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सोमवार, 31 अगस्त 2015

प्याज़ के आँसू - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

जब भगवान सारी सब्जियों को उनके गुण और सुगंध बांट रहे थे तब प्याज चुपचाप उदास होकर पीछे खड़ी हो गई। सब चले गए प्याज नहीं गई। वहीँ खड़ी रही। 

तब विष्णुजी ने पूछा, "क्या हुआ तुम क्यों नही जाती?"
तब प्याज रोते हुए बोली, "आपने सबको सुगंध और सुंदरता जैसे गुण दिए पर मुझे बदबू दी। जो मुझे खाएगा उसका मुँह बदबू देगा। मेरे साथ ही यह व्यवहार क्यों?"

तब भगवान को प्याज पर दया आ गई। उन्होने कहा, "मैं तुम्हे अपने शुभ चिन्ह देता हूँ। यदि तुम्हें खड़ा काटा जायेगा तो तुम्हारा रूप शंखाकार होगा और यदि आड़ा काटा गया तो चक्र का रूप होगा। यही नहीं सारी सब्जियों को तुम्हारा साथ लेना होगा, तभी वे स्वादिष्ट लगेंगी और अंत में तुम्हे काटने पर लोगों के वैसे ही आंसू निकलेंगे जैसे आज तुम्हारे निकले हैं। जब जब धरती पर मंहगाई बढ़ेगी तुम सबको रुलाओगी।

दोस्तों इसीलिए प्याज आज इतना रुला रही है उसे वरदान जो प्राप्त है।

परम ज्ञानी गुरु बाबा बकवास नंद के प्रवचनों से साभार!

सादर आपका
शिवम् मिश्रा
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मेरी क़लम भाई- बहन के इस पावन पर्व रक्षा बंधन पर कुछ कह रही है..

फुहारें

कुछ अफ़साने : लाजिमी हैं

दशरथ मांझी के बहाने प्रेम पर कुछ सवाल

तिरस्कार

प्यास

टूटे है ख्वाब......

दर्द रिस्ता है मोम की चट्टानों से

शहर के मुँह में भी जुबान होती है....

एक अनपढ़ी किताब

माँ के आखिरी लफ्ज़

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

रविवार, 30 अगस्त 2015

सरकार भरोसे नौजवान - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
चित्र गूगल से साभार 

पान की दुकान पर खडे एक 30 वर्षीय युवक से बातचीत के कुछ अंश...

मैने पूछा कुछ कमाते धमाते क्यो नहीं?

वह बोला, "क्यो?"

मै बोला, "शादी कर लो?"

वह बोला, "हो गई।"

मैंने पूछा, "कैसे?"

वह बोला, "मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में।"

मैं बोला, "फिर बाल बच्चों के लिए कमाओ।"

वह बोला, "जननी सुरक्षा से डिलवरी मुफ्त और साथ मे 1400/- रू का चेक।"

मैं बोला, "बच्चों कि पढ़ाई लिखाई के लिए कमा लो।"

वह बोला, "उनके लिए पढ़ाई और भोजन मुफ्त।"

मैं बोला, "यार घर कैसे चलाते हो?" वह बोला, "1रू किलो गेंहू और चावल से।"

मैं झुंझला कर बोला, "यार माँ-बाप को तीर्थ यात्रा पे ले जाने के लिए तो कमा।"

वह बोला, "दो धाम करवा दिए हैं, मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा से।"

मुझे गुस्सा आया और मैं बोला, "माँ-बाप के मरने के बाद जलाने के लिए कमा।"

वह बोला, "1 रू में विद्युत शवदाह गृह है।"

मैंने कहा, "अपने बच्चों की शादी के लिए कमा।"

वह मुस्कुराया और बोला, "फिर वहीं आ गए... वैसे ही होगी जैसे मेरी हुई थी।"

मैं बोला, "यार एक बात बता ये इतने अच्छे कपडे तू कैसे पहनता है?"

