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रविवार, 31 जनवरी 2016

फटफटिया रविवारी बुलेटिन : ब्लॉग बुलेटिन

मित्रों आज की बुलेटिन में लीजिये टॉलस्टॉय की एक संक्षिप्त कहानी: 

अँधेरी रात में एक अंधा सड़क पर जा रहा था। उसके हाथ में एक लालटेन थी और सिर पर एक मिट्टी का घड़ा। किसी रास्ता चलने वाले ने उससे पूछा, 'अरे मूर्ख, तेरे लिए क्या दिन और क्या रात। दोनों एक से हैं। फिर, यह लालटेन तुझे किसलिए चाहिए?'
अंधे ने उसे उत्तर दिया, 'यह लालटेन मेरे लिए नहीं, तेरे लिए जरूरी है कि रात के अँधेरे में मुझसे टकरा कर कहीं तू मेरा मिट्टी का यह घड़ा न गिरा दे।'

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लीजिये आज की फटफटिया बुलेटिन में कुछ चुनिंदा लिंक्स 












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कल फिर मिलेंगे बुलेटिन के एक नए अंक के साथ....................

जय हिन्द  

शनिवार, 30 जनवरी 2016

अविभाजित भारत की प्रसिद्ध चित्रकार - अमृता शेरगिल - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

अमृता शेरगिल (३० जनवरी १९१३ - ५ दिसंबर १९४१)
अमृता शेरगिल (३० जनवरी १९१३ - ५ दिसंबर १९४१) भारत के प्रसिद्ध चित्रकारों में से एक थीं। उनका जन्म बुडापेस्ट (हंगरी) में हुआ था। कला, संगीत व अभिनय बचपन से ही उनके साथी बन गए। २०वीं सदी की इस प्रतिभावान कलाकार को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने १९७६ और १९७९ में भारत के नौ सर्वश्रेष्ठ कलाकारों में शामिल किया है। सिख पिता उमराव सिंह शेरगिल (संस्कृत-फारसी के विद्वान व नौकरशाह) और हंगरी मूल की यहूदी ओपेरा गायिका मां मेरी एंटोनी गोट्समन की यह संतान ८ वर्ष की आयु में पियानो-वायलिन बजाने के साथ-साथ कैनवस पर भी हाथ आजमाने लगी थी।
१९२१ में अमृता का परिवार समर हिल शिमला में आ बसा। बाद में अमृता की मां उन्हें लेकर इटली चली गई व फ्लोरेंस के सांता अनुंज़ियाता आर्ट स्कूल में उनका दाखिला करा दिया। पहले उन्होंने ग्रैंड चाऊमीअर में पीअरे वेलण्ट के और इकोल डेस बीउक्स-आर्टस में ल्यूसियन सायमन के मार्गदर्शन में अभ्यास किया। सन १९३४ के अंत में वह भारत लौटी। बाईस साल से भी कम उम्र में वह तकनीकी तौर पर चित्रकार बन चुकी थी और असामान्य प्रतिभाशाली कलाकार के लिए आवश्यक सारे गुण उनमें आ चुके थे। 
पूरी तरह भारतीय न होने के बावजूद वह भारतीय संस्कृति को जानने के लिए बड़ी उत्सुक थी। उनकी प्रारंभिक कलाकृतियों में पेरिस के कुछ कलाकारों का पाश्चात्य प्रभाव प्रभाव साफ झलकता है। जल्दी ही वे भारत लौटीं और अपनी मृत्यु तक भारतीय कला परंपरा की पुन: खोज में जुटी रहीं। उन्हें मुगल व पहाडी कला सहित अजंता की विश्वविख्यात कला ने भी प्रेरित-प्रभावित किया। भले ही उनकी शिक्षा पेरिस में हुई पर अंततः उनकी तूलिका भारतीय रंग में ही रंगी गई। उनमें छिपी भारतीयता का जीवंत रंग हैं उनके चित्र।
 
अमृता ने अपने हंगेरियन चचेरे भाई से १९३८ में विवाह किया, फिर वे अपने पुश्तैनी घर गोरखपुर में आ बसीं। १९४१ में अमृता अपने पति के साथ लाहौर चली गई, वहाँ उनकी पहली बडी एकल प्रदर्शनी होनी थी, किंतु एकाएक वह गंभीर रूप से बीमार पडीं और मात्र २८ वर्ष की आयु में शून्य में विलीन हो गई।
 
स्व॰ अमृता शेरगिल जी की १०३ वीं जंयती के अवसर पर ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं !!
सादर आपका
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शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

बीटिंग द रिट्रीट 2016 - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज दिल्ली के विजय चौक पर हुये 'बीटिंग द रिट्रीट' के साथ ही इस साल के गणतंत्र दिवस समारोह का समापन हो गया !
 
