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बुधवार, 30 अप्रैल 2014

पुराना- कुछ नया सा




थोड़ी विकृति सबके भीतर होती है 
थोड़ा स्वार्थ सबके अंदर पलता है 
क्रोध, झूठ,घृणा,साजिश की भावना 
विद्युत सी 
सबके अंदर कौंधती है 
भूख,प्यार,महत्वाकांक्षा 
इन्हीं रास्तों से गुजरती है 
… 
बिना किसी रुकावट के प्राप्य सम्भव ही नहीं !
रक्तबीज हमारी धमनियों में है 
न हो तो ईश्वर करेगा क्या ?
ईश्वर का कार्य है 
अन्याय का विनाश 
 अपने भीतर जो अन्यायी ख्याल पनपते हैं 
उनसे हम नज़रें चुरा सकते हैं 
ईश्वर नहीं !!


मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को सादर नमस्कार।।

आज भारत के प्रख्यात तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा  की 95वीं सालगिरह है।

इस खास अवसर पर दुनिया के नंबर वन सर्च इंजन गूगल ने डूडल बनाकर उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की।


आज उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ की 95वीं सालगिरह पर हिन्दी ब्लॉग जगत और ब्लॉग बुलेटिन टीम उन्हें शत - शत करता है। सादर।।


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर  ………





मायरा....

तुझ तक

गज़ल...

फेसबुक

स्याह चेहरे वाली चिमनी

वीर बालक स्कन्दगुप्त

विश्व नृत्य दिवस

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आज कि बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे। शुभरात्रि।।

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

दुनिया गोल है - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

दुनिया गोल है ... बिना विज्ञान की सहायता लिए केवल एक लतीफे के माध्यम से यह साबित करने की कोशिश कर रहा हूँ ... 


जल्द ही हवाई यात्रा में विमान के टेकऑफ करने से पहले मोबाइल फोन, टैबलेट व लैपटॉप बंद करने की घोषणा की बजाय एयरहोस्टेस से यह सुनने को मिल सकता है कि अपने मोबाइल फोन को 'फ्लाइट मोड' पर कर लें।
यह इसलिए, क्योंकि नागरिक विमानन मंत्रालय (डीजीसीए) ने उड़ानों के दौरान मोबाइल फोन, टैबलेट व लैपटॉप चालू रखने की मंजूरी दे दी है। डीजीसीए ने बुधवार को उस नियम में बदलाव कर दिया, जिसमें उड़ानों के दौरान पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज (पीईडी) के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई थी।
सिर्फ फ्लाइट मोड में
सिविल एविएशन रिक्वायरमेंट (सीएआर) यानी नए नियम के तहत अब उड़ानों में इन उपकरणों का इस्तेमाल किया जा सकेगा, लेकिन सिर्फ 'नॉन ट्रांसमिटिंग मोड या फ्लाइट मोड' में ही।
क्या होंगे बदलाव
नए नियमों के मुताबिक उड़ान के दौरान यात्री अपने मोबाइल फोन, टैबलेट, लैपटॉप को फ्लाइट मोड में चालू रख सकेंगे। यात्री इन उपकरणों पर वीडियो गेम खेलना, संगीत सुनना, पहले से लोड की गई फिल्में देखना या ई-मेल टाइप करने जैसे काम कर सकेंगे। हालांकि ये ई-मेल तभी भेजे जा सकेंगे, जब विमान लैंड करेगा।
डीजीसीए ने फ्लाइट क्रू के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। नए नियम में यह भी कहा गया है कि सभी विमानन कंपनियां इन उपकरणों से किसी भी व्यवधान या धुआं व आग पैदा होने के बारे में डीजीसीए को सूचित करेंगी।
गौरतलब है कि विमानन कंपनियां लंबे समय से इस सुविधा की मांग करती आ रही हैं। पिछले सप्ताह भी विमान कंपनियों ने इसी मुद्दे पर सरकार के साथ बैठक की थी। इससे खास तौर पर कम किराए वाली विमानसेवाओं के यात्रियों को फायदा होगा, क्योंकि ऐसी उड़ानों में मनोरंजन के साधन मुहैया नहीं कराए जाते हैं।
इससे पहले अमेरिका व यूरोप में उड़ानों के दौरान इन उपकरणों के इस्तेमाल की छूट मिल चुकी है। अब भारत भी इसकी मंजूरी वाले चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो जाएगा।
- See more at: http://naidunia.jagran.com/technology/tech-dgca-approves-in-flight-mobile-laptop-and-tablet-operations-76951#sthash.dhNuH04T.dpuf

बॉस (सेक्रेटरी से): तुम और मैं एक हफ्ते के लिए लंदन जा रहे हैं। ज़रूरी मीटिंग है।

 सेक्रेटरी (पति से): ऑफिस के काम से मुझे बॉस के साथ एक हफ्ते के लिए लंदन जाना है। जरूरी मीटिंग है।

 पति (अपनी गर्लफ्रेंड से, जो एक टीचर है): मेरी बीवी एक हफ्ते के लिए बाहर जा रही है। उसके जाते ही तुम घर आ जाना।

 गर्लफ्रेंड (स्टूडेंट्स से): बच्चो, मैं एक हफ्ते के लिए बाहर जा रही हूं, इसलिए तुम्हारी एक हफ्ते की छुट्टी।