वह बोला, "राज की बात है... फिर भी बता देता हूँ, 'सरकारी जमीन पर कब्जा करो आवास योजना मे लोन लो और फिर मकान बेच कर फिर जमीन कब्जा कर पट्टा ले लो'।"

मुझे तो कुछ समझ नहीं आया। अब आप ही बताइये... यह किस प्रदेश का निवासी है? .
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दरअसल यह भारत के किसी भी राज्य का निवासी हो सकता है क्यूँ कि हमारे देश मे आज के राजनेता आज के युवाओं को उनके वोट के लालच मे स्वाभिमानी नहीं बल्कि सरकारी योजनों का मोहताज बना रहे हैं | ऊपर से आरक्षण का शगुफा भी अपना कमाल दिखाता है| ऐसे मे युवा पथभ्रष्ट  नहीं होंगे तो क्या होगा !!??

सादर आपका
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मेरी राखी नागपूर में

अर्चना चावजी Archana Chaoji at नानी की बेटी - Aristocrat Lady - "मायरा"

हर्ष के जन्मदिन पर सप्रेम [दोहे]

सरिता भाटिया at गुज़ारिश

श्रीयुत धीरेन्द्र वर्मा जी के साथ खिंची यह सेल्फी

डॉ0 अशोक कुमार शुक्ल at कोलाहल से दूर

शहर बंजर हो जाए

udaya veer singh at उन्नयन (UNNAYANA)

क्या जायज़ है क्या नाजायज़ ? हमको कुच्छ नहीं पता ।

शेफाली पाण्डे at कुमाउँनी चेली

विवादों के बवंडर में ‘युवा’ लेखक

अनंत विजय at हाहाकार

लघुव्यंग्य –विधायक जी के भाई लोग

suneel kumar sajal at sochtaa hoon......!

'हॉकी के जादूगर' दद्दा ध्यानचंद की ११० वीं जयंती

शिवम् मिश्रा at बुरा भला

दांतों का पीलापन : सरल उपचार

गाँधी का नमक

यह प्राचीन शिवालय है बाबू, इधर कोई वीआईपी नहीं

नारदमुनि at नारदमुनि जी
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 अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

शनिवार, 29 अगस्त 2015

रक्षाबंधन की शुभकामनायें

आदरणीय ब्लॉगर मित्रों,

जैसा कि आप सभी जानते हैं आज रक्षाबंधन का त्यौहार है, बहन-भाई के स्नेह का पर्व, प्यार, अपनापन और रक्षा का प्रतीक यह दिन हर बहन-भाई के लिए एक ख़ास महत्त्व रखता है। मेरे लिए भी यह दिन बहुत ही ख़ास है। इस दिन को और ज्यादा सुन्दर और याद्कार बनाने के लिए मेरी तरफ़ से यह छोटा सा प्रयास, अपनी छोटी बहन के लिए लिखी यह दुलार भरी छोटी सी कविता। आप सभी मित्रों को राखी की बहुत बहुत शुभकामनाएं। सभी बहन-भाई आपस में स्नेह से रहें और प्रेमपूर्वक यह त्यौहार हंसी ख़ुशी के साथ मनाएं।


बस यही दुआ
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दिल ने दिल को दी आवाज़
जीवन का कर नया आग़ाज़
प्यार का है यह बंधन ख़ास
बहन-भाई हैं आज सरताज

सूनी कलाई पे बाँधा है प्यार
ममता जिसमें है भरी अपार
लाख़ जनम दूं तुझ पर वार
कम है जितना करूँ दुलार

बहना मेरी, तू है मेरी जान
तुझसे बढ़ती है मेरी शान
तू है मेरे मस्तक की आन
नहीं है तुझे ज़रा भी भान

तिलक करे दिन बन जाए
गर्व से सीना यह तन जाए
आरती करने जब तू आए
आलम सारा ये थम जाए

शगुन में तुझको दूं मैं क्या
'निर्जन' की बस यही दुआ
हंसती खेलती तू रहे सदा
ग़म तुझसे रहे सदा जुदा

--- तुषार राज रस्तोगी ---

आज की कड़ियाँ













आज के लिए इतना ही अगले सप्ताह फिर मुलाक़ात होगी तब तक के लिए - सायोनारा

नमन और आभार
धन्यवाद्
तुषार राज रस्तोगी
जय बजरंगबली महाराज | हर हर महादेव शंभू  | जय श्री राम

शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

नफरत, मौकापरस्ती, आरक्षण और राजनीति

बजरंगी भाईजान फ़िल्म में एक संवाद है, "नफरत आसानी से बिक जाती है लेकिन मोहब्बत के लिए बहुत मुश्किल है"। आज गुजरात की हालत देखकर कुछ ऐसा ही लग रहा है। दुनियाँ में गुजरात अपने विकास के लिए जाना जाता था आज वह नफरत की आग में जल रहा है। 

आरक्षण केवल बहाना है इसकी आड़ में हो रहा आंदोलन, विपक्ष द्वारा प्रायोजित एवं फंडित है। मुझे हार्दिक पटेल के हाव-भाव भिंडरावाले सरीखे लग रहे हैं। यह आरक्षण के पक्ष में हो रहा आंदोलन कम बल्कि राष्ट्रविरोधी अधिक प्रतीत हो रहा है। मीडिया टीआरपी के लिये गजब रोटी सेंक रहा है और यह किसी दुःस्वप्न से कम नहीं है। मित्रों आइए इस साज़िश को समझने का प्रयास करते हैं। अंग्रेजों ने भारत से जाते जाते नेहरू को एक मन्त्र दिया था और वह मन्त्र था भारत पर राज करने के लिए भारत का टुकड़ों में बंटे रहना ज़रूरी है। यदि कोई राष्ट्रवादी देश को एक करने का प्रयास करे तो उसे तोड़ दो। जाति, धर्म, सम्प्रदाय के नाम पर जोड़ तोड़ करो और राज करो। यही कांग्रेस ने हमेशा से किया और इसीलिए वह साठ साल राज करने में सफल भी हुई। 

जब पंजाब में अकालियों का कद कांग्रेस पर हावी होने लगा तब उन्होंने भिंडरावाले के नाम का भूत पाला और अकालियों को खदेड़ा। जब इसी भूत ने कांग्रेस को खाना शुरू किया तब उन्होंने उसे घेर के मार गिराया। ठीक इसी प्रकार महाराष्ट्र में मुम्बई वामपंथी गढ़ था और उस अभेद्य गढ़ को गिराने के लिए कांग्रेस ने ही बाला साहेब ठाकरे को वह सब कुछ दिया जिससे यह वामपंथी दुर्ग तोड़ा जा सके, बाद में जो कुछ हुआ उसने उन्हें मुम्बई का महानायक और सर्वेसर्वा बना दिया। बाला ठाकरे की शिवसेना के हिंदुत्व के मार्ग पर चले जाने के कारण कांग्रेस को उन्हें छोड़ना पड़ा। तीसरा उदाहरण लीजिये नक्सली समस्या, पूर्वोत्तर के नक्सली कांग्रेस से फंड लेते रहे हैं और कांग्रेस ने इस समस्या के समाधान की जगह इस भूत को पाले रखा। इसी कड़ी में केजरीवाल आए और आज कल हार्दिक पटेल हैं। जब जब कांग्रेस को चुनावों में मुंह की खानी पड़ी है उसने प्रोपैगैंडा करके समाज को बांटा है अब वह पटेल आरक्षण आंदोलन को हिंसक बनाकर सरकार विरोधी माहौल बनाकर अपना राजनैतिक उल्लू सीधा करने का सोच रही है। कांग्रेस जानती है कि विकास के मार्ग और समस्या के समाधान से भारत में चुनाव नहीं जीते जाते, भारत में चुनाव जीतने के लिए जाति समीकरण को समझना, उसी हिसाब से वोट की जोड़ तोड़ करना होता है। जनता मूर्ख है जो किसी को भी सिर्फ इसलिए वोट दे देगी क्योंकि वह उसकी बिरादरी का है। और तो और कुछ मूर्ख तो सिर्फ़ एक फतवे पर वोट दे देते है क्योंकि उन मे अपना विकास का मार्ग स्वयं चुनने की कोई स्वतंत्रता ही नहीं है। ऐसी जनता के बारे में क्या लिखा जाए..... 


आज शर्म आ रही है कि भारत का सबसे पढ़ा लिखा और समृद्ध समूह सड़क पर आग लगा रहा है क्योंकि उसे पिछड़ी जाति में आरक्षण चाहिए? अरे आरक्षण ख़त्म करने के लिए आंदोलन करो मेरे भटके हुए भाइयों। अपने ही गुलशन को जला कर क्या पाओगे?
 
