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बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

किस रूप मे याद रखा जाएगा जंतर मंतर को

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज कल दिल्ली का जंतर मंतर काफी चर्चा मे है पर दुख की बात यह है कि जिस कारण उसे चर्चा मे होना चाहिए उस कारण से अब शायद ही उसे कोई याद करता हो |
दिल्ली के जंतर मंतर का निर्माण सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1724 में करवाया था। यह इमारत प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है। जय सिंह ने ऐसी वेधशालाओं का निर्माण जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में भी किया था। दिल्ली का जंतर-मंतर समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है। मोहम्मद शाह के शासन काल में हिन्दु और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थित को लेकिर बहस छिड़ गई थी। इसे खत्म करने के लिए सवाई जय सिंह ने जंतर-मंतर का निर्माण करवाया। ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं। सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से वक्त और ग्रहों की स्थिति की जानकारी देता है। मिस्र यंत्र वर्ष के सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन को नाप सकता है। राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताता है।

पूरा लेख यहाँ पढ़ें |
यह दिल्ली में जन आंदोलनों /प्रदर्शनों/धरनों की एक जानी मानी जगह भी है । ऐसे मे यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या आने वाली पीड़ी या आज के बच्चे ... दिल्ली के 'जंतर मंतर' को केवल एक धरना स्थल के रूप मे जानेंगे !!??

आप का क्या कहना है इस बारे मे !?
सादर आपका 
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!!

8 टिप्पणियाँ:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

जिन बच्चों को दिलचस्पी है वे जंतर मंतर की महत्ता ज़रूर समझेंगे..फ़र्ज़ तो हमारा है कि हम उन्हें दिखाएँ..समझाएं...
लिंक्स जितने देखे बढ़िया हैं...बहुत सारे हैं...देखती हूँ धीरे धीरे...
अपनी रचना का link यहाँ पाकर खुशी हुई :-)
शुक्रिया शिवम्
सस्नेह
अनु

रश्मि शर्मा ने कहा…

बचपन में जब मैं पहली बार दि‍ल्‍ली गई थी तो जंतर-मंतर देखने की उत्‍सुकता चरम पर थी....और वाकई बहुत अच्‍छा लगा था....हमें महत्‍व समझाना होगा...बताना होगा....

सुंदर ब्‍लाग बुलेटि‍न...मेरी रचना शामि‍ल करने के लि‍ए आभार...

Rekha Joshi ने कहा…

शिवम् मिश्रा ji,bahut sundar links ,meri rachna ko shamil karne pr hardik abhar

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

इतिहास के गवाह आजकल अपने इतिहास के कारण कम और उनकी दीवारों पर लगे ज़ख्मों के कारण ज़्यादा जाने जाते हैं जिनमें फलाना लव्स ढिकाना और फलाना + फलानी गोद दिया गया होता है! वैसे ही जंतर मंतर आपने सही कहा धरने की जगह से दूर होने के बावजूद भी किसी और ही मायने में जाना जाता है!!
लिंक्स बहुत सारे हैं... देखता हूँ धीरे धीरे!!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर बुलेटिन !

आनन्द वर्धन ओझा ने कहा…

शिवम् भाई,
वर्त्तमान समय में 'जंतर-मंतर' की चिंता स्वाभाविक है, लेकिन मेरी कविता 'कृत्य का इतिहास' एक सहज चिंतन का प्रतिफल है, वह न भगवान् बुद्ध से सम्बद्ध है और न 'जंतर-मंतर' से! हाँ, रचना करते हुए 'आम आदमी' जरूर मेरी चिंता में रहा है! 'ब्लॉग बुलेटिन' में इसे शामिल करने के लिए आपका आभार!
'बुलेटिन' में सम्मिलित अन्य महत्त्व की रचनाएं देखने की राह आपने अवश्य खोल दी है, इसके लिए भी आभारी हूँ!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

सारे लिंक्स एक साथ मिल गए .......... अच्छा लगा सबको पढ़ कर :)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जंतर मंतर तो परजातंतर का पर्याय बन गया है।

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