Subscribe:

Ads 468x60px

कुल पेज दृश्य

रविवार, 10 अगस्त 2014

रक्षाबंधन विशेष - ब्लॉग बुलेटिन



नमस्कार साथियो,
आज भाई-बहिन के पवित्र प्रेम का प्रतीक-पर्व रक्षाबंधन है. भारतीय संस्कृति सदैव से पर्वों-त्योहारों के हर्षोल्लास में पल्लवित-पुष्पित होती रही है. हमें प्रेम के बंधन में बांधते ये त्यौहार हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं. इसी महान सांस्कृतिक विरासत के मध्य रक्षाबंधन  महज एक रेशमी धागे को कलाई पर बाँधने का पर्व मात्र नहीं है. ये रेशमी धागा कर्तव्यबोध, दायित्वबोध, पावनता, प्रेम-स्नेह आदि का भान करवाता है और रिश्तों की पवित्रता के प्रति भी सचेत करता है.
भारतीय संस्कृति में रक्षाबंधन के कई प्रसंग हैं, इनमें पौराणिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक, साहित्यिक प्रसंग प्रमुखता से देखे जा सकते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार असुरों के हाथों पराजय के बाद देवताओं में निराशा का भाव उत्पन्न हो गया था. तब गुरु वृहस्पति के दिशा-निर्देश से इन्द्राणी ने इन्द्र सहित समस्त देवताओं को रक्षा-सूत्र बाँध कर उन्हें उत्साहित किया था. पत्नी द्वारा पति को रक्षासूत्र बाँधने से आरम्भ हुआ रक्षाबंधन का पर्व आज भाई-बहिन के पावन-प्रेम का पर्व बन गया है. रक्षाबंधन पर्व के रूप में रेशमी डोरी को आज कई प्रसंगों में रक्षार्थ बोध जगाने हेतु बाँधते देखा जाता है. पर्यावरणीय महत्त्व के लिए कुछ जागरूक नागरिक वृक्षों को रक्षा-सूत्र बाँधते दिखते हैं तो इसके साथ-साथ भारतीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्त्ता आपस में रक्षा=सूत्र बाँधते हैं. कई स्थानों पर ब्राह्मणों को, गुरुओं को रक्षा-सूत्र बाँधने की परम्परा है. इसके बाद भी सामान्य रूप से माना जाता है कि भाई-बहिन का स्नेहिल बंधन है रक्षाबंधन.
समाज का चलन बदला, समाज की प्रकृति बदली तो संबंधों में भी बदलाव देखने को मिलने लगा. चंद लोगों की निगाह में पर्व-त्यौहार एक तरह की औपचारिकता मात्र रह गए या फिर परम्पराओं का निर्वहन. इसी कारण ऐसे लोगों के द्वारा सवाल खड़ा किया जाने लगा कि राखी रेशम की डोरी, उपहारों का लेन-देन या जिम्मेदारी है? इस तरह की शंकाओं के चलते ही समाज में भाई-बहिन के संबंधों को भी शंका से देखा जाने लगा है. इसी के चलते बहिनों को असुरक्षा का बोध होने लगा है. इसी कारण से कुत्सित प्रवृत्ति के लोगों ने सहजता से हमारे घरों में घुसपैठ करना शुरू कर दिया है. समाज कुछ भी कहे, संबंधों में गर्माहट भले ही कम दिख रही हो, रिश्तों में शुष्कता आ रही हो वहाँ वर्चुअल होते संबंधों के बीच सात समुद्र पार भी राखी का क्रेज सहजता से देखा जा सकता है; मोबाइल, इंटरनेट, सोशल मीडिया, व्हाट्सएप्प के ज़माने में भी रक्षाबंधन - राखी - विशेष : बहन का भाई के नाम दो असलीपत्र का लिखना भी देखा जा सकता है. ये कहीं न कहीं आशान्वित करता है और मन कहीं से आवाज़ देता दिखता है कि अभी सब कुछ ख़तम नहीं हुआ है. सब कुछ अच्छा ही अच्छा होगा ऐसी आशा तो की ही जा सकती है. इसी आशा के साथ आज रक्षा बंधन के दिन मुझे बचपन में सुनी कजरी के बोल याद हो आये, जिसको आप सभी बहिना- भैया सुनो! और अपने मित्र को आज्ञा दें... अगली बुलेटिन तक के लिए. चलते-चलते चंद मुक्तक - राखी सन्देश देते हुए.
सभी को रक्षाबंधन की शुभकामनाएँ..!! 
++ 
विशेष :- आज की विशेष बुलेटिन, कुछ विशेष तरह से सजाई गई है.... प्रस्तावना पढ़ते-पढ़ते आप लिंक का आनन्द उठायें.... :)
++
चित्र गूगल छवियों से साभार

5 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

रक्षाबंधन पर्व की हार्दिक शुभकामनाऐं । सुंदर राखी बुलेटिन ।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत रोचक प्रस्तुतीकरण...आभार

कविता रावत ने कहा…

रक्षा पर्व से सुसज्जित बुलेटिन प्रस्तुति में मेरी ब्लॉगपोस्ट शामिल करने हेतु आभार

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

hardik aabhar ke sath rakshabandhan pr aap sabhi ko hardik shubhkamnayen

Asha Joglekar ने कहा…

राखी पर कडियों का सुंदर प्रस्तुतिकरण।

एक टिप्पणी भेजें

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!

लेखागार