 एक स्टूडेंट (अपने पिता से, जो कि बॉस है): डैड, मेरी एक हफ्ते की छुट्टी है। मैं घर आ रहा हूं, आप कहीं मत जाना।

 बॉस (सेक्रेटरी से): मेरा बेटा आ रहा है। लंदन जाना कैंसल।

 सेक्रेटरी (पति से): लंदन जाना कैंसल हो गया।

 पति (गर्लफ्रेंड से, जो कि टीचर है): पत्नी नहीं जा रही। हमारा प्रोग्राम कैंसल।

 टीचर (स्टूडेंट्स से): बच्चो, आपकी छुट्टियां कैंसल।

 स्टूडेंट (पिता से, जो कि बॉस है): पापा, मैं नहीं आ सकता। छुट्टियां कैंसल हो गईं।
 .
 .
 .
 .
 बॉस (सेक्रेटरी से): मेरा बेटा नहीं आ रहा, हम एक हफ्ते के लिए लंदन जा रहे हैं!

तो साहब बताएं ... क्या यह साबित हुआ कि दुनिया गोल है !?
 
सादर आपका 
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किताबों की दुनिया -94

नीरज गोस्वामी at नीरज 





धर्मतल्ला के सिनेमाघर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा at कुछ अलग सा 

गीता का ज्ञान ,पर किसके लिये .....

निवेदिता श्रीवास्तव at झरोख़ा 



 
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!!
जल्द ही हवाई यात्रा में विमान के टेकऑफ करने से पहले मोबाइल फोन, टैबलेट व लैपटॉप बंद करने की घोषणा की बजाय एयरहोस्टेस से यह सुनने को मिल सकता है कि अपने मोबाइल फोन को 'फ्लाइट मोड' पर कर लें।
यह इसलिए, क्योंकि नागरिक विमानन मंत्रालय (डीजीसीए) ने उड़ानों के दौरान मोबाइल फोन, टैबलेट व लैपटॉप चालू रखने की मंजूरी दे दी है। डीजीसीए ने बुधवार को उस नियम में बदलाव कर दिया, जिसमें उड़ानों के दौरान पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज (पीईडी) के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई थी।
सिर्फ फ्लाइट मोड में
सिविल एविएशन रिक्वायरमेंट (सीएआर) यानी नए नियम के तहत अब उड़ानों में इन उपकरणों का इस्तेमाल किया जा सकेगा, लेकिन सिर्फ 'नॉन ट्रांसमिटिंग मोड या फ्लाइट मोड' में ही।
क्या होंगे बदलाव
नए नियमों के मुताबिक उड़ान के दौरान यात्री अपने मोबाइल फोन, टैबलेट, लैपटॉप को फ्लाइट मोड में चालू रख सकेंगे। यात्री इन उपकरणों पर वीडियो गेम खेलना, संगीत सुनना, पहले से लोड की गई फिल्में देखना या ई-मेल टाइप करने जैसे काम कर सकेंगे। हालांकि ये ई-मेल तभी भेजे जा सकेंगे, जब विमान लैंड करेगा।
डीजीसीए ने फ्लाइट क्रू के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। नए नियम में यह भी कहा गया है कि सभी विमानन कंपनियां इन उपकरणों से किसी भी व्यवधान या धुआं व आग पैदा होने के बारे में डीजीसीए को सूचित करेंगी।
गौरतलब है कि विमानन कंपनियां लंबे समय से इस सुविधा की मांग करती आ रही हैं। पिछले सप्ताह भी विमान कंपनियों ने इसी मुद्दे पर सरकार के साथ बैठक की थी। इससे खास तौर पर कम किराए वाली विमानसेवाओं के यात्रियों को फायदा होगा, क्योंकि ऐसी उड़ानों में मनोरंजन के साधन मुहैया नहीं कराए जाते हैं।
इससे पहले अमेरिका व यूरोप में उड़ानों के दौरान इन उपकरणों के इस्तेमाल की छूट मिल चुकी है। अब भारत भी इसकी मंजूरी वाले चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो जाएगा।
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जल्द ही हवाई यात्रा में विमान के टेकऑफ करने से पहले मोबाइल फोन, टैबलेट व लैपटॉप बंद करने की घोषणा की बजाय एयरहोस्टेस से यह सुनने को मिल सकता है कि अपने मोबाइल फोन को 'फ्लाइट मोड' पर कर लें।
यह इसलिए, क्योंकि नागरिक विमानन मंत्रालय (डीजीसीए) ने उड़ानों के दौरान मोबाइल फोन, टैबलेट व लैपटॉप चालू रखने की मंजूरी दे दी है। डीजीसीए ने बुधवार को उस नियम में बदलाव कर दिया, जिसमें उड़ानों के दौरान पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज (पीईडी) के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई थी।
सिर्फ फ्लाइट मोड में
सिविल एविएशन रिक्वायरमेंट (सीएआर) यानी नए नियम के तहत अब उड़ानों में इन उपकरणों का इस्तेमाल किया जा सकेगा, लेकिन सिर्फ 'नॉन ट्रांसमिटिंग मोड या फ्लाइट मोड' में ही।
क्या होंगे बदलाव
नए नियमों के मुताबिक उड़ान के दौरान यात्री अपने मोबाइल फोन, टैबलेट, लैपटॉप को फ्लाइट मोड में चालू रख सकेंगे। यात्री इन उपकरणों पर वीडियो गेम खेलना, संगीत सुनना, पहले से लोड की गई फिल्में देखना या ई-मेल टाइप करने जैसे काम कर सकेंगे। हालांकि ये ई-मेल तभी भेजे जा सकेंगे, जब विमान लैंड करेगा।
डीजीसीए ने फ्लाइट क्रू के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। नए नियम में यह भी कहा गया है कि सभी विमानन कंपनियां इन उपकरणों से किसी भी व्यवधान या धुआं व आग पैदा होने के बारे में डीजीसीए को सूचित करेंगी।
गौरतलब है कि विमानन कंपनियां लंबे समय से इस सुविधा की मांग करती आ रही हैं। पिछले सप्ताह भी विमान कंपनियों ने इसी मुद्दे पर सरकार के साथ बैठक की थी। इससे खास तौर पर कम किराए वाली विमानसेवाओं के यात्रियों को फायदा होगा, क्योंकि ऐसी उड़ानों में मनोरंजन के साधन मुहैया नहीं कराए जाते हैं।
इससे पहले अमेरिका व यूरोप में उड़ानों के दौरान इन उपकरणों के इस्तेमाल की छूट मिल चुकी है। अब भारत भी इसकी मंजूरी वाले चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो जाएगा।
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रविवार, 27 अप्रैल 2014