बीटिंग द रिट्रीट गणतंत्र दिवस समारोह की समाप्ति का सूचक है। इस कार्यक्रम में थल सेना, वायु सेना और नौसेना के बैंड पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं। यह सेना की बैरक वापसी का प्रतीक है। गणतंत्र दिवस के पश्चात हर वर्ष 29 जनवरी को बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। समारोह का स्थल रायसीना हिल्स और बगल का चौकोर स्थल (विजय चौक) होता है जो की राजपथ के अंत में राष्ट्रपति भवन के उत्तर और दक्षिण ब्लॉक द्वारा घिरे हुए हैं। बीटिंग द रिट्रीट गणतंत्र दिवस आयोजनों का आधिकारिक रूप से समापन घोषित करता है। सभी महत्‍वपूर्ण सरकारी भवनों को 26 जनवरी से 29 जनवरी के बीच रोशनी से सुंदरता पूर्वक सजाया जाता है। हर वर्ष 29 जनवरी की शाम को अर्थात गणतंत्र दिवस के बाद अर्थात गणतंत्र की तीसरे दिन बीटिंग द रिट्रीट आयोजन किया जाता है। यह आयोजन तीन सेनाओं के एक साथ मिलकर सामूहिक बैंड वादन से आरंभ होता है जो लोकप्रिय मार्चिंग धुनें बजाते हैं। ड्रमर भी एकल प्रदर्शन (जिसे ड्रमर्स कॉल कहते हैं) करते हैं। इसके बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है, जब बैंड मास्‍टर राष्‍ट्रपति के समीप जाते हैं और बैंड वापिस ले जाने की अनुमति मांगते हैं। तब सूचित किया जाता है कि समापन समारोह पूरा हो गया है। बैंड मार्च वापस जाते समय लोकप्रिय धुन सारे जहाँ से अच्‍छा बजाते हैं। ठीक शाम 6 बजे बगलर्स रिट्रीट की धुन बजाते हैं और राष्‍ट्रीय ध्‍वज को उतार लिया जाता हैं तथा राष्‍ट्रगान गाया जाता है और इस प्रकार गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समापन होता हैं। इस साल से इस कार्यक्रम मे देसी वाद्य यंत्रों और देसी धुनों का भी समावेश किया गया है |
वर्ष 1950 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम को अब तक दो बार रद्द करना पड़ा है, 27 जनवरी 2009 को वेंकटरमन का लंबी बीमारी के बाद आर्मी रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल में निधन हो जाने के कारण बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। वह देश के आठवें राष्ट्रपति थे और उनका कार्यकाल 1987 से 1992 तक रहा। इससे पहले 26 जनवरी 2001 को गुजरात में आए भूकंप के कारण बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया था।
 
आज शाम को हुये इस कार्यक्रम को नीचे दिये वीडियो पर देख सकते है ... यह वीडियो दूरदर्शन के यू ट्यूब चैनल से लिया गया है ... हर साल की तरह इस साल भी दूरदर्शन ने यू ट्यूब पर बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम का सीधा प्रसारण भी किया था !
 
 

सादर आपका
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लिए ‘नेताजी’ शब्द कब, किसने और क्यों इस्तेमाल किया?

एक व्यंग्य : अवसाद में हूं ..

कुछ ...

जीवन में चुनौतियों का सामना कैसे करें।

दूध पकौड़ी:-

घुलनशील पदार्थ

शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (६)

तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त

मेरी ज़िम्मेदारी

हाइकु क्या है.

मरने के बाद रोहित का पहला इंटरव्यू

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अब आज्ञा दीजिये ...


जय हिन्द !!!

जय हिन्द की सेना !!!

गुरुवार, 28 जनवरी 2016

बदल रहे लोकतंत्र के मायने - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार मित्रो,
देश की गणतांत्रिक व्यवस्था के छः दशक से अधिक व्यतीत हो जाने के बाद भी बहुतायत लोगों में गणतंत्र के मायने विकसित नहीं हो सके हैं. हममें से बहुतों के लिए आज भी गणतंत्र का, लोकतंत्र का अर्थ उन्मुक्त स्वतंत्रता ही है, जहाँ सिर्फ अधिकारों की चर्चा होती है, दायित्वों और कर्तव्यों की नहीं. किसी समय अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र की परिभाषा देते हुए, शासन का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा था कि ‘लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा’ शासन को प्रमाणिक माना जाता है. सैद्धांतिक रूप से ऐसा मानना, समझना अत्यंत सुखद प्रतीत होता है किन्तु व्यावहारिक रूप में ऐसा स्वरूप देखने को मिलता नहीं है. गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रभक्ति जागती है, लोकतंत्र के प्रति दायित्व-बोध जागता है किन्तु तिथि व्यतीत होते ही ऐसी भावना शनैः-शनैः तिरोहित होने लगती है. इसके मूल में एक तरफ जहाँ नागरिकों की सुसुप्तावस्था दिखती है वहीं दूसरी तरफ नीति-निर्धारकों द्वारा भी पर्याप्त ध्यान न देना दिखाई देता है.

इतने वर्षों के बाद भी जनमानस में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के प्रति आदरभाव विकसित होता नहीं दिखता है. जनप्रतिनिधियों ने समय गुजरने के साथ-साथ स्वार्थसिद्धि में अपने आपको संलिप्त कर लिया तो जनता ने भी खुद को व्यवस्था में दोष निकालने वाला मान लिया. शीर्ष स्तर से लेकर तृणमूल स्तर तक व्यवस्था के प्रति जागरूकता न दिखना, सुधारवादी रवैये के स्थान पर दोषारोपण करना, देशहित से ज्यादा निजीहितों को वरीयता देना आदि सामान्य व्यवहार हो गया है. इसी सोच के चलते लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए, शासन के लिए दी गई परिभाषा ‘OF the people, BUY the people, FOR the people’ में भी व्यापक परिवर्तन नजर आने लगा है. अब इसका स्थान OFF the people, BUY the people, FAR the people’ ने ले लिया है. समय बदल रहा है, परिभाषायें बदल रही हैं, व्यवस्थायें बदल रही हैं और ऐसे परिवर्तनकाल में हमें संक्रमणकाल को लाने से बचना होगा.

