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गुरुवार, 11 अगस्त 2016

क्रांतिकारी आन्दोलन के प्रथम शहीद खुदीराम बोस को समर्पित ब्लॉग बुलेटिन

खुदीराम बोस 
भारतीय स्वाधीनता संग्राम का इतिहास अनगिनत क्रांतिकारियों के साहसिक कारनामों से दैदीप्यमान है. ऐसे ही क्रांतिकारियों में एक नाम खुदीराम बोस का है. आज 11 अगस्त को भारतीय स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले खुदीराम बोस की पुण्यतिथि है. उनको संगठित क्रांतिकारी आंदोलन का प्रथम शहीद माना जाता है. भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में महज 19 वर्ष की आयु में फाँसी पर चढ़ने वाले खुदीराम बोस शहादत के बाद इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक ख़ास किस्म की धोती बुनने लगे. नौजवान उसी धोती को पहनने लगे जिसकी किनारी पर खुदीराम लिखा हो.

3 दिसंबर 1889 को बंगाल में मिदनापुर ज़िले के हबीबपुर गाँव में जन्मे खुदीराम के माता-पिता का निधन बाल्यावस्था में ही हो गया था. उनका लालन-पालन उनकी बड़ी बहन ने किया था. भारत माता को गुलामी की ज़ंजीर से मुक्त करवाने की लगन में उन्होंने कक्षा नौ के बाद पढ़ाई छोड़ दी और जंग-ए-आज़ादी में कूद पड़े. कलकत्ता के चीफ प्रेंसीडेसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को मारने की योजना क्रान्तिकारियों द्वारा बनाई गई. इसके लिए खुदीराम बोस तथा प्रपुल्ल चाकी को चुना गया. 30 अप्रैल 1908 की शाम किंग्सफोर्ड और उसकी पत्नी क्लब में पहुँचे. उसी रात मिसेज कैनेडी और उसकी बेटी अपनी बग्घी में बैठ क्लब से निकले. खुदीराम बोस और उनके साथी ने उसे किंग्सफोर्ड की बग्घी समझकर उस पर बम फेंक दिया. बग्घी के परखचे उड़ गए और उसमें सवार मां-बेटी दोनों की मौत हो गई. पुलिस उनके पीछे लगी और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया गया. अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल्ल चंद ने खुद को गोली मारकर शहादत दे दी पर खुदीराम पकड़े गए. उन पर हत्या का मुक़दमा चला. उन्होंने अपने बयान में स्वीकार किया कि उन्होंने तो किंग्सफोर्ड को मारने का प्रयास किया था, लेकिन अफ़सोस है कि निर्दोष कैनेडी तथा उनकी बेटी ग़लती से मारे गए.

न्याय की दृष्टि से कितना हास्यास्पद है कि हत्या का मुकदमा केवल पाँच दिन चला. 8 जून, 1908 को उन्हें अदालत में पेश किया गया और 13 जून को उन्हें फाँसी की सज़ा सुनाई गई. 11 अगस्त 1908 को इस वीर क्रांतिकारी को फाँसी पर चढा़ दिया गया. उस युवा नौजवान ने हँसते-हँसते अपना जीवन देश की आज़ादी के लिए न्यौछावर कर दिया. ऐसे वीर बाँकुरों को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए ब्लॉग बुलेटिन परिवार उनके प्रति कृतज्ञ है.

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 चित्र गूगल  छवियों से साभार 

6 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

अमर शहीद खुदीराम बोस जी की १०८ वीं पुण्यतिथि पर उन्हें नमन । बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति ।

कविता रावत ने कहा…

अमर शहीद खुदीराम बोस जी को नमन!
बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

Unknown ने कहा…

नमन उस महान विभूति को

सुज्ञ ने कहा…

बहुत बहुत आभार, कुमारेन्द्र जी

सुज्ञ ने कहा…

बहुत बहुत आभार, कुमारेन्द्र जी

Asha Joglekar ने कहा…

खुदीराम बोस जैसे क्रांतिकारियों पर गर्व है हमें । श्रध्दांजली ।

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