ब्लॉग बुलेटिन और शबरी के बेर



कॉलेज में ख़ाली समय में हम सारे दोस्त ग्राउण्ड में गोल बनाकर बैठ जाते थे और गाने, चुटकुले, फ़िल्मी डायलॉग जैसे खेल एंजॉय करते थे. मेरे ज़िम्मे आता था उन सारे खेलों की ऐंकरिंग करना. ऐसे में जब भी कोई गाना गाने वाला आता तो मैं कुछ इस अंदाज़ में उद्घोषणा किया करता था – “हाँ तो बहनों और भाइयों, अब आपके सामने हम पेश करने जा रहे हैं मुहम्मद रफ़ी का गाना, जो किशोर कुमार की आवाज़ में मन्ना दे साहब ने गाया है और उसे प्रस्तुत कर रहे हैं हिमांशु कुमार!!

बड़ा घिसा हुआ चुटकुला लगा न आप लोगों को. है ही, लेकिन आज अचानक याद आ गया तो इसका कोई न कोई कारण तो होगा ही. तो चलिये एक और म्यूज़िकल सा मुहावरा दोहरा दूँ, शायद आपको कुछ याद आ जाये. “अपनी डफली – अपना राग!” बात भी सही है भाई, जब डफली अपनी है तो राग भी तो अपना ही होगा ना, मुहम्मद रफ़ी की आवाज़ में किशोर कुमार का गाना तो नहीं हो सकता न. वही तो.
ये मुहावरे भी अजीब होते हैं, कहना कुछ चाहते हैं और कहते कुछ और हैं. अब देखिये न, मेरी बकवास झेलने के बाद तो आप भी सोचते होंगे कि “ऊँची दुकान – फीके पकवान”. पकवान भले फीके हों लेकिन दुकान ऊँची बताने का शुक्रिया. इन दिनों मार्केट में एक नया मुहावरा आया हुआ है: अपनी थाली – अपना पकवान! मतलब तो इसका पता नहीं, लेकिन विद्वज्जनों के श्रीमुख से निकला हरेक शब्द अपने लिये तो किसी शास्त्र से कम नहीं.

हमने तो यही माना है कि हमारा घर है और आप हमारे मेहमान हैं. अब आपको हम ये थोड़े न कहेंगे कि आप अपनी थाली घर से लेकर आएँ. भई, हमने बुलाया है तो जो थाली-पत्तल होगा हमारे यहाँ उसी में जिमाएँगे आपको, मगर जो भी जिमाएँगे प्रेम से. रही बात पकवान की तो जो रूखी-सूखी है उसे शबरी का बेर समझ कर आपकी थाली में परोसते हैं या सुदामा के चावल मानकर आपका स्वागत करते हैं.

किस्सा मुख़तसर ये कि ये ब्लॉग-बुलेटिन हमारा घर है, बुलेटिन पर किसी भी दिन अपनी बात कहने वाला जो कह गया वो थाली है और ये जो लिंक्स हमने ब्लॉग के वन-उपवन से चुने हैं, उसे आप शबरी के बेर समझिये. इस देश में अतिथि को देवता का दर्ज़ा दिया जाता है. आप हमारे लिये देवता समान हैं. खाने में नमक कम हो, चीनी ज़्यादा हो, मिर्च तेज़ हो गई हो, खाना बासी हो, रोटी जल गई हो, चावल कच्चा रह गया हो, दाल में पानी कम पड़ा हो, सब्ज़ी बेमौसम हो और बेस्वाद लगी हो तो बेशक हमें बताएँ. हम सिर झुकाकर माफ़ी माँग लेंगे. आप दुबारा हमारे घर पधारें और हमारे यहाँ जूठन गिराने का सौभाग्य हमें प्रदान करें इसके लिये हम उन कमियों को दूर करने का प्रयास करेंगे.