आइये परिवर्तन के सकारात्मक परिणाम सामने आयें, ऐसा प्रयास करते हुए, ऐसा विचार करते हुए आज की बुलेटिन का आनंद उठायें. शेष अगली बुलेटिन में.

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बुधवार, 27 जनवरी 2016

ब्लॉग बुलेटिन - भारत भूषण जी की पुण्यतिथि

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
भारत भूषण
भारत भूषण ( जन्म: 14 जून, सन् 1920 ई. - मृत्यु: 27 जनवरी सन् 1992 ई. ) हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता थे। इन्होंने कई ऐतिहासिक चरित्रों को अपने अभिनय से एक नया जीवन प्रदान किया था। बैजू बावरा, चैतन्य महाप्रभु, कालिदास, तानसेन, संत कबीर तथा मिर्जा ग़ालिब के किरदार इन्होंने अपने फिल्मी जीवन में निभाए थे। भारत भूषण जी ने अपने पूरे फिल्मी कैरियर में कुल 143 फिल्मों में अभिनय किया था। 50 तथा 60 के दशक में भारत भूषण जी काफी लोकप्रिय हो गए थे। वर्ष 1967 ई. में प्रदर्शित फिल्म 'तकदीर' नायक के रूप में इनकी अंतिम फिल्म थी। इसके बाद भूषण जी ने आगे चलकर अधिकांश चरित्र अभिनय के रूप में ही काम किया। आगे चलकर भारत भूषण जी को फिल्मों में काम मिलना भी बंद हो गया। इसके बाद इन्होंने कुछ धारावाहिकों में ही अभिनय किया। फिल्म जगत की अनदेखी और वक्त से बुरी तरह बिछड़ चुके हिन्दी फिल्मों के स्वर्णिम युग के इस बेहतरीन अभिनेता ने आखिरकार 27 जनवरी, सन् 1992 ई. को मुम्बई में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

आज हम सब हिंदी फिल्म के महान अभिनेता भारत भूषण जी को याद करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।  

सादर।।

अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर..........














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे। तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर  … अभिनन्दन।।

मंगलवार, 26 जनवरी 2016

रचती रहूँ कुछ ख़ास तुम्हारे लिए


कहानियों सी बातें 
सुनाती रहूँ
सपनों सी लोरियाँ 
गुनगुनाती रहूँ 
रचती रहूँ कुछ ख़ास तुम्हारे लिए 
जब भी आऊँ याद 
परियाँ तुम्हारे इर्दगिर्द डेरा जमा ले 
कहे -
ये कुछ लिंक्स हैं एहसासों के 
पढ़ लो 
मन में संजो लो  .... 




आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !! 
 
जय हिन्द !!!

सोमवार, 25 जनवरी 2016

६७ वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति जी का संदेश

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

६७ वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी जी ने राष्ट्र के नाम संदेश दिया है ... 
मेरे प्यारे देशवासियो,
हमारे राष्ट्र के सड़सठवें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर, मैं भारत और विदेशों में बसे आप सभी को हार्दिक बधाई देता हूं। मैं, हमारी सशस्त्र सेनाओं, अर्ध-सैनिक बलों तथा आंतरिक सुरक्षा बल के सदस्यों को अपनी विशेष बधाई देता हूं। मैं उन वीर सैनिकों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं जिन्होंने भारत की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने और विधि शासन को कायम रखने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
प्यारे देशवासियो,
2. छब्बीस जनवरी 1950 को हमारे गणतंत्र का जन्म हुआ। इस दिन हमने स्वयं को भारत का संविधान दिया। इस दिन उन नेताओं की असाधारण पीढ़ी का वीरतापूर्ण संघर्ष पराकाष्ठा पर पहुंचा था जिन्होंने दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र की स्थापना के लिए उपनिवेशवाद पर विजय प्राप्त की। उन्होंने राष्ट्रीय एकता, जो हमें यहां तक लेकर आई है, के निर्माण के लिए भारत की विस्मयकारी अनेकता को सूत्रबद्ध कर दिया। उनके द्वारा स्थापित स्थायी लोकतांत्रिक संस्थाओं ने हमें प्रगति के पथ पर अग्रसर रहने की सौगात दी है। आज भारत एक उदीयमान शक्ति है, एक ऐसा देश है जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, नवान्वेषण और स्टार्ट-अप में विश्व अग्रणी के रूप में तेजी से उभर रहा है और जिसकी आर्थिक सफलता विश्व के लिए एक कौतूहल है।