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आरक्षण की आग

आरक्षण: देश को बचने दो भाई

तब इन्होने ने गुजरात को मज़हब के नाम पर जलाया था अब ये उसे जाति के नाम पर जलाने के लिए निकल आएं हैं अपने बिलों से 

हिंसक होती आरक्षण की मांग

एक और अभिमन्यु 

फिर निकला आरक्षण का जिन्न 

क्या आपको पटेल समुदाय के इस आरक्षण आंदोलन पर संदेह नहीं होता? 

आरक्षण समाप्त करने का नया जादू 

मुद्दा:हार्दिक पटेल और आन्दोलन का विरोध क्यों? 

योग्यता को ठेंगा दिखा रहा आरक्षण 

सरदार और गाँधी का गुजरात

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अब आज्ञा दीजिये ...

आपका 

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

ब्लॉग बुलेटिन - ऋषिकेश मुखर्जी और मुकेश

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।

ऋषिकेश मुखर्जी
मुकेश
आज हिंदी फिल्म जगत के दो महान कलाकारों की पुण्यतिथि है एक हैं महान फिल्म निर्माता- निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी और दूसरे हैं महान गायक मुकेश। हिंदी फिल्म जगत में इन दोनों ही महान शख्सियतों ने अपना अतुलनीय और सराहनीय योगदान दिया। ऋषिकेश मुखर्जी और मुकेश ने एक साथ केवल दो फिल्मों में काम किया है और वो फिल्म है अनाड़ी (1959) और आनंद(1971)। इन दोनों ही फिल्म के गाने उस दौर में काफी प्रसिद्ध हुए थे। अनाड़ी (1959) फिल्म का गीत "सब कुछ सीखा हमने" और आनंद(1971) फिल्म के दो गीत "मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने, सपने सुरीले सपने" तथा "कहीं दूर जब दिन ढल जाएँ"। अनाड़ी (1959) फिल्म के गीत "सब कुछ सीखा हमने" के लिए मुकेश जी को 1959 के सर्वश्रेष्ठ गायक का फ़िल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था। जबकि ऋषिकेश मुखर्जी जी को फिल्म आनंद(1971) के लिए सर्वश्रेष्ट कहानी और बेस्ट एडिटिंग का फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला था। इन दोनों ने ही हिंदी फिल्म जगत को असीम ऊँचाइयों तक पहुँचाया।


आज इनकी पुण्यतिथि पर पूरा हिंदी ब्लॉग जगत और हमारी ब्लॉग बुलेटिन टीम इन्हें नमन करती है और हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करती है। 

अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर .......


हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप के पास नहीं थी धन की कमी : टॉड ने फैलाई भ्रान्ति

मैं और मेरा ड्राईवर …

पार्कों में गाड़ियां पार्क होने लगीं, अब तो चेतो !!

पाकिस्तान को समझाने की आवश्यकता है

सूर्य की रहस्यमय दुनिया

ऐडसेंस विज्ञापन न दिखें तब क्या करें

रेड कॉर्नर नोटिस का क्या मतलब है? क्या दूसरे रंगों के नोटिस भी होते हैं?

चाय के बहाने कुछ यादें

शब्दों का मौन

यूँ नहीं मिला होता

दे भी दे बचा आधा भी बचा कर कहाँ ले जायेगा


आज की बुलेटिन में सिर्फ इतना ही। कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर  … अभिनन्दन।।

बुधवार, 26 अगस्त 2015

शून्य पूर्णता है




शून्य पूर्णता है
बोला गया शून्य ध्वनि रूप में होता है
 लिखा गया शून्य चिन्ह रूप में होता है, लेकिन शून्य वस्तुत: होता नहीं है  .... कितनी अजीब बात है !





