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शुक्रवार, 31 मार्च 2017

ट्रेजडी क्वीन अभिनेत्री के संग लेखिका नाज को नमन करती ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार दोस्तों,
आज मशहूर अभिनेत्री मीना कुमारी की पुण्यतिथि है. आज ही के दिन 31 मार्च 1972 को उनका निधन हो गया था. उनका जन्म 1 अगस्त 1932 को मुंबई के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनके पिता अलीबख़्श एक पारसी थिएटर में काम करते थे और उनकी माँ इक़बाल बेगम एक नर्तकी थीं. परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उनको महज सात वर्ष की उम्र में वर्ष 1939 में बतौर बाल कलाकार विजय भट्ट की फ़िल्म लेदरफेस में काम करने आना पड़ा. 


इसके बाद भी उनका लम्बे समय तक फ़िल्म जगत में संघर्ष जारी रहा. इस बीच वीर घटोत्कच  और श्री गणेश महिमा जैसी फ़िल्में तो आईं पर उन्हें इनसे पहचान नहीं मिली. वर्ष 1952 में उनको विजय भट्ट के निर्देशन में बैजू बावरा में काम करने का मौक़ा मिला. इस फ़िल्म की सफलता के बाद वे बतौर अभिनेत्री फ़िल्म जगत में स्थापित हुईं. इसी वर्ष उनका विवाह फ़िल्म निर्देशक कमाल अमरोही के साथ हो गया. दोनों का वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा और अंततः वर्ष 1964 के बाद दोनों अलग-अलग रहने लगे. मीना कुमारी ने अपने आप को शराब के नशे में डूबो लिया.

उनकी तमाम फिल्मों के बीच कमाल अमरोही की फ़िल्म पाकीज़ा सबसे अलग हटकर है. इस फिल्म के निर्माण में लगभग चौदह वर्ष लग गए. इसी दौरान वे कमाल अमरोही से अलग हुईं मगर उन्होंने फ़िल्म की शूटिंग जारी रखी क्योंकि उनका मानना था कि ऐसी फिल्म में काम करने का मौक़ा बार-बार नहीं मिलता. वर्ष 1972 में जब पाकीज़ा के प्रदर्शित होने पर लोग मीना कुमारी के अभिनय को देख मन्त्रमुग्ध हो गए. यह फ़िल्म आज भी उनके जीवंत अभिनय के लिए याद की जाती है.


कोहिनूर, तमाशा, परिणीता, बंदिश, भीगी रात, सवेरा, चित्रलेखा, बहू बेग़म आदि उनकी कुछ मुख्य फ़िल्में हैं. हिन्दी फ़िल्म जगत में वे ट्रेजेडी क्वीन के रूप में भी जानी जाती हैं.

अभिनेत्री होने के साथ-साथ वे एक अच्छी लेखिका भी थीं. उन्होंने नाज़ उपनाम से अनेक ग़ज़लों की रचना की. जो बाद में तन्हा चाँद शीर्षक से प्रकाशित हुआ. इसके अलावा I write, I Recite के नाम से एक संग्रह सामने आया है, जिसमें मीना कुमारी ने अपनी लिखी ग़ज़लों को अपनी आवाज़ दी है.

आज उनकी पुण्यतिथि पर उनको नमन.

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गुरुवार, 30 मार्च 2017

ब्लॉग बुलेटिन और देविका रानी

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
देविका रानी
देविका रानी (अंग्रेज़ी: Devika Rani) (जन्म- 30 मार्च, 1908 विशाखापत्तनम - मृत्यु- 9 मार्च, 1994 बैंगलोर) भारतीय रजतपट की पहली स्थापित नायिका जो अपने युग से कहीं आगे की सोच रखने वाली अभिनेत्री थीं और उन्होंने अपनी फ़िल्मों के माध्यम से जर्जर सामाजिक रूढ़ियों और मान्यताओं को चुनौती देते हुए नए मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं को स्थापित करने का काम किया था। कवि शिरोमणि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के ख़ानदान से ताल्लुक रखने वाली देविका ने दस वर्ष के अपने फ़िल्मी कैरियर में कुल 15 फ़िल्मों में ही काम किया, लेकिन उनकी हर फ़िल्म को क्लासिक का दर्जा हासिल है। विषय की गहराई और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी उनकी फ़िल्मों ने अंतरराष्ट्रीय और भारतीय फ़िल्म जगत में नए मूल्य और मानदंड स्थापित किए। हिंदी फ़िल्मों की पहली स्वप्न सुंदरी और ड्रैगन लेडी जैसे विशेषणों से अलंकृत देविका को उनकी ख़ूबसूरती, शालीनता धाराप्रवाह अंग्रेज़ी और अभिनय कौशल के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जितनी लोकप्रियता और सराहना मिली उतनी कम ही अभिनेत्रियों को नसीब हो पाती है।