आख़िर में एक बड़ी छोटी सी घटना. मेरे छोटे भाई का एक दोस्त है. वो जब भी कहीं बाहर रेस्त्राँ में सभी दोस्तों के साथ खाना खाने जाता था, तो बिल चाहे कोई भी चुकाए वो रिसेप्शन पर ये ज़रूर कहता था – भाई साहब! थोड़ी क्वालिटी सुधारिये! एक बार सभी दोस्तों ने मिलकर उससे पूछ ही लिया कि यार क्वालिटी में क्या सुधार चाहिये तुम्हें? तो उसका जवाब बड़ा सिम्पल सा था – कुछ नहीं, बस ऐसा कहते रहना चाहिये, इससे अपनी इम्पॉर्टेंस बनी रहती है!”

ख़ैर, आप सब हमारे लिये इम्पॉर्टेण्ट हैं, नहीं तो आज के टाइम में बहुत से ख़र्च हो गये, पर हमारी टीम आज भी आप के आतिथ्य को सदा तत्पर है. आफ्टर ऑल - थाली भले हमारी हो, पकवान भले हमारा हो, लेकिन स्वाद तो आप से ही आता है!


शबरी के बेर










और

शनिवार, 26 अप्रैल 2014

एक गणित के खिलाड़ी के साथ आज की बुलेटिन....

आज श्रीनिवास रामानुजन् की पुण्यतिथि है...  श्रीनिवास रामानुजन् (22 दिसम्बर, 1887 – 26 अप्रैल, 1920) एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्रों में गहन योगदान दिए। इन्होंने अपने प्रतिभा और लगन से न केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत अविष्कार किए वरन भारत को अतुलनीय गौरव भी प्रदान किया। ये बचपन से ही विलक्षण प्रतिभावान थे। इन्होंने खुद से गणित सीखा और मात्र 33 साल की उम्र में देहत्याग करने से पहले अपने जीवनभर में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनसे प्रेरित शोध आज तक हो रहा है, यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है। हाल में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये रामानुजन जर्नल की स्थापना की गई है....
रामानुजन की पारंपरिक शिक्षा बस दसवीं तक ही थी, दसवीं के बाद ये गणित में इस कदर डूब गए कि गणित को छोडकर बाकी सारे विषयों में वो दो-दो बार अनुत्तीर्ण हुये....
विद्यालय छोड़ने के बाद का पांच वर्षों का समय इनके लिए बहुत हताशा भरा था। भारत इस समय परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा था। चारों तरफ भयंकर गरीबी थी। ऐसे समय में रामानुजन के पास न कोई नौकरी थी और न ही किसी संस्थान अथवा प्रोफेसर के साथ काम करने का मौका। बस उनका ईश्वर पर अटूट विश्वास और गणित के प्रति अगाध श्रद्धा ने उन्हें कर्तव्य मार्ग पर चलने के लिए सदैव प्रेरित किया। वे इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी गणित के अपने शोध को चलाते रहे। इस समय रामानुजन को ट्यूशन से कुल पांच रूपये मासिक मिलते थे और इसी में गुजारा होता था। रामानुजन का यह जीवन काल बहुत कष्ट और दुःख से भरा था। इन्हें हमेशा अपने भरण-पोषण के लिए और अपनी शिक्षा को जारी रखने के लिए इधर उधर भटकना पड़ा और अनेक लोगों से असफल याचना भी करनी पड़ी.... लेकिन एक दिन वो सफल हुये उनके शोध पत्रों को विदेशों में सराहा गया, लेकिन बुरा वक़्त बीमारी के रूप में उनके साथ ही था... मात्र 33 साल की उम्र मे चला गया ये महान गणितज्ञ.... उन्हें ब्लॉग-बुलेटिन की टीम की तरफ से उनके योगदान के लिए धन्यवाद और श्रद्धांजलि.....

आज की धड़ाधड़ बुलेटिन में सबसे पहले नज़र डालते हैं, गोखले की दक्षिण अफ्रीका यात्रा पर, फिर देख लीजिये ब्लॉग लेखन के कुछ तजुर्बे, साथ में पढ़ते जाइए बाउ और नेबुया की झांकी का 27वां भाग, बाकी भाग भी पढ़ ही लीजिएगा लगे हाथों.... अब चूंकि परिवर्तन बेहतर हो तो प्रशंसनीय है इसलिए मेरी बुलेटिन कुछ पुरानी ब्लॉग पोस्ट्स मे भी झाँका करेगी.... तो गर कुछ पुरानी यादों में झाकें तो कहीं कोई शाम का साया सा दिखता है.... फिर कुछ प्रश्न भी हैं और तीन पागल भी.... है "नील" की साँसों में अब भी तुम्हारे सरगम सिर्फ ऐसा बोलना  काफी नहीं बल्कि फिर कुछ दस्तखत करने पर दिखेगा आम का पेड़..... बदला सा क्षितिज.....और हवा की काट. और चलते चलते बजाते चलते हैं समर शंख....

ठीक, अभी तो हम चलते हैं खाना बनाने, लेकिन सारे ज़रूरी कामों के बीच पढ़ना-लिखना जारी रहे यही कोशिश है.... खुश रहिए, मुसकुराते रहिए और इस बार ज़रूर वोट दीजिये.... अगले शनिवार फिर मिलते हैं.......