प्यारे देशवासियो,
3. वर्ष 2015 चुनौतियों का वर्ष रहा है। इस दौरान विश्व अर्थव्यवस्था में मंदी रही। वस्तु बाजारों पर असमंजस छाया रहा। संस्थागत कार्रवाई में अनिश्चितता आई। ऐसे कठिन माहौल में किसी भी राष्ट्र के लिए तरक्की करना आसान नहीं हो सकता। भारतीय अर्थव्यवस्था को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। निवेशकों की आशंका के कारण भारत समेत अन्य उभरते बाजारों से धन वापस लिया जाने लगा जिससे भारतीय रुपए पर दबाव पड़ा। हमारा निर्यात प्रभावित हुआ। हमारे विनिर्माण क्षेत्र का अभी पूरी तरह उभरना बाकी है।

4. 2015 में हम प्रकृति की कृपा से भी वंचित रहे। भारत के अधिकतर हिस्सों पर भीषण सूखे का असर पड़ा जबकि अन्य हिस्से विनाशकारी बाढ़ की चपेट में आ गए। मौसम के असामान्य हालात ने हमारे कृषि उत्पादन को प्रभावित किया। ग्रामीण रोजगार और आमदनी के स्तर पर बुरा असर पड़ा।
प्यारे देशवासियो,
5. हम इन्हें चुनौतियां कह सकते हैं क्योंकि हम इनसे अवगत हैं। समस्या की पहचान करना और इसके समाधान पर ध्यान देना एक श्रेष्ठ गुण है। भारत इन समस्याओं को हल करने के लिए कार्यनीतियां बना रहा है और उनका कार्यान्वयन कर रहा है। इस वर्ष 7.3 प्रतिशत की अनुमानित विकास दर के साथ, भारत सबसे तेजी से बढ़ रही विशाल अर्थव्यवस्था बनने के मुकाम पर है। विश्व तेल कीमतों में गिरावट से बाह्य क्षेत्र को स्थिर बनाए रखने और घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिली है। बीच-बीच में रुकावटों के बावजूद इस वर्ष उद्योगों का प्रदर्शन बेहतर रहा है।

6. आधार 96 करोड़ लोगों तक मौजूदा पहुंच के साथ, आर्थिक रिसाव रोकते हुए और पारदर्शिता बढ़ाते हुए लाभ के सीधे अंतरण में मदद कर रहा है। प्रधान मंत्री जन धन योजना के तहत खोले गए 19 करोड़ से ज्यादा बैंक खाते वित्तीय समावेशन के मामले में विश्व की अकेली सबसे विशाल प्रक्रिया है। सांसद आदर्श ग्राम योजना का लक्ष्य आदर्श गांवों का निर्माण करना है। डिजीटल भारत कार्यक्रम डिजीटल विभाजन को समाप्त करने का एक प्रयास है। प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना का लक्ष्य किसानों की बेहतरी है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम जैसे कार्यक्रमों पर बढ़ाए गए खर्च का उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था को दोबारा सशक्त बनाने के लिए रोजगार में वृद्धि करना है।
7. भारत में निर्माण अभियान से व्यवसाय में सुगमता प्रदान करके और घरेलू उद्योग की स्पर्द्धा क्षमता बढ़ाकर विनिर्माण तेज होगा। स्टार्ट-अप इंडिया कार्यक्रम नवान्वेषण को बढ़ावा देगा और नए युग की उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करेगा। राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन में 2022 तक 30 करोड़ युवाओं को कुशल बनाने का विचार किया गया है।
8. हमारे बीच अकसर संदेहवादी और आलोचक होंगे। हमें शिकायत, मांग, विरोध करते रहना चाहिए। यह भी लोकतंत्र की एक विशेषता है। परंतु हमारे लोकतंत्र ने जो हासिल किया है, हमें उसकी भी सराहना करनी चाहिए। बुनियादी ढांचे, विनिर्माण, स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में निवेश से, हम और अधिक विकास दर प्राप्त करने की बेहतर स्थिति में हैं जिससे हमें अगले दस से पंद्रह वर्षों में गरीबी मिटाने में मदद मिलेगी।
प्यारे देशवासियो,
9. अतीत के प्रति सम्मान राष्ट्रीयता का एक आवश्यक पहलू है। हमारी उत्कृष्ट विरासत, लोकतंत्र की संस्थाएं सभी नागरिकों के लिए न्याय, समानता तथा लैंगिक और आर्थिक समता सुनिश्चित करती हैं। जब हिंसा की घृणित घटनाएं इन स्थापित आदर्शों, जो हमारी राष्ट्रीयता के मूल तत्त्व हैं, पर चोट करती हैं तो उन पर उसी समय ध्यान देना होगा। हमें हिंसा, असहिष्णुता और अविवेकपूर्ण ताकतों से स्वयं की रक्षा करनी होगी।

प्यारे देशवासियो :
10. विकास की शक्तियों को मजबूत बनाने के लिए, हमें सुधारों और प्रगतिशील विधान की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना विधि निर्माताओं का परम कर्तव्य है कि पूरे विचार-विमर्श और परिचर्चा के बाद ऐसा विधान लागू किया जाए। सामंजस्य, सहयोग और सर्वसम्मति बनाने की भावना निर्णय लेने का प्रमुख तरीका होना चाहिए। निर्णय और कार्यान्वयन में विलम्ब से विकास प्रक्रिया का ही नुकसान होगा।

प्यारे देशवासियो,
11. विवेकपूर्ण चेतना और हमारे नैतिक जगत का प्रमुख उद्देश्य शांति है। यह सभ्यता की बुनियाद और आर्थिक प्रगति की जरूरत है। परंतु हम कभी भी यह छोटा सा सवाल नहीं पूछ पाए हैं : शांति प्राप्त करना इतना दूर क्यों है? टकराव को समाप्त करने से अधिक शांति स्थापित करना इतना कठिन क्यों रहा है?

12. विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उल्लेखनीय क्रांति के साथ 20वीं सदी की समाप्ति पर, हमारे पास उम्मीद के कुछ कारण मौजूद थे कि 21वीं सदी एक ऐसा युग होगा जिसमें लोगों और देश की सामूहिक ऊर्जा उस बढ़ती हुई समृद्धि के लिए समर्पित होगी जो पहली बार घोर गरीबी के अभिशाप को मिटा देगी। यह उम्मीद इस शताब्दी के पहले पंद्रह वर्षों में फीकी पड़ गई है। क्षेत्रीय अस्थिरता में चिंताजनक वृद्धि के कारण व्यापक हिस्सों में अभूतपूर्व अशांति है। आतंकवाद की बुराई ने युद्ध को इसके सबसे बर्बर रूप में बदल दिया है। इस भयानक दैत्य से अब कोई भी कोना अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं कर सकता है।
13. आतंकवाद उन्मादी उद्देश्यों से प्रेरित है, नफरत की अथाह गहराइयों से संचालित है, यह उन कठपुतलीबाजों द्वारा भड़काया जाता है जो निर्दोष लोगों के सामूहिक संहार के जरिए विध्वंस में लगे हुए हैं। यह बिना किसी सिद्धांत की लड़ाई है, यह एक कैंसर है जिसका इलाज तीखी छुरी से करना होगा। आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता; यह केवल बुराई है।
प्यारे देशवासियो,
14. देश हर बात से कभी सहमत नहीं होगा; परंतु वर्तमान चुनौती अस्तित्व से जुड़ी है। आतंकवादी महत्त्वपूर्ण स्थायित्व की बुनियाद, मान्यता प्राप्त सीमाओं को नकारते हुए व्यवस्था को कमज़ोर करना चाहते हैं। यदि अपराधी सीमाओं को तोड़ने में सफल हो जाते हैं तो हम अराजकता के युग की ओर बढ़ जाएंगे। देशों के बीच विवाद हो सकते हैं और जैसा कि सभी जानते हैं कि जितना हम पड़ोसी के निकट होंगे, विवाद की संभावना उतनी अधिक होगी। असहमति दूर करने का एक सभ्य तरीका, संवाद है, जो सही प्रकार से कायम रहना चाहिए। परंतु हम गोलियों की बौछार के बीच शांति पर चर्चा नहीं कर सकते।

15. भयानक खतरे के दौरान हमें अपने उपमहाद्वीप में विश्व के लिए एक पथप्रदर्शक बनने का ऐतिहासिक अवसर प्राप्त हुआ है। हमें अपने पड़ोसियों के साथ शांतिपूर्ण वार्ता के द्वारा अपनी भावनात्मक और भू-राजनीतिक धरोहर के जटिल मुद्दों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए, और यह जानते हुए एक दूसरे की समृद्धि में विश्वास जताना चाहिए कि मानव की सर्वोत्तम परिभाषा दुर्भावनाओं से नहीं बल्कि सद्भावना से दी जाती है। मैत्री की बेहद जरूरत वाले विश्व के लिए हमारा उदाहरण अपने आप एक संदेश का कार्य कर सकता है।
प्यारे देशवासियो,
16. भारत में हर एक को एक स्वस्थ, खुशहाल और कामयाब जीवन जीने का अधिकार है। इस अधिकार का, विशेषकर हमारे शहरों में, उल्लंघन किया जा रहा है, जहां प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। जलवायु परिवर्तन अपने असली रूप में सामने आया जब 2015 सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज किया गया। विभिन्न स्तरों पर अनेक कार्यनीतियों और कार्रवाई की आवश्यकता है। शहरी योजना के नवान्वेषी समाधान, स्वच्छ ऊर्जा का प्रयोग और लोगों की मानसिकता में बदलाव के लिए सभी भागीदारों की सक्रिय हिस्सेदारी जरूरी है। लोगों द्वारा अपनाए जाने पर ही इन परिवर्तनों का स्थायित्व सुनिश्चित हो सकता है।
प्यारे देशवासियो,
17. अपनी मातृभूमि से प्रेम समग्र प्रगति का मूल है। शिक्षा, अपने ज्ञानवर्धक प्रभाव से, मानव प्रगति और समृद्धि पैदा करती है। यह भावनात्मक शक्तियां विकसित करने में सहायता करती है जिससे सोई उम्मीदें और भुला दिए गए मूल्य दोबारा जाग्रत हो जाते हैं। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था, ‘‘शिक्षा का अंतिम परिणाम एक उन्मुक्त रचनाशील मनुष्य है जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक विपदाओं के विरुद्ध लड़ सकता है।’’ ‘चौथी औद्योगिक क्रांति’ पैदा करने के लिए जरूरी है कि यह उन्मुक्त और रचनाशील मनुष्य उन बदलावों को आत्मसात करने के लिए परिवर्तन गति पर नियंत्रण रखे जो व्यवस्थाओं और समाजों के भीतर स्थापित होते जा रहे हैं। एक ऐसे माहौल की आवश्यकता है जो महत्त्वपूर्ण विचारशीलता को बढ़ावा दे और अध्यापन को बौद्धिक रूप से उत्साहवर्धक बनाए। इससे विद्वता प्रेरित होगी और ज्ञान एवं शिक्षकों के प्रति गहरा सम्मान बढ़ेगा। इससे महिलाओं के प्रति आदर की भावना पैदा होगी जिससे व्यक्ति जीवन पर्यन्त सामाजिक सदाचार के मार्ग पर चलेगा। इसके द्वारा गहन विचारशीलता की संस्कृति प्रोत्साहित होगी और चिंतन एवं आंतरिक शांति का वातावरण पैदा होगा। हमारी शैक्षिक संस्थाएं मन में जाग्रत विविध विचारों के प्रति उन्मुक्त दृष्टिकोण के जरिए, विश्व स्तरीय बननी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय वरीयताओं में प्रथम दो सौ में स्थान प्राप्त करने वाले दो भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों के द्वारा यह शुरुआत पहले ही हो गई है।
प्यारे देशवासियो,