आज देविका रानी जी के 109वें जन्म दिवस पर हम सब उनके अभिनय को स्मरण करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते है। सादर।। 


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर...











आज की बुलेटिन में सिर्फ इतना ही कल फिर मिलेंगे, तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

बुधवार, 29 मार्च 2017

ब्लॉग बुलेटिन - १६० वर्ष पहले आज भड़की थी प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की ज्वाला

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
मंगल पाण्डेय 
आज २९ मार्च है ... आज ही के दिन सन १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रदूत मंगल पाण्डेय ने विद्रोह की शुरुआत की थी। 

जब गाय व सुअर कि चर्बी लगे कारतूस इस्तमाल मे लेने का आदेश हुआ तब बैरकपुर छावनी में बंगाल नेटिव इन्फैण्ट्री की ३४वीं रेजीमेण्ट में सिपाही मंगल पाण्डेय ने मना करते हुए विरोध जताया इसके परिणाम स्वरूप उनके हथियार छीन लिये जाने व वर्दी उतार लेने का फौजी हुक्म हुआ। पूरा लेख यहाँ पढ़े ... ब्लॉग - बुरा भला ~ १६० वर्ष पहले आज भड़की थी प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की ज्वाला


भारत के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इस अग्रदूत अमर शहीद मंगल पाण्डेय जी को हम सब शत शत नमन करते है।।


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर...














आज की बुलेटिन में सिर्फ इतना ही कल फिर मिलेंगे, तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

मंगलवार, 28 मार्च 2017

विश्वास




मिटटी के कण में भी मिल जाता है ब्रह्माण्ड 
कृष्ण मोर पंख में दिखाई दे जाती है जीवन यात्रा 
उधो की हार पर श्रेष्ठता का आभास होता है  
हार के आगे की जीत पर अटूट विश्वास होता है !




माल्योधरा विलाप - तिरछी नज़र - blogger

"भावनायें बनकर"

हम पहचान खो रहे हैं साथी
हम उतना ही सुनते हैं
जितने हमारे अपनों की आवाजें हैं
हम वही देखते हैं 
जो हम चाहते हैं हमारे लिए अच्छा है
हम अपनी ही थाली पर चील सा झपटते हैं
हम अपने आस पास उठाते रहते है दीवारें
हम सुरक्षित होने की हद तक
असुरक्षित रहते हैं
हम रोते हैं तो दबा लेते हैं अपना मुंह
हम मुस्कराहट को चिपका कर रखते हैं
जाते हुए बाहर
हम बच्चो के किताबो के बीच
गुलाब नही ..सूखे दरख्तों की जली राख रखते हैं
हम जिंदगी का कमाल का हिसाब रखते हैं
हम आँगन में रोप आये है कटीले पौधों की बाड़ें
जानवर की शकले बदली हुई है
मिजाज ज़माने का बदल गया है
हम देश की सीमा पर खड़े हो कर
गाते हैं चैन से सोने के गीत
हम धरती पर आखिरी बार
आदमी के रूप में पहचाने जायेंगे
हम असली रंग के नही रहे अब
हमारी फसलें बर्बाद हो चुकी है
मुरदों के कब्र पर सरकार की व्यवस्था चल रही है
ये देश को बचाने के लिए
उसे एक बार और झोंक देंगे आग में
इनके पास आग से बचने के कपडें हैं
हमारी आँख से धरती आखिरी बार देखी जायेगी
जानवरों की स्लेट पर धरती का चित्र है
वो सब मुंह में इतिहास को चबा रहे हैं ...