मंगलवार, 25 अगस्त 2015

आर्थिक संकट का सच... ब्लॉग बुलेटिन

सोमवार को चीन के बाज़ार के संकट से दुनिया भर के बाज़ार प्रभावित रहे। अमेरिका के वॉल स्ट्रीट से बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के दलाल पथ तक हलचल है। क्रूड अपने सबसे बुरे हाल पर है, दुनिया आर्थिक संकट के मुहाने पर खड़ी है और स्थिति वास्तव में गंभीर नहीं तो कम से कम चिंता जनक तो है ही। बहुत से लोग इस संकट के असली कारण नहीं जानते होंगे और इसके लिए भी वर्तमान मोदी सरकार को ही ज़िम्मेदार ठहराएंगे। आज जब मैं शाम आठ बजे न्यूयॉर्क की ट्रांस हडसन ट्रेन में बैठकर यह पोस्ट लिख रहा हूँ तो संभव है अभी तक किसी विपक्षी दल ने इसके लिए मोदी सरकार का इस्तीफ़ा तक मांग लिया होगा। बहरहाल इस संकट के लिए एक तरह से चीन ही ज़िम्मेदार है। चीन में लोकतंत्र नहीं है और यहाँ सरकार ही सब कुछ है। यहाँ की अर्थ-व्यवस्था में सरकारी दखल हद से ज्यादा है। कुल मिलाकर यदि साफ़ साफ़ कहा जाए तो अपनी अर्थव्यवस्था को चीन दुनिया के सामने बढ़ा चढ़ा कर पेश करता आया है, भले उसकी सच्चाई कुछ भी हो। चीन का मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर आज कल मंदी की मार झेल रहा है और इससे उबरने के लिए चीन ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन किया है। विश्व समुदाय चीन के इस प्रकार लुढ़कने से सकते में है क्योंकि रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट के लॉजिक के आधार पर चीन में इन सभी का पैसा फंस गया है। दूसरा बड़ा झटका क्रूड की कीमत ने दिया है। दुनिया में ओपेक तेल पर अपना एकक्षत्र राज चाहता है और ओपेक में बैठे अरबी देश अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ाते और घटाते रहते हैं। अमेरिका सरीखे देश जो ओपेक की कीमत से सीधे प्रभावित होते हैं, अब भाई यदि ओपेक उत्पादन अधिक करेगा तो उसकी कीमत गिरेगी और यही अमेरिका का नुकसान है।
चीन अपनी मुद्रा का अवमूल्यन और तेल के आयात में कटौती करके अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयास में लगा है और शेयर बाज़ार का यह खून खराबा फ़िलहाल थमता नहीं दिख रहा। बहरहाल चीन के निर्माण क्षेत्र में छाई हुई मंदी का भारत समुचित लाभ ले सकता है और चीन भी इस हकीकत को अच्छी तरह से जानता है। उसे ज्ञान है की भारत की नयी सरकार की मुहीम और अधिक विनिवेश लाने के लिए चल रहे "मेक इन इंडिया" जैसे कार्यक्रम भारत को विश्व की फैक्ट्री बना देंगे। विश्व समुदाय चीनी सरकार की तुलना में स्थिर और लोकतांत्रिक भारत में अपनी रूचि दिखायेगा। यही चीन का डर है और यही भारत के लिए मौका। अच्छी बात यह है कि अब देश में मजबूत मोदी सरकार है सो जो होगा अच्छा ही होगा।
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अब चलते है आज की बुलेटिन की ओर ...

हिन्दी सोशल मीडिया पर मेरे प्रयोग

हम ऐतवार कर लेगें

तुमको छोड़ कर सब कुछ लिखूंगा -- संजय भास्कर

क्या सदैव सत्य बोला जा सकता है?

गुजरात का 'केजरीवाल'

नरेगा ने नरक बना दिए ग्रामीण रास्ते

(दशरथ मांझी नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी के चेहरे में दिखा … और सोच की खलबली होती रही )

नेह का बंधन

किताब Kitab

सेना का मनोबल बढ़ाए सरकार

पॉवर ऑफ़ नाउ

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आज के लिए इतना ही ... फ़िर मिलेंगे ...
आपका 

सोमवार, 24 अगस्त 2015

अमर शहीद राजगुरु जी की १०७ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज अमर शहीद शिवराम हरि राजगुरु जी की १०७ वीं जयंती है |
 
शिवराम हरि राजगुरु (मराठी: शिवराम हरी राजगुरू, जन्म:२४ अगस्त १९०८ - मृत्यु: २३ मार्च १९३१) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे । इन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ २३ मार्च १९३१ को फाँसी पर लटका दिया गया था । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में राजगुरु की शहादत एक महत्वपूर्ण घटना थी ।