18. पीढ़ी का परिवर्तन हो चुका है। युवा बागडोर संभालने के लिए आगे आ चुके हैं। ‘नूतन युगेर भोरे’ के टैगोर के इन शब्दों के साथ आगे कदम बढ़ाएं :
‘‘चोलाय चोलाय बाजबे जायेर भेरी-

पायेर बेगी पॉथ केटी जाय कोरिश ने आर
देरी।’’
आगे बढ़ो, नगाड़ों का स्वर तुम्हारे विजयी प्रयाण की घोषणा करता है
शान के साथ कदमों से अपना पथ बनाएं;
देर मत करो, देर मत करो, एक नया युग आरंभ हो रहा है।
धन्यवाद,
जय हिंद!
सादर आपका
शिवम् मिश्रा
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सोचा न था -

अब पूरे सच का इंतजार

lokendra singh at अपना पंचू
 
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!!

रविवार, 24 जनवरी 2016

भाभा को नमन

मित्रों, आज भाभा की पुण्य तिथि है। चौबीस जनवरी 1966 को एक बड़े ही संदेहास्पद तरीके से विमान हादसे में भाभा की मृत्यु हुई। मुझे आज़ाद भारत की कुछ घटनाएं जैसे कि भाभा, शास्त्रीजी की मृत्यु उनके साक्ष्य और भारत सरकार के रवैये पर कभी विश्वास नहीं होता और मुझे लगता है कहीं न कहीं कोई राजनैतिक साजिश है यह सभी। नेताजी के दस्तावेज सामने आना और उनपर नेहरू की स्थिति का साफ़ होना इस संदेह को और मजबूती देता है। कल से पहले तक मुझे नहीं पता था कि देश में राजनैतिक जासूस आयोग भी था, सर्वोच्च सत्ता ने कैसे अपने राजनैतिक विरोधियों पर जांच किये होंगे और क्या क्या हुआ होगा यह सब सोचने की ही बात है। 

बहरहाल आज आइये बात करते हैं भाभा की मृत्यु के सम्बंधित कुछ साक्ष्यों पर, जिन्हे मैंने कुछ गूगल करके और कुछ भारत सरकार के आर्काइव को खंगालकर निकाला है। 

 भाभा की मृत्यु जिस एयर इंडिया फ्लाइट 101 में हुई थी वह मुंबई से लंदन (दिल्ली, बेरुत और जेनेवा होने हुए) की उड़ान पर था। कंचनजंघा नामके इस शेड्यूलड जहाज में कई अन्य अधिकारी भी थे, जब यह जहाज जेनेवा के रास्ते में था तब कंट्रोलर ने विमान से उसकी ऊंचाई बनाये रखने को कहा, उसे यह भी बताया गया की ऊंचाई बनाये रखो क्योंकि आगे पांच मील दूर मोंट ब्लेंक पर्वत है और पायलट ने इस सन्देश को एकनॉलेज किया। लेकिन यह जहाज के बारे में खबर आई की वह 15585 फ़ीट की ऊंचाई पर दुर्घटनाग्रस्त हुआ और सभी 11 विमान के दल और 106 यात्री मारे गए, यह दुर्घटना आज भी सबसे खतरनाक दुर्घटनाओं की सूची में पांचवे नंबर पर है। यहाँ तक तो सब ठीक दिख रहा है लेकिन यहीं से एक कहानी की शुरुआत हुई, अमेरिकी जांच एजेंसी (सीआईए) के अधिकारी रॉवर्ट करौली से ग्रेगोरी डगलस नामक पत्रकार ने लगभग चार साल तक की बातचीत के बाद जो लिखा उसे देखने पर असली साजिश समझ में आएगी। आइये आपको समझाने की कोशिश करते हैं, करौली ने कहा की प्लेन के कार्गो सेक्शन में एक बम प्लांट किया गया था और उसका टाइमर ठीक उसी समय का था जब विमान ऐल्प्स पर्वत श्रृंखला पार कर रहा हो। यह कदम भारत सरकार और अमेरिकी सरकार की मिलीजुली कार्यवाही का नतीजा थी यह मुझे नहीं पता और न ही मैं उसमे जाऊँगा लेकिन यह भारत के परमाणु कार्यक्रम की रीढ़ तोड़ने का एक बड़ा कारक तो बना ही। करौली ने यहाँ तक कहा की वर्ष 1965 में पाकिस्तानी हार के बाद अमेरिका चिंतित था की भारत रूस के साथ मिलकर दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी महाशक्ति बन जायेगा और इससे उसके मित्र राष्ट्र पाकिस्तान के लिए और इस क्षेत्र में अमेरिकी गतिविधियों पर नियंत्रण लग जायेगा। करौली ने भाभा के साथ हुई साजिश और शास्त्रीजी के साथ हुई साजिश में आपसी सम्बन्ध और सीआईए के रोल पर भी ऊँगली उठाई थी। 11 जनवरी को शास्त्रीजी का ताशकंद में दिल का दौरा पड़ना जबकि भारत सरकार का जांच न करना और यह मान लेना की मृत्यु स्वाभाविक थी जबकि प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि शास्त्रीजी के गले और शरीर में विष पीने के बाद का नीलापन था। ठीक उसके तरह दिन बाद भाभा के साथ हुई साजिश इस आरोप में संदेह बढ़ाती है। शायद इसमें इंदिरा गाँधी का कोई रोल हो, या शायद न भी हो लेकिन शास्त्रीजी की मृत्यु से फायदा किसको था यह हम सभी जानते हैं।  

