िल्म निर्देशकों में गिना जाता है। इनका जन्म कला और साहित्य के जगत में जाने-माने कोलकाता (तब कलकत्ता) के एक बंगाली परिवार में हुआ था। इनकी शिक्षा प्रेसिडेंसी कॉलेज और विश्व-भारती विश्वविद्यालय में हुई। इन्होने अपने कैरियर की शुरुआत पेशेवर चित्रकार की तरह की। फ़्रांसिसी फ़िल्म निर्देशक ज़ाँ रन्वार से मिलने पर और लंदन में इतालवी फ़िल्म लाद्री दी बिसिक्लेत (Ladri di biciclette, बाइसिकल चोर) देखने के बाद फ़िल्म निर्देशन की ओर इनका रुझान हुआ। राय ने अपने जी... more »

वृद्धावस्था में नेत्ररोग मोतियाबिंद - आवश्यक जानकारी व उपचार.

जब किसी कारणवश आँख के लैंस की पारदर्शिता कम या समाप्त हो जाती है जिससे व्यक्ति को धुंधला दिखाई देने लगता है तो उस स्थिति को मोतियाबिंद कहते हैं । इस रोग का प्रभाव सामान्यतः वृद्धावस्था में अधिक होता है किन्तु कभी किन्हीं विशेष परिस्थितियों में युवा, बच्चे व नवजात शिशु पर भी इसका प्रभाव हो सकता है । इस रोग का समय रहते उपचार करवा लेने पर सामान्य दृष्टि पुनः प्राप्त की जा सकती है । *मोतियाबिंद का कारण* - सामान्यतः वृद्धावस्था, विटामिन तथा प्रोटीन जैसे पोषक तत्वों की शरीर में कमी, सूर्य किरण तथा विषाक्त पदार्थों के सेवन से होना पाया जाता है । मधुमेह, आनुवंशिकता तथा ... more »

काबुलीवाले ! अब मत आना

मैंने कभी नहीं सोचा था मैं ये रचनाएँ पोस्ट करुँगी, जिन मासूम चेहरों पर सिर्फ बेफिक्री होनी चाहिए उनके साथ हर जगह वेहशीपन हो रहा है,चाहें अपने हो या पराये, घरों में अनाथालयों में सब जगह वही हाल है, इस पोस्ट पर कमेंट बंद रख रहीं हूँ :-( (१ ) काबुलीवाले ! अब मत आना तुम्हारी पोटली डराती है तुम्हारा स्पर्श चौंकाता है बहेलिये से लगते हो छिप जाते है खरगोश से मासूम किन्ही कोनो में किलकारी अब सिसकी है चहकना सुबकने सा है (२) जिन खिलौनों को उनके बनाने वाले ठुकरा देते है उन्हें पाने वाले मनचाहा खेलते है तुम कहते हो ईश्वर है (३) सुना है प्रभु काम बहुत बढ़ गया है धरती पर विभाग शिफ्ट कर रहे हो ... more »

या फिर लिखते रहो यूँ ही कुछ कुछ -

रश्मि प्रभा... at मेरी भावनायें...
धूल से सने पाँव एक दूसरे के बाल खींचते हाथ तमतमाए चेहरे कान उमेठे जाने पर अपमानित चेहरा और प्रण लेता मन .... अगली बार देख लेंगे .... भाई-बहन के बीच का यह रिश्ता कुछ खट्टा कुछ मीठा कितना जबरदस्त !.... शैतानियों के जंगल से अगले कारनामे की तैयारी कितने मन से होती थी ! ...... फिर स्कूल,कॉलेज,किसी की नौकरी,किसी की शादी ..... कुछ उदासी,कुछ अकेलापन तो रहने लगा छुट्टियों का इंतज़ार छोटी छोटी लड़ाइयाँ अकेले होने का डर फिर भी शिकायतों की पिटारी .... अगली छुट्टी के लिए ! फिर अपना घर,अपनी परेशानी आसान नहीं रह जाती ज़िन्दगी उतनी जितनी माँ के आँचल में होती है एक नहीं कई तरफ दृष्टि घुम... more »

नन्ही चिरैया

Neelima at Rhythm
हौले हौले कदमो से चलती मैं नन्ही चिड़िया तेरे घोंसले की उड़ना हैं मुझे छूना हैं अनंत आकाश की ऊँचाई को मेरे नन्हे पंखो में परवाज नही हौसला हैं बुलंदी का भयभीत हैं अंदरूनी कोन आकाश भरा हुआ हैं बड़े पंखो वाले पक्षियों से सफ़ेद बगुले ही अक्सर शिकार करते हैं मूक रहकर माँ मैं नन्ही चिरैया कैसे ऊँचा उड़ पाऊंगी इन भयंकर पक्षियों में मैं कैसे पहचानू ? यह उड़ा न के साथी या दरिन्दे मेरी जात के आसमा से कहो थोडा ऊँचा हो जाये मुझे उड़ना हैं अन्तरिक्ष तलक........Neelima thank you so much

गुलाबी मैना

तिलयार नाम सुनते ही रोहतक की झील (और ब्लागर मीट) याद आती है, लेकिन यह एक चिड़िया का भी नाम है। मैना परिवार की इस चिड़िया को गुलाबी मैना भी कहा जाता है और इसका मधुर कन्नड़ नाम है, मधुसारिका। अंगरेजी नाम रोजी स्टारलिंग, रोजी पास्टर या रोजकलर्ड स्टारलिंग है। नवा-नइया तालाब के आसमान पर शाम का नजारा इनसेट में 24 मई 2000 को जारी डाक टिकट संकरी-पेन्ड्रीडीह बाइपास मार्ग पर बिलासपुर से लगभग 15 किलोमीटर दूर बेलमुड़ी (बेलमुण्डी) गांव में नवा तालाब को घेरे, अर्द्धचंद्राकार लंबाई में फैला नइया तालाब सड़क से दिखता है। तालाब के 'पुंछा' वाले हिस्से में 'पटइता' घास है। नइया तालाब का यह भाग लाख संख्‍... more »

कार्टून:-अरे मियां कुछ आराम से चला करो


धुंध दहशत की हर घर पलेगी------

पत्थरों का दर्द भी कोई दर्द है फूंक कर बैठो यहाँ पर गर्द है---- मुखबरी होगी यहीं से बैठकर अस्मिता की रात में खिल्ली उड़ेगी अफवाहों की जहरीली हवा से धुंध दहशत की हर घर पलेगी पीसकर खा रहे ताज़ी गुठलियाँ क्या करें थूककर चाटना फर्ज है---- पी रहे दांत निपोरे कच्ची दारु जो मिली ... more »

कर्म और अकमणयता

तुषार राज रस्तोगी at तमाशा-ए-जिंदगी
हे प्रभु! आपने तो बचपन से ही कर्म को प्रधानता दी फिर यह मध्यकाल आते-आते अकमणयता को क्यों बाँध लिया अपने सर का सेहरा बना कर, बनाकर एक अकमणयता की सेज तुम्हारी ये निद्रा तुम्हारे ही लिए नहीं समस्त जन को पीड़ा की सेज देगी बैठा कर स्वजनों को काँटों की सेज पर पहना कर काँटों के ताज को तुम ईशु नहीं कहलाओगे कहलाओगे सैय्याद तुम अपनी निद्रा त्यागो तुम कर्म की वो राह चुनो जो पीडित स्वजनों को रहत दे ऐसी राहत जिसे सुनकर मृत भी जी उठे
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

लेखागार