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

कितने बदल गए हम - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

कभी आप से सोचा है कि एक ज़माना था जब हम वहाँ सोना पसंद करते थे जहाँ से चाँद तारे दिखें और आज वहाँ सोना पसंद करते हैं जहाँ चार्जर लगा सकें।

अगर खुद मे आए इस बदलाव के बारे मे नहीं सोचा है तो ज़रा सोचिएगा |

सादर आपका
शिवम् मिश्रा

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चयनित ग़ज़लें


ब्लॉगिंग और 5 प्रमुख सोशल मीडिया ग़लतियाँ


पानी दो बेटे...(लघुकथा)

ऋता शेखर मधु at मधुर गुंजन

कोई नया आसमाँ

महेश कुशवंश at अनुभूतियों का आकाश 

452. बहुरुपिया (5 ताँका)

डॉ. जेन्नी शबनम at लम्हों का सफ़र 

संतूर पर राग अहिरभैरव ....!!


गृहस्थ आश्रम

संजय @ मो सम कौन... at मो सम कौन कुटिल खल कामी.. ?

मुद्दा हामिद मीर नहीं...आज हम, कल तुम्हारी बारी







108. मतदान

जयदीप शेखर at कभी-कभार 

 
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  अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!!

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

रे मुसाफ़िर चलता ही जा

आदरणीय ब्लॉगरगण नमस्कार

प्रस्तुत कर रहा हूँ  आज का बुलेटिन -

मेरी नई कविता के साथ जिसका आधार या विषय जो भी आप कहिये है - एक मुसाफ़िर - जो निकल पड़ा है जीवन को खोजने | वैसे तो इस संसार में हम सभी एक मुसाफ़िर से ज्यादा कुछ नहीं हैं | हम संसार में आते हैं, घुमते फिरते हैं, आराम करते हैं, दिक्कतों का सामना भी करते हैं, अच्छा-बुरा, खट्टा-मीठा समय व्यतीत करते हैं और फिर अपने सफ़र की समाप्ति करते हैं | 

मेरा ऐसा मानना है के जीवन रुपी इस सफ़र में कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहियें | सिर्फ आगे बढ़ते रहना चाहियें | बार बार पीछे मुड़कर देखने से, आपके सामने आगे आने वाला सफ़र भी अपनी सुन्दरता खो देता है | बीते हुए सफ़र की सिर्फ अच्छी यादों को दिल में संजोकर, बुरे तजुर्बों को दफ़न कर और बिना परेशानीर हुए हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहियें | मेरी यह कविता कुछ ऐसा ही बतलाती है | 

सोचता हूँ आप सब को पसंद आएगी |














रे मुसाफ़िर चलता ही जा -

नहीं तो राहों से चूक जायेगा
पहुंचेगा कहाँ, वहाँ जहाँ तू
अपने आप को भूल जाएगा
तू तनहा राह में रह जायेगा

जीवन है काँटों की झाड़ी
उलझ अटक रह जायेगा
आधी को संजोने खातिर
तू पूरा जीवन गंवाएगा

छूट जायेगा अपने से तू
भूल जायेगा जीवन को तू
रे मुसाफ़िर मंज़िल को भी
तू, फिर छोड़ कर जायेगा

इस दुनिया से तू बेगाना सा
तेरे ख्वाबों के रंग उड़ जायेंगे
सब राहे होंगी अनजानी तब
सबसे छूटेगा अपने से टूटेगा

मंजिल कभी खत्म ना हो तेरी
मंजिल से कभी तू भटके ना
यही प्रार्थना करता हूँ मैं
लिए हाथों में यह दीपशिखा

राह में जब अंधियारा छाएगा
निर्भय होकर तू चलता चल
यह दीपशिखा तुझको पल पल
तेरा मार्ग दिखलाएगी

रे मुसाफ़िर तू चलता चल
नहीं तो राह में रह जायेगा
पीछे मुड़कर ना देख ज़रा
वरना जीवन में पछतायेगा

रे मुसाफ़िर चलता ही जा....

आज की कड़ियाँ 

मुक्तक - तेरे बिन - नीरज द्विवेदी

नहीं है कहीं प्रेम का अस्तित्व - वंदना गुप्ता

टाट का पैबंद - प्रीती टेलर

परि‍धि‍ वाला प्‍यार - रश्मि शर्मा

बेटियां - शिल्पा भर्तिया

भरोसे के तंतु - विमलेश त्रिपाठी

टोपी तिलक सब लीनी - वर्षा

चाँद की मजबूरी - अपर्णा खरे

मेरा घर पुकार रहा है - दीपक पाण्डेय

सपना - दीप्ति शर्मा

कुछ कहमुकरियां - अनुषा

अब इजाज़त | आज के लिए बस यहीं तक | फिर मुलाक़ात होगी | आभार
जय श्री राम | हर हर महादेव शंभू | जय बजरंगबली महाराज 

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

सपनों की दस्तक के नाम लिंक्स पढ़ें



कभी अकेले में तुम्हारे चेहरे पर भी मुस्कान उतरी होगी 
बेवजह खिलखिला कर चौंककर देखा होगा 
किसी ने देखा तो नहीं !
आँखों में शब्दों का काजल लग गया होगा 
कानों में किसी की आवाज मिश्री सी घुलने लगी होगी 
कई सपने दस्तक दे गए होंगे  … 
कितना कुछ सिर्फ तुम्हारा रहा होगा !