नेहरू नीति से इतर परमाणु कार्यक्रम चलाने वाले भाभा को नेहरू पसंद नहीं करते थे और यही कारण था कि कांग्रेस ने कभी भाभा को भारत रत्न के योग्य नहीं समझा। नेहरू को जिस नोबेल के कीड़े ने काट खाया था वह एक बहुत बड़ी वजह थी उनकी इस सोच के लिए। 

बहरहाल आज के दिन भारत के सच्चे सपूत और परमाणु कार्यक्रम के जनक भाभा को पूरे बुलेटिन परिवार और ब्लॉग जगत की ओर से नमन, आप भारत रत्न से श्रेष्ठ हैं और हमारे नायक हैं। 

जय हिन्द 


अब आज के बुलेटिन की ओर चलिए: 

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आज के बुलेटिन में इतना ही, कल फिर मिलेंगे एक नए अंक में 

शनिवार, 23 जनवरी 2016

ब्लॉग बुलेटिन - नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जयंती और रहस्य

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी से जुड़े रहस्य और मिथकों से आज से पर्दा उठना शुरू हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार में आज 12:47 पर नेताजी से जुड़े 100 गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक कर दिया। प्रधानमंत्री ने फाइलों का डिजिटल वर्जन जारी किया। जिसे हमारे सभी देशवासी इंटरनेट पर ऑनलाइन नेताजीपेपर्स.गॉव.इन | http://netajipapers.gov.in/ पोर्टल पर देख सकते हैं। भारत सरकार अब हर महीने लगभग 25 फाइल्स इस पोर्टल पर सार्वजनिक करती रहेगी। इससे जल्द ही नेताजी के अंतिम पलों और उनकी मौत से जुड़े रहस्यों से पर्दा उठ सकेगा।

कितनी दुःखद बात है कि देश के इतने अमर सपूत के 119वें जन्मदिवस पर हम सब उनके जीवन के अंतिम क्षणों और मौत आदि जैसे विषयों पर चिंतन कर रहे है। ये सब तो भारत की आजादी के बाद ही सुलझ जाना चाहिए था लेकिन एक परिवार के निजी स्वार्थ और देश को अपनी जागीर समझने वालों ने नेताजी जैसे अमर स्वतंत्रता सेनानी के त्याग, निश्चयशक्ति और बलिदान को सदैव ही दबाने की कोशिश की है।

आज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी के 119वें जन्मदिवस पर हम सब उनके त्याग, निश्चयशक्ति तथा बलिदान को शत शत नमन करते हैं।



अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर..........








आज की बुलेटिन में बस इतना ही। आने वाला कल सुनहरा हो। जय हिन्द। जय भारत।।

शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

"जिन्दगी जिन्दा-दिली को जान ऐ रोशन" - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

ठाकुर रोशन सिंह (अंग्रेजी:Roshan Singh), (जन्म:२२ जनवरी १८९२ - मृत्यु:१९ दिसम्बर १९२७) असहयोग आन्दोलन के दौरान उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में हुए गोली-काण्ड में सजा काटकर जैसे ही शान्तिपूर्ण जीवन बिताने घर वापस आये कि हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन में शामिल हो गये। यद्यपि ठाकुर साहब ने काकोरी काण्ड में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया था फिर भी आपके आकर्षक व रौबीले व्यक्तित्व को देखकर काकोरी काण्ड के सूत्रधार पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व उनके सहकारी अशफाक उल्ला खाँ के साथ १९ दिसम्बर १९२७ को फाँसी दे दी गयी। ये तीनों ही क्रान्तिकारी उत्तर प्रदेश के शहीदगढ़ कहे जाने वाले जनपद शाहजहाँपुर के रहने वाले थे। इनमें ठाकुर साहब आयु के लिहाज से सबसे बडे, अनुभवी, दक्ष व अचूक निशानेबाज थे।
 
आज अमर शहीद ठाकुर रोशन सिंह जी की १२४ वीं जयंती के अवसर पर ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब उनको शत शत नमन करते हैं |
सादर आपका
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अब आज्ञा दीजिये ...
 