सोमवार, 27 मार्च 2017

विश्व रंगमंच दिवस और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
विश्व रंगमंच दिवस
विश्व रंगमंच दिवस की स्थापना 1961 में इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट (International Theatre Institute) द्वारा की गई थी। रंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओं और समूहों द्वारा भी इस दिन को विशेष दिवस के रूप में आयोजित किया जाता है। इस दिवस का एक महत्त्वपूर्ण आयोजन अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश है, जो विश्व के किसी जाने माने रंगकर्मी द्वारा रंगमंच तथा शांति की संस्कृति विषय पर उसके विचारों को व्यक्त करता है। 1962 में पहला अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश फ्रांस की जीन काक्टे ने दिया था। वर्ष 2002 में यह संदेश भारत के प्रसिद्ध रंगकर्मी गिरीश कर्नाड द्वारा दिया गया था।

जीवन के रंगमंच पर रंगमंच की मूल विधाओं का सीधा नाता है ,वे आईने की रूप में समाज की अभिवायाकतियो को व्यक्त करती है, सभ्यता के विकास से रंगमंच की मूल विधाओ में परिवर्तन स्वभाविक है। किन्तु लोकरंग व लोकजीवन की वास्तविकता से दूर इन दिनों आधुनिक माध्यमों यथा टेलीविज़न, सिनेमा और वेबमंच ने सांस्कृतिक गिरावट व व्यसायिकता को मूल मंत्र बना लिया है जिससे मूल विधाएँ और उनके प्रस्तुतिकारों को वह प्रतिसाद नहीं मिल पाया है जिसके वो हक़दार हैं। मानवता की सेवा में रंगमंच की असीम क्षमता समाज का सच्चा प्रतिबिम्बन है। रंगमंच शान्ति और सामंजस्य की स्थापना में एक ताकतवर औज़ार है। लोगों की आत्म-छवि की पुर्नरचना अनुभव प्रस्तुत करता है, सामूहिक विचारों की प्रसरण में, समाज की शान्ति और सामंजस्य का माध्यम है, यह स्वतः स्फूर्त मानवीय, कम खर्चीला और अधिक सशक्त विकल्प है व समाज का वह आईना है जिसमें सच कहने का साहस है। वह मनोरंजन के साथ शिक्षा भी देता है। भारत में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटकों व मंडली से देश प्रेम तथा नवजागरण की चेतना ने तत्कालीन समाज में उद्भूत की, जो आज भी अविरल है। 'अन्धेर नगरी' जैसा नाटक कई बार मंचित होने के बाद भी उतना ही उत्साह देता है। कालिदास रचित अभिज्ञान शाकुंतलम्, मोहन राकेश का आषाढ़ का एक दिन, मोलियर का माइजर, धर्मवीर भारती का 'अंधायुग', विजय तेंदुलकर का 'घासीराम कोतवाल' श्रेष्ठ नाटकों की श्रेणी में हैं। भारत में नाटकों की शुरूआत नील दर्पण, चाकर दर्पण, गायकवाड और गजानंद एण्ड द प्रिंस नाटकों के साथ इस विधा ने रंग पकड़ा।



अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर...














आज की बुलेटिन में सिर्फ इतना ही कल फिर मिलेंगे, तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

रविवार, 26 मार्च 2017

महादेवी वर्मा और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
महादेवी वर्मा (अंग्रेज़ी:Mahadevi Verma, जन्म: 26 मार्च, 1907, फ़र्रुख़ाबाद - मृत्यु: 11 सितम्बर, 1987, प्रयाग) हिन्दी भाषा की प्रख्यात कवयित्री हैं। महादेवी वर्मा की गिनती हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ सुमित्रानन्दन पन्त, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के साथ की जाती है। आधुनिक हिन्दी कविता में महादेवी वर्मा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरीं। महादेवी वर्मा ने खड़ी बोली हिन्दी को कोमलता और मधुरता से संसिक्त कर सहज मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का द्वार खोला, विरह को दीपशिखा का गौरव दिया, व्यष्टिमूलक मानवतावादी काव्य के चिंतन को प्रतिष्ठापित किया। महादेवी वर्मा के गीतों का नाद-सौंदर्य, पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है।

(साभार : http://bharatdiscovery.org/india/महादेवी_वर्मा)

आज महान कवियित्री महादेवी वर्मा जी की 110वीं जयंती पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते है। सादर।।

अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर...