शिवराम हरि राजगुरु का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी सम्वत् १९६५ (विक्रमी) तदनुसार सन् १९०८ में पुणेजिला के खेडा गाँव में हुआ था । ६ वर्ष की आयु में पिता का निधन हो जाने से बहुत छोटी उम्र में ही ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे । इन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदो का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कण्ठस्थ कर लिया था। इन्हें कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बडे प्रशंसक थे ।

वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ । चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये। आजाद की पार्टी के अन्दर इन्हें रघुनाथ के छद्म-नाम से जाना जाता था; राजगुरु के नाम से नहीं। पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रान्तिकारी इनके अभिन्न मित्र थे। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे। साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया था जबकि चन्द्रशेखर आज़ाद ने छाया की भाँति इन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की थी।

२३ मार्च १९३१ को इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को हिन्दुस्तान के अमर शहीदों की सूची में अहमियत के साथ दर्ज करा दिया ।
 
आज अमर शहीद राजगुरु जी की १०७ वीं जयंती के मौके पर हम सब उनको शत शत नमन करते है ! 
 
इंकलाब ज़िंदाबाद !!!
सादर आपका
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सन्‍मार्ग की स्थिर राह

विकेश कुमार बडोला at हरिहर 
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!!  

रविवार, 23 अगस्त 2015

'छोटे' से 'बड़े' - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज कोई बात नहीं ... सिर्फ़ एक चित्र ...

"यह जो 'छोटू' होते हैं न, दुकानों, होटलों और वर्कशॉपों में; दरअसल अपने घर के 'बड़े' होते हैं !!"

जब भी इन से मिलें ... कृपया इन के प्रति उचित सम्मान का प्रदर्शन करें ... बस इतना सा अनुरोध है !!

सादर आपका
शिवम् मिश्रा 
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"भैंसीयास्टिक technology"...व्यंग्य बाण

जिसको जैसी आंच मिली...

कुछ रोज नहीं जलता है चूल्हा जिसके घर ...

मिलन

‘हम-परवाज़’

खिलेंगे फूल

उफा के बाद उफ!!

पाओलो कोएलो को पढ़ते हुए

सेल्फ़ी लेते समय शिष्टाचार एवं सभ्यता का रखे ध्यान !

बेटी छूट जाती तो ---

सावन का कजरी गीत --आज मेरा भैया आएगा

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

शनिवार, 22 अगस्त 2015

सपनों का मतलब - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

रात में एक चोर घर में घुसा। कमरे का दरवाजा खोला तो बरामदे पर एक बुजुर्ग महिला सो रही थी। खटपट से उसकी आंख खुल गई। 

चोर ने घबरा कर देखा तो वह लेटे लेटे बोली, ''बेटा, तुम देखने से किसी अच्छे घर के लगते हो, लगता है किसी परेशानी से मजबूर होकर इस रास्ते पर लग गए हो। चलो कोई बात नहीं। अलमारी के तीसरे बक्से में एक तिजोरी है। इस का सारा माल तुम चुपचाप ले जाना। मगर पहले मेरे पास आकर बैठो, मैंने अभी-अभी एक ख्वाब देखा है। वह सुनकर जरा मुझे इसका मतलब तो बता दो।"  

चोर उस बुजुर्ग महिला की रहमदिली से बड़ा अभिभूत हुआ और चुपचाप उसके पास जाकर बैठ गया।  महिला ने अपना सपना सुनाना शुरु किया, ''बेटा, मैंने देखा कि मैं एक रेगिस्तान में खो गई हूँ। ऐसे में एक चील मेरे पास आई और उसने 3 बार जोर जोर से बोला अभिलाष! अभिलाष! अभिलाष! बस फिर ख्वाब खत्म हो गया और मेरी आँख खुल गई। जरा बताओ तो इसका क्या मतलब हुआ?''  