जय हिन्द !!!

गुरुवार, 21 जनवरी 2016

क्या लिखा जाये, क्या नहीं - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो,
क्या लिखा जाये, क्या नहीं; किस बात पर चिंतन किया जाये और किस बात पर चिंता; किस मुद्दे का सामाजीकरण किया जाये और किसका राजनीतिकरण समझ से परे है. इस असमंजस के बीच स्व-लिखित बुन्देली कविता के साथ आज की बुलेटिन. 

आनंद लेने का प्रयास कीजिये और समाज में नित नए तरीके से पैदा होते/किये जाते विवादों के समाधान खोजने का भी प्रयास करियेगा.

शेष अगली बुलेटिन में....
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अब है कछु करबे की बिरिया,
आँखन से दूर निकर गई निंदिया।

उनके लानै नईंयाँ आफत,
मौज मजे को जीबन काटत,
पीकै घी तीनऊ बिरिया।
अब है कछु करबे की बिरिया॥

अपनई मन की उनको करनै,
सच्ची बात पै कान न धरनै,
फुँफकारत जैसें नाग होए करिया।
अब है कछु करबे की बिरिया॥

हाथी घोड़ा पाले बैठे,
बिना काम कै ठाले बैठे,
इतै पालबो मुश्किल छिरिया।
अब है कछु करबे की बिरिया॥

कर लेयौ लाला अपयें मन कौ,
इक दिना तो मिलहै हमऊ कौ,
तारे गिनहौ तब भरी दुफरिया,
अब है कछु करबे की बिरिया॥

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बुधवार, 20 जनवरी 2016

ब्लॉग बुलेटिन और सीमान्त गाँधी

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान ( जन्म: 6 फ़रवरी, 1890 - मृत्यु: 20 जनवरी, 1988) एक महान राजनेता थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और अपने कार्य और निष्ठा के कारण "सरहदी गांधी" (सीमान्त गांधी), "बाचा ख़ान" तथा "बादशाह ख़ान" के नाम से पुकारे जाने लगे। 20वीं शताब्दी में पख़्तूनों (या पठान; पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान का मुसममान जातीय समूह) के सबसे अग्रणी और करिश्माई नेता थे, जो महात्मा गांधी के अनुयायी बन गए और उन्हें ‘सीमांत गांधी’ कहा जाने लगा। अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ाँ का जन्म एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही अत्यधिक दृढ़ स्वभाव के व्यक्ति हैं, इसलिये अफ़ग़ानों ने उन्हें 'बाचा ख़ान' के रूप में पुकारना प्रारम्भ कर दिया। आपका सीमा प्रान्त के क़बीलों पर अत्यधिक प्रभाव था। गांधी जी के कट्टर अनुयायी होने के कारण ही उनकी 'सीमांत गांधी' की छवि बनी। विनम्र ग़फ़्फ़ार ने सदैव स्वयं को एक 'स्वतंत्रता संघर्ष का सैनिक' मात्र कहा, परन्तु उनके प्रसंशकों ने उन्हें 'बादशाह ख़ान' कह कर पुकारा। गांधी जी भी उन्हें ऐसे ही सम्बोधित करते थे। राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेकर उन्होंने कई बार जेलों में घोर यातनायें झेली हैं। फिर भी वे अपनी मूल संस्कृति से विमुख नहीं हुए। इसी वज़ह से वह भारत के प्रति अत्यधिक स्नेह भाव रखते थे। 
सन 1988 में पाकिस्तान सरकार ने उन्हें पेशावर में उनके घर में नज़रबंद कर दिया गया। 20 जनवरी, 1988 को उनकी मृत्यु हो गयी और उनकी अंतिम इच्छानुसार उन्हें जलालाबाद अफ़ग़ानिस्तान में दफ़नाया गया।


आज खान अब्दुल गफ्फार खान जी की 28वीं पुण्यतिथि पर हिन्दी ब्लॉग जगत और हमारी ब्लॉग बुलेटिन टीम उन्हें शत शत नमन करती है। सादर।।  



अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर..........


मालदा की हिंसा सांप्रदायिक हिंसा नहीं थी: एक रिपोर्ट -

KIC 8462852 : एलीयन सभ्यता ? रहस्य और गहराया!

‘फ़ैशनपरस्त’ से ‘वामपरस्त’ तक

परीक्षक भी फर्जी होते हैं..

क्या पॆड़-पौधों और वनस्पतियों में संवेदनाएँ होती हैं ? / आलेख / गोवर्धन यादव

मिसाल है मंटो की जिंदगी - नंदिता दास

एक छोटी सी कोशिश ..

इंटरनेट पर कंप्यूटर स्क्रीन शेयर करने का तरीका और सॉफ्टवेयर

मिनी दार्जिलिंग: मिरिक

मेरे शब्द जंगल से हैं...

शुक्रिया टि्वटर


आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे, शुभरात्रि। सादर  … अभिनन्दन।।

लेखागार