मुख्य मंत्री योगी की प्राथमिकताएं

गरमी की गरमाहट

EVM का पहली बार कब इस्तेमाल हुआ?

सोसल मीडिया की मजदूरी

नीला आकाश सफेद बादल

दृष्टिगत प्रेम' प्रेम नहीं था

प्राकृतिक अभियंता

किसान का पैगाम


आज की बुलेटिन में सिर्फ इतना ही कल फिर मिलेंगे, तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

शनिवार, 25 मार्च 2017

खुफिया रेडियो चलाने वाली गांधीवादी क्रांतिकारी - उषा मेहता

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

भारत छोड़ो आंदोलन के समय खुफिया कांग्रेस रेडियो चलाने के कारण पूरे देश में विख्यात हुई उषा मेहता ने आजादी के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी और आजादी के बाद वह गांधीवादी दर्शन के अनुरूप महिलाओं के उत्थान के लिए प्रयासरत रही। 
उषा ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अपने सहयोगियों के साथ 14 अगस्त 1942 को सीक्रेट कांग्रेस रेडियो की शुरूआत की थी। इस रेडियो से पहला प्रसारण भी उषा की आवाज में हुआ था। यह रेडियो लगभग हर दिन अपनी जगह बदलता था, ताकि अंग्रेज अधिकारी उसे पकड़ न सकें। इस खुफिया रेडियो को डा. राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन सहित कई प्रमुख नेताओं ने सहयोग दिया। रेडियो पर महात्मा गांधी सहित देश के प्रमुख नेताओं के रिकार्ड किए गए संदेश बजाए जाते थे।
तीन माह तक प्रसारण के बाद अंतत: अंग्रेज सरकार ने उषा और उनके सहयोगियों को पकड़ा लिया और उन्हें जेल की सजा दी गई। गांधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव सुरेन्द्र कुमार के अनुसार उषा एक जुझारु स्वतंत्रता सेनानी थी जिन्होंने आजादी के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। वह बचपन से ही गांधीवादी विचारों से प्रभावित थी और उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए कई कार्यक्रमों में बेहद रुचि से कार्य किया।
आजादी के बाद उषा मेहता गांधीवादी विचारों को आगे बढ़ाने विशेषकर महिलाओं से जुडे़ कार्यक्रमों में काफी सक्रिय रही। उन्हें गांधी स्मारक निधि की अध्यक्ष चुना गया और वह गांधी शांति प्रतिष्ठान की सदस्य भी थीं। 25 मार्च 1920 को सूरत के एक गांव में जन्मी उषा का महात्मा गांधी से परिचय मात्र पांच वर्ष की उम्र में ही हो गया था। कुछ समय बाद राष्ट्रपिता ने उनके गांव के समीप एक शिविर का आयोजन किया जिससे उन्हें बापू को समझने का और मौका मिला। इसके बाद उन्होंने खादी पहनने और आजादी के आंदोलन में भाग लेने का प्रण किया।
उन्होंने बंबई विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातक डिग्री ली और कानून की पढ़ाई के दौरान वह भारत छोड़ो आंदोलन में पूरी तरह से सामाजिक जीवन में उतर गई। सीक्रेट कांग्रेस रेडियो चलाने के कारण उन्हें चार साल की जेल हुई। जेल में उनका स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। बाद में 1946 में रिहा किया गया।
आजादी के बाद उन्होंने गांधी के सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों पर पीएचडी की और बंबई विश्वविद्यालय में अध्यापन शुरू किया। बाद में वह नागरिक शास्त्र एवं राजनीति विभाग की प्रमुख बनी। इसी के साथ वह विभिन्न गांधीवादी संस्थाओं से जुड़ी रही। भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया। उषा मेहता का निधन 11 अगस्त 2000 को हुआ।

आज उषा मेहता जी की ९७ वीं जयंती के अवसर पर ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं | 

सादर आपका
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हाय रे..मुझसे रोटियां नहीं फुलती हैं....