चोर सोच में पड़ गया। इतने में बराबर वाले कमरे से बुढ़िया का नौजवान बेटा अभिलाष अपना नाम ज़ोर ज़ोर से सुनकर उठ गया और अंदर आकर चोर की जमकर धुनाई कर दी।  

बुढ़िया बोली, ''बस करो अब यह अपने किए की सजा भुगत चुका है।"  चोर बोला, "नहीं-नहीं, मुझे और मारो, ताकि सालों तक मुझे याद रहे कि मैं एक चोर हूँ, सपनों का मतलब बताने वाला नहीं।"

सादर आपका
शिवम् मिश्रा
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(लघुकथा) बेटा

फेसबुक पर ऐसे छिपायें अपना मोबाइल नंबर

Abhimanyu Bhardwaj at MyBigGuide
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!! 

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

ब्लॉग बुलेटिन - उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ साहब की नौवीं पुण्यतिथि

सभी ब्लॉगर मित्रों को सादर नमस्कार।


उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ (जन्म: 21 मार्च, 1916 - मृत्यु: 21 अगस्त, 2006) हिन्दुस्तान के प्रख्यात शहनाई वादक थे। उनका जन्म डुमराँव, बिहार में हुआ था। सन् 2001 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

बिस्मिल्ला खाँ साहब का जन्म बिहारी मुस्लिम परिवार में पैगम्बर खाँ और मिट्ठन बाई के यहाँ बिहार के डुमराँव के ठठेरी बाजार के एक किराए के मकान में हुआ था। उनके बचपन का नाम क़मरुद्दीन था। वे अपने माता-पिता की दूसरी सन्तान थे।: चूँकि उनके बड़े भाई का नाम शमशुद्दीन था अत: उनके दादा रसूल बख्श ने कहा-"बिस्मिल्लाह!" जिसका मतलब था "अच्छी शुरुआत! या श्रीगणेश" अत: घर वालों ने यही नाम रख दिया। और आगे चलकर वे "बिस्मिल्ला खाँ" के नाम से मशहूर हुए। पूरा आलेख यहाँ पढ़ें ....


उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ साहब की नौवीं पुण्यतिथि पर पूरा हिन्दी ब्लॉग जगत और हमारी ब्लॉग बुलेटिन टीम उन्हें याद करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 

सादर 
हर्षवर्धन श्रीवास्तव


अब रुख करते हैं आज की बुलेटिन की ओर  ………














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे। शुभरात्रि। सादर  … अभिनन्दन।।