आज उस मुस्कान,उस मिश्री सी आवाज,सपनों की दस्तक के नाम लिंक्स पढ़ें 

मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

मां सब जानती है - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आजकल माहौल काफी गरम चल रहा है ... देश मे चुनाव है ... ऐसे मे थोड़ा माहौल को हल्का किया जाये तो कैसा रहे ... लीजिये एक लतीफा पेश है |


5 साल का बच्चा: आई लव यू माँ।
 माँ: आई लव यू टू बेटा।

 16 साल का लड़का: आई लव यू मॉम।
 माँ: सॉरी बेटा, पैसे नहीं हैं!

 25 साल का लड़का: आई लव यू माँ।
 माँ: कौन है वह? कहां रहती है?

 35 साल का आदमी: आई लव यू माँ।
 माँ: बेटा मैंने पहले ही बोला था, उस लड़की से शादी मत करना!
 .
 .
 .
 .
 और सबसे बढ़िया..
 .
 .
 .
 .
 .
 .
 .
 55 साल का आदमी: आई लव यू माँ।
 माँ: बेटा, मैं किसी भी कागज़ पर साइन नहीं करूंगी!

अगर गौर से देखें तो इस लतीफे मे भी कहीं न कहीं एक सबक है ... एक दर्द है ... अब यह आप पर है ... आप उसे खोज पाये या नहीं !!

सादर आपका
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जशोदा बेन का मर्म ना जाने कोए...

-सर्जना शर्मा- at रसबतिया
(*पोस्ट से पहले आपसे कुछ दिल की बात*- कहते हैं इंसान दो परिस्थितियों में निशब्द हो जाता है। बहुत दुख में और बहुत खुशी में। और जब बहुत दुख में निशब्द हो जाता है तो बहुत समय लगता है उससे बाहर आने में। सितंबर 2011 के बाद मैनें कुछ नहीं लिखा। 2011 और 2012 में मेरी बीजी की लंबी बीमारी। अस्पतालों में दिन रात रहना और फिर 2012 में उनका हमसे सदा के लिए बिछुड़ जाना। सबको पता है हम सबको जाना है। लेकिन फिर भी ना जाने क्यों हमारा मन ऐसा है अपनों को अलविदा कहना नहीं चाहता। और फिर मेरी बीजी के जाने के बाद मेरे पैतृक परिवार में मानो नंबर लग गया। फरवरी 2012 से जून 2012 तक अपने चार प्रियजनों को अंतिम... more »

चुनावी रंग में रंगे कुछ फ़ेसबुकिया नोट्स

Dayanand Pandey at सरोकारनामा
अजब मंजर है इन दिनों। मोदी विरोध और मोदी समर्थन में ही दुनिया जी रही है। और भी गम हैं जमाने में मोदी के सिवा ! इधर मैं ने कुछ लोगों के अंतर्विरोध नोट किए हैं। जैसे कि बहुत से ऐसे लोग हैं जो जुबान से तो वामपंथी हैं पर जेहन से भाजपाई! ऐसे ही कुछ दलित हैं जो जुबान से तो अंबेडकरवादी हैं पर जेहन से बसपाई, सपाई या भाजपाई हैं। कांग्रेसी भी। कुछ मुस्लिम हैं जो जुबान से इस्लाम-इस्लाम करते 

बहुत दिनों के बाद......

मीनाक्षी at "प्रेम ही सत्य है"
बहुत दिनों के बाद... अपने शब्दों के घर लौटी... बहुत दिनों के बाद ....... फिर से मन मचल गया... बहुत दिनों के बाद... फिर से कुछ लिखना चाहा.... बहुत दिनों के बाद... कुछ ऐसा मन में आया.... फिर इक बार नए सिरे से शुरु करूँ मैं लिखना ... अपने मन की बात !! सोचती हूँ ब्लॉग पर नियमित न हो पाना या जीवन को अनियमित जीना न आदत है और न ही आनंद...वक्त के तेज बहाव में उसी की गति से बहते जाना ही जीना है शायद. जीवन धारा की उठती गिरती लहरों का सुख दुख की चट्टानों से टकरा कर बहते जाने में ही उसकी खूबसूरती है. खैर जो भी हो लिखने के लिए फिर से पलट कर ब्लॉग जगत में आना भी एक अलग ही रोमाँच पैदा करता ह... more » 

ऐ-री-सखी (अकेले मन का द्वंद्ध )

Anju (Anu) Chaudhary at अपनों का साथ
*(ऐ-री-सखी कविता संग्रह की ही एक कविता )* ऐ-री-सखी तू ही बता मैं कब तक तन्हा रहूँगी कब! मेरे मन की चौखट पे धूप सी इस जिंदगी में कोई आएगा जिस संग मैं साजन गीत गाऊँगी तब! बसंत के आने पर , मेरी जिंदगी की भौर में तभी तो बहार आएगी जो मल्हार का रूप धर उस संग प्यार के नगमे गाएगी हम दोनों मिल कर खेलेंगे , खेल जीवन-संगीत का बन जाएँगे अफसाने , हम दोनों के जब दो दिल मिल जाएँगे देख कर रूप प्यार का सूने जीवन में भी गुलशन भी खिल जाएँगे जब आँखे कुछ कहेंगी ख़ामोशी और बढ़ जाएगी एक संगीत का सुर मिल जाएगा तब,तन मन गीत सुनाएगा मोहब्बत में है ये मादक मदिरा मद में करे मदहोश जो प्यार में सरस ... more »

संवेदनाओं का पतझड़ है.…??