पेड़ों के नीचे "पवित्र कूड़े" का ढेर

शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (९)

तुम्हारी भौजाई ने घुघुरी बनाया है, आ जाना

मेरी १० वीं वर्षगांठ 

निजता को जो पा जाये

जिन्दगी कितनी ही जाने इक कहानी हो गयीं

हिन्दी सिनेमा में होली के रंग

क्या करें सर ....पढ़ने का मूड नही हैं.....

मन के पंछी कहीं दूर चल

तालीस पत्र के गुण फायदे उपयोग 

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अब आज्ञा दीजिये ... 

जय हिन्द !!! 

शुक्रवार, 24 मार्च 2017

पेन्सिल,रबर और ज़िन्दगी

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

कभी आप ने गौर किया कि ... 


हम गलतियाँ करना तो उस दिन से शुरू कर देते है जिस दिन से पेन्सिल के साथ "रबर" भी दे दी जाती है !!

पर काश कि जीवन की हर गलती को इस रबर से मिटा कर सुधारा जा सकता ... काश !!

ज़रा सोचिएगा !!

सादर आपका
शिवम् मिश्रा  

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हिन्दी भाषा में रोमियो शब्द के तीन आशय होते हैं-हिन्दी व्यंग्य चिंत्तन

मसख़रों का ज़माना ...

न जाने कौन सी तकलीफ लेकर दौड़ता होगा -सतीश सक्सेना

{३३८} डगर जीवन की

परिप्रेक्ष्य : महाश्वेता देवी : गरिमा श्रीवास्तव

हारे हुए नेताजी से एक्सक्लूसिव बातचीत !

जागो, हथेली के बाहर एक दुनिया और भी है!!!

हमारे सहजीवन की पहली सब से बड़ी खुशी

प्यार किया है, जिन्दगी भर निभायेंगे !!!

" प्यार की प्रकृति ........."

दुनियावालों...मैंने चोरी की है....

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!! 

गुरुवार, 23 मार्च 2017

क्या वीरों की आज कूच करने की तैयारी है? ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो,
आज 23 मार्च, शहीद दिवस. देश की आज़ादी के लिए तीन युवा बेटे भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को आज ही के दिन अंग्रेजी हुकूमत ने फाँसी दे दी थी. तीनों वीर पुत्रों को श्रद्धा-सुमन अर्पित हैं.


इन तीन शहीदों के बारे में शायद ही ऐसा कुछ हो जो कोई न जानता हो. उनकी शहादत, उनकी वीरता, देश के प्रति उनका ज़ज्बा, आज़ादी के प्रति उनकी लगन, उनकी वैचारिकता आदि-आदि आज सबके सामने है, सबके बीच है.

बहुत कुछ न कहते हुए श्रीकृष्ण सरल द्वारा रचित ग्रन्थ क्रांति गंगा से उनकी रचना के चंद पद आपके समक्ष प्रस्तुत हैं. यह कविता उन्होंने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को श्रद्धांजलिस्वरूप लिखी थी.

आज लग रहा कैसा जी को कैसी आज घुटन है
दिल बैठा सा जाता है, हर साँस आज उन्मन है
बुझे बुझे मन पर ये कैसी बोझिलता भारी है
क्या वीरों की आज कूच करने की तैयारी है?

हाँ सचमुच ही तैयारी यह, आज कूच की बेला
माँ के तीन लाल जाएँगे, भगत न एक अकेला
मातृभूमि पर अर्पित होंगे, तीन फूल ये पावन,
यह उनका त्योहार सुहावन, यह दिन उन्हें सुहावन।

फाँसी की कोठरी बनी अब इन्हें रंगशाला है
झूम झूम सहगान हो रहा, मन क्या मतवाला है।
भगत गा रहा आज चले हम पहन वसंती चोला
जिसे पहन कर वीर शिवा ने माँ का बंधन खोला।