गुरुवार, 20 अगस्त 2015

बहकती जुबान, भटकते नेता : आखिर मंशा क्या है


नमस्कार दोस्तो,
दूसरे पर आरोप लगाने के, दूसरे को नीचा दिखाने के  हम सब इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि इसे अपनी आदत ही बना बैठे हैं. किसके लिए, कब कुबोल बोल जाएँ इसका अंदाज़ा ही नहीं रहता. हालाँकि कई बार ऐसा अनजाने में होता है किन्तु जब ऐसा बार-बार, लगातार होता रहे तो समझा जा सकता है कि ये हमारी मानसिकता है, हमारी आदत में शुमार है. कुछ इसी तरह का प्रदर्शन हाल में मुखिया द्वारा किया गया, जिनकी जुबान पूर्व में भी लड़खड़ा चुकी थी. इस लड़खड़ाती जुबान की यात्रा ‘लड़कों के गलतियाँ होती रहती हैं’ से लेकर ‘चार पुरुष एक महिला का रेप नहीं कर सकते’ तक आ चुकी है. इस तरह के बयानों से उनकी मानसिकता तो समझ आती है किन्तु ये समझना मुश्किल है कि कुबोलों की ये यात्रा यहीं थमेगी अथवा और विकृत रूप में सामने आएगी.
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समझ नहीं आता कि आखिर इनके साथ समस्या कहाँ है? ऐसा भी नहीं है कि मुखिया मुँह में चाँदी की चम्मच लेकर पैदा हुए थे; ऐसा भी नहीं है कि उनको विरासतन राजनीति मिली हो; ऐसा भी नहीं है कि प्रदेश की सत्ता उनको बहुत सहजता से उपलब्ध हो गई हो, ऐसे में जबकि कोई व्यक्ति जमीन से उठकर इतनी ऊँचाई पर पहुंचा हो उसको किसी जाति-विशेष मात्र का समर्थन नहीं मिला होगा; लिंग-विशेष का समर्थन नहीं मिला होगा; उम्र-विशेष का समर्थन नहीं मिला होगा. ज़ाहिर सी बात है कि सब धर्मों का, सभी जातियों का, सभी लिंग का, सभी आयु-वर्ग का समर्थन उसके साथ है, तब उम्र के इस पड़ाव पर महिलाओं के लिए इस तरह से आपत्तिजनक बयान देकर वे क्या साबित करना चाहते हैं? किस वोट-बैंक को अपने साथ लाना चाहते हैं? किसे प्रभावित करना चाहते हैं? संभव है कि ऐसी मानसिकता के पीछे अहंकारी भाव रहता हो? प्रदेश में सत्ता का शीर्ष उनके पास है ही, देश में भी सत्ता का शीर्ष वे छू चुके हैं, ये और बात है कि शीर्ष पद प्राप्ति में वे एक कदम से ही चूक गए थे. ऐसे में सत्ताधारी हनक में ये लोग आम इन्सान को भुनगा मात्र समझने लगते हैं. ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि ऐसे विवादित बयान महज मुखिया द्वारा नहीं दिए गए वरन उनकी पार्टी के कई नेताओं द्वारा समय-समय पर अपनी मानसिकता को दर्शाया गया है; कई दूसरे राष्ट्रीय, क्षेत्रीय दलों के वरिष्ठ नेताओं द्वारा भी जुबानी नियंत्रण छूटा है. सत्ता की, शक्ति की हनक को इसका कारण इसलिए भी माना जा सकता है क्योंकि ऐसे कुबोल के पीछे केवल पुरुष ही नहीं हैं वरन महिलाएं भी शामिल हैं.  
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यहाँ मुखिया की बयानबाज़ी के सम्बन्ध में उनकी सत्ता हनक तो हो सकती है, साथ ही उनका पुत्र-प्रेम भी इसका कारण हो सकता है. देखा जाये तो उनके पुत्र के सत्तासीन होने के बाद से वर्तमान तक प्रदेश की स्थिति किसी भी रूप में संतोषजनक भी नहीं कही जा सकती है. कानून व्यवस्था बुरी तरह से ध्वस्त है, अराजकता अपने चरम पर है, गुंडाराज सड़कों से गुजरता हुआ घरों के भीतर तक घुस गया है. अपहरण, हत्या, छेड़छाड़, बलात्कार आदि की घटनाएँ आम हो चुकी हैं. ऐसे में मुखिया को आगामी वर्षों में होने वाले विधानसभा चुनाव का डर दिखाई देने लगा है, साथ ही पुत्र के दरकिनार किये जाने का भय भी उन पर हावी हो रहा होगा. आखिर एक बार तो दवाब की राजनीति करके पुत्र को सत्ता-सुख दिलवाया जा सकता है किन्तु ऐसा बार-बार कर पाना संभव नहीं होगा. संभव है कि सत्ता का उच्च अतीत, सत्ता की वर्तमान हनक और सत्ता से बेदखल का भावी भय उनको विक्षिप्त सा कर रहा हो. इस संक्रमण की स्थिति का नकारात्मक प्रभाव उनके मन-मष्तिष्क पर, उनकी जुबान पर हो गया हो और वे ऐसे कुबोल लगातार बोल जा रहे हों. बहरहाल सत्यता कुछ भी हो किन्तु एक बात स्पष्ट है कि राजनीति के उच्च पायदानों पर बैठे व्यक्तियों के लिए आम इंसान कीड़े-मकोड़े के समान है और उसमें भी उनके निशाने पर सहजता से महिलाएं ही आ जाती हैं. ऐसी सोच, ऐसे बयान निंदनीय हैं, इनकी समवेत निंदा होनी भी चाहिए और मौका लगने पर ऐसे लोगों को सबक भी सिखाया जाना चाहिए.
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ऐसा हो पायेगा या नहीं, ये तो भविष्य के गर्भ में है.... आइये हम सब वर्तमान में आकर आज की बुलेटिन पर दृष्टि डालें.... शायद उसी में से भविष्य की कोई सुनहरी राह दिखाई दे.... तब तक लिए अनुमति दीजिये.... फिर मिलेंगे, अगले गुरुवार....

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बेटियां भी तय करेंगी मंजिलें












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