Anupama Tripathi at anupama's sukrity
अडिग अटल विराट घने वटवृक्ष तले स्थिर खड़ी रही एक पैर पर तपस्यारत पतझड़ में भी एक भी शब्द नहीं झरा, प्रेम से घर का कोना कोना भरा , मेरे आहाते में ..... मेरी ज़मीन पर , सारे वृक्ष हरे भरे,लहलहाते चिलचिलाती धूप में भी कोमल छांव , यहीं तो है मेरे मन की ठाँव हरीतिमा छाई , निस्सीम कल्पनातीत वैभव, मन ही तो है- तुम्हारा वास है यहाँ , समृद्ध है ........ कैसे कह दूं मेरे घर में संवेदनाओं का पतझड़ है.…?? 

पृथ्वी दिवस पर लघुकथा / ईश्वर की प्रतीक्षा

girish pankaj at गिरीश पंकज
धरती अपने पुत्रों की बेरुखी से परेशान थी। जिसे देखो, धरती को कचराघर बनाने पर तुला था। एक दिन धरती गाय के पास पहुँची। गाय भी अपने बेटो से दुखी थी। दोनों गंगा के पास गए. गंगा भी अपनी औलादो से त्रस्त मिली। अब क्या करें। तीनो पर्वत के पास पहुँचे, मगर वह भी अपनी औलादो से दुखी था, फूट-फूट कर रोने लगा, ''अब तो भगवान ही कुछ करेंगे।'' सब ईश्वर के पास पहुंचे। उन्हें देख कर अन्तर्यामी ईश्वर अन्तर्धान हो गए। धरती, गाय, गंगा, और पर्वत अब तक ईश्वर की प्रतीक्षा में हैं ।

चुनावी चौराहों .....................

anand murthy at anandkriti
*चुनावी चौराहों और चौपालों पर* *चैतन्य वेग का रेला है* *दूर-दराज सूनसानों में भी* *कैसा जमघट कैसा मेला है* *वादों में लहरा के चलते हैं* *कभी खुद औहदों पर इतराने वाले* *आरोपों और प्रत्यारोपों का* *रोचक खेल दिखाने वाले* *गली-गली और बस्ती-बस्ती* *शहर की सकरी गलियों * *सड़क किनारे झोपड़ पट्टी में * *भी दिख जाते हैं..............* *कभी-कभी कहीं-**कहीं* *ये दिखने वाले....................* 

एक कहानी यह भी.......मन्नू भंडारी

*"मेरी प्रिय लेखिका मन्नू भंडारी जी पर लिखा मेरा ये आलेख आधी आबादी पत्रिका के ताज़ा अंक में प्रकाशित" * जन्म- 3 अप्रैल 1931 “एक कहानी यह भी” के पन्ने पलटते-पलटते मैं डूबती जा रही थी हिन्दी की एक बेहद लोकप्रिय कथाकार महेंद्र कुमारी - ”मन्नू भंडारी” की जीवन सरिता में | मन्नू जी की यह आत्मकथा पढ़ते हुए मैंने जाना कि एक मीठे पानी की नदी सा मालूम पड़ने वाला उनका जीवन दरअसल तटबंध किये हुए खारे सागर के जैसा था मगर मन्नू के भीतर अथाह क्षमता थी,डूब कर मोती खोज लाने की | एक बेहद ईमानदार व्यक्तित्व और उतनी ही सच्ची,बेबाक और स्पष्ट लेखन शैली वाली लेखिका,जिनके करीब जाने पर आप एक बेहद आम सी औरत को ... more » 

धरा बची तो ही बचेंगे ........

*धरा बची तो ही बचेंगे* *नहीं तो सब ठिकाने लगेंगे ...* *[image: अरुणा सक्सेना's photo.]* *१-जल प्रदूषित , थल प्रदूषित* *चहुँ ओर है हवा प्रदूषितश्वास तोडती धरा हमारीनील गगन का रंग प्रदूषित* *२-पर्यावरण में विष घुला हैप्रकृति में भी घुन लगा हैसात रंग का इंद्र धनुष भीरंगहीन लगने लगा है३-वृक्ष अब कटने लगे हैवन्य जीव बेघर हुए हैंऊँची-ऊँची इमारतों सेकंक्रीट के वन बने हैं४-हम सब मिल करें प्रयास पेड़ लगाएं आस -पास डूब रही नैया को अपनी ले आयें साहिल के पास ५-पेड़ क्यों न हम लगाएं हरियाली को पुनः जगाएं पर्यावरण का संरक्षण कर वसुंधरा का क़र्ज़ चुकाएं |* *[image: अरुणा सक्सेना's photo.... more »

एक ऐसा विवाह जिसने पंजाब का इतिहास बदल दिया

गगन शर्मा, कुछ अलग सा at कुछ अलग सा
कभी-कभी जाने-अनजाने वैभव प्रदर्शन भी घातक सिद्ध हो जाता है। यही हुआ था वर्ष *1837 *में, महिना था मार्च का। उस समय महाराजा रणजीत सिंह की अथक मेहनत और चातुर्य से पंजाब सुख-समृद्धी से लबरेज था. जमीन सोना उगल रही थी, धन-धान्य की प्रचुरता थी, जन-जीवन खुशहाल था। हालांकि देश में अंग्रेजों का वर्चस्व बढ़ रहा था पर पंजाब में रंणजीत सिंह जी के शौर्य के कारण उन की हिम्मत पस्त थी सो मजबूरन उन्हें वहाँ दोस्ती का नाटक करना पड़ रहा था। नौनिहाल सिंह पर समय को कुछ और ही मंजूर था. उन्हीं दिनों महाराजा ने अपने पुत्र खड़गसिंह के सपुत्र नौनिहाल सिंह का विवाह अपने ही एक जागीरदार शामसिंह अटारीवाला की पुत्र... more »

हमारा .... कहाँ जोर चलता है....?

परमजीत सिहँ बाली at ******दिशाएं******
हमारा .... कहाँ जोर चलता है....? भीतर सुलगते अंगारें.. अपने आस-पास ... किसी के होनें के एहसास-भर से... हवा देनें का काम कर जाता है। तब-तब भीतर के अंगार .. शब्द बन कर फूट पड़ते हैं मानों ...वे फूट पड़ना ही चाहते थे। शायद सोचते होगें... इसके बाद शांती का एहसास होगा। मगर... कुछ देर बाद... अंगार फिर सुलगते से .. महसूस होते हैं। किसी के भी सामनें .. फूट पड़नें की क्रिया की मजबूरी पर तन्हाई में रोते हैं। शायद ... ये मानव स्वाभाव है... या सहानूभूति हासिल करनें का हथकंडा.. कौन बतायेगा... आदमी की गल्ती है... या प्रकृति के नियम की... या जीवन ऐसे ही चलता है ? आदमी अपनें को.. ऐसे ही छलता है ? ह... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

सोमवार, 21 अप्रैल 2014

'ह्यूमन कंप्यूटर' और ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज अपनी अद्भूत गणितीय क्षमता व ज्योतिष ज्ञान की बदौलत पूरी दुनिया में चर्चित भारतीय गणितज्ञ शकुंतला देवी की पहली पुण्यतिथि है | कुछ ही पलों में बड़ी से बड़ी संख्यात्मक गणना कर देने के विलक्षण गुण के कारण उन्हें 'ह्यूमन कंप्यूटर' के नाम से जाना जाता था।
शकुन्तला देवी एक अजूबी गणतज्ञा थीं। आप का जन्म ४ नवम्बर १९३९ में बेंग्लूर,भारत में हुआ था।उनके पिता सर्कस मे काम करते थे। उनमे जन्म से ही गणना करने में पारंगत हासिल थी। वह ३ वर्ष की आयु से ही पत्तों का खेल अपने पिता के साथ खेलतीं थी। छ: वर्ष कि आयु मे उन्होंने अपनी गणना करने कि व स्मरण शक्ति का प्रदर्शन मैसूर विश्व्विद्दालय में किया था , जो कि उन्होने अन्नामलाइ विश्वविद्यालय मे आठ वर्ष की  आयु में दोहराया था। उन्होने १०१ अंको वाली संख्या का २३वाँ मूल २३ सेकेण्ड मे ज्ञात कर लिया था। उन्होने 13 अंको वाली 2 संख्याओ का गुणनफल जल्दी बता दिया था |
वह 15 साल की उम्र में पिता के साथ लंदन चली गई थीं और पिछली सदी के छठे दशक में भारत लौटीं थीं।
संगणक से तेज़ गणना करने के लिये शकुन्तला देवी का नाम ग़िनीज़ बुक ऑफ़ व्ह्रल्ड रिकॉर्डस में भी दर्ज है। 
 
पिछले साल 'ह्यूमन कंप्यूटर' के नाम से प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ शकुंतला देवी के जन्मदिन के मौके पर गूगल ने एक डूडल लगाया था www.google.co.in खोलने पर शकुंतला देवी के स्केच के साथ डिटिजल नंबर्स में Google लिखा आता था | 

 
1977 में शकुंतला देवी अमेरिका गईं। यहां डलास की एक यूनिवर्सिटी में उनका मुकाबला तब के एक कंप्यूटर 'यूनीवैक' से हुआ। उन्हें 201 अंकों की एक संख्या का 23वां मूल निकालना था। यह सवाल हल करने में उन्हें 50 सेकंड लगे, जबकि 'यूनीवैक' ने इस काम के लिए 62 सेकंड का वक्त लिया। इस घटना के बाद वह पूरी दुनिया में छा गईं। अपनी प्रतिभा साबित करने के लिए उन्हें 1980 में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित लंदन के इंपीरियल कॉलेज ने बुलाया। यहां भी शकुंतला देवी का मुकाबला एक कंप्यूटर से था। उनको 13 अंकों की दो संख्याओं का गुणनफल निकालने का काम दिया गया और यहां भी वह कंप्यूटर से तेज साबित हुईं। उनकी इस उपलब्धि को गिनेस बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड के 1982 एडिशन में जगह दी गई।
 
21 अप्रैल, 2013 को शकुंतला देवी के निधन से भारत ने अपना एक और जीनियस खो दिया ! 
 
आज चर्चित भारतीय गणितज्ञ स्व॰ शकुंतला देवी जी की पहली पुण्यतिथि के अवसर पर हम सब ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से उनको शत शत नमन करते है |
 
सादर आपका
 
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झूठा ब्लॉगर

चला बिहारी ब्लॉगर बनने at चला बिहारी ब्लॉगर बनने 
 
 
 
  
 
 

अज्ञानता का कहर

रचना त्रिपाठी at टूटी-फूटी 
 
 

स्पर्धा

sadhana vaid at Sudhinama 
 

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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!!

लेखागार