झन झन झन बज रहीं बेड़ियाँ, ताल दे रहीं स्वर में
झूम रहे सुखदेव राजगुरु भी हैं आज लहर में।
नाच नाच उठते ऊपर दोनों हाथ उठाकर,
स्वर में ताल मिलाते, पैरों की बेड़ी खनकाकर।

पुनः वही आलाप, रंगें हम आज वसंती चोला
जिसे पहन राणा प्रताप वीरों की वाणी बोला।
वही वसंती चोला हम भी आज खुशी से पहने,
लपटें बन जातीं जिसके हित भारत की माँ बहनें।

उसी रंग में अपने मन को रँग रँग कर हम झूमें,
हम परवाने बलिदानों की अमर शिखाएँ चूमें।
हमें वसंती चोला माँ तू स्वयं आज पहना दे,
तू अपने हाथों से हमको रण के लिए सजा दे।

अंत में शहीद भगत सिंह द्वारा अकसर गुनगुनाये जाने वाले शेर के साथ आज की बुलेटिन प्रस्तुत है.....
जबसे सुना है मरने का नाम जिन्दगी है
सर से कफन लपेटे कातिल को ढूँढ़ते हैं।।

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बुधवार, 22 मार्च 2017

विश्व जल दिवस और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
विश्व जल दिवस प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को मनाया जाता है। आज विश्व में जल का संकट कोने-कोने में व्याप्त है। लगभग हर क्षेत्र में विकास हो रहा है। दुनिया औद्योगीकरण की राह पर चल रही है, किंतु स्वच्छ और रोग रहित जल मिल पाना कठिन हो रहा है। विश्व भर में साफ़ जल की अनुपलब्धता के चलते ही जल जनित रोग महामारी का रूप ले रहे हैं। कहीं-कहीं तो यह भी सुनने में आता है कि अगला विश्व युद्ध जल को लेकर होगा। इंसान जल की महत्ता को लगातार भूलता गया और उसे बर्बाद करता रहा, जिसके फलस्वरूप आज जल संकट सबके सामने है। विश्व के हर नागरिक को पानी की महत्ता से अवगत कराने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र ने "विश्व जल दिवस" मनाने की शुरुआत की थी।

विश्व जल दिवस का प्रारम्भ

'विश्व जल दिवस' मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1992 के अपने अधिवेशन में 22 मार्च को की थी। 'विश्व जल दिवस' की अंतरराष्ट्रीय पहल 'रियो डि जेनेरियो' में 1992 में आयोजित 'पर्यावरण तथा विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन' (यूएनसीईडी) में की गई थी, जिस पर सर्वप्रथम 1993 को पहली बार 22 मार्च के दिन पूरे विश्व में 'जल दिवस' के मौके पर जल के संरक्षण और रख-रखाव पर जागरुकता फैलाने का कार्य किया गया।

संकल्प का दिन

'22 मार्च' यानी कि 'विश्व जल दिवस', पानी बचाने के संकल्प का दिन है। यह दिन जल के महत्व को जानने का और पानी के संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने का दिन है। आँकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। प्रकृति इंसान को जीवनदायी संपदा जल एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, इंसान भी इस चक्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। चक्र को गतिमान रखना प्रत्येक व्यक्ति की ज़िम्मेदारी है। इस चक्र के थमने का अर्थ है, जीवन का थम जाना। प्रकृति के ख़ज़ाने से जितना पानी हम लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है। हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते। अतः प्राकृतिक संसाधनों को दूषित नहीं होने देना चाहिए और पानी को व्यर्थ होने से भी बचाना चाहिए। 22 मार्च का दिन यह प्रण लेने का दिन है कि हर व्यक्ति को पानी बचाना है।

( साभार : http://bharatdiscovery.org/india/विश्व_जल_दिवस )


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर.....

मोबाइल पर निर्भर ज़िंदगी

नेट न्युट्र्लटी के लिए खतरा बनकर आया ऐड ब्लॉकिंग

आपकी आत्मा में किसी कला के लिए स्थान नहीं है, तो आप अपाहिज हैं : जीवन सिंह

गंगा-यमुना बचाने आया फैसला एक आदिवासी सोच से उपजा हुआ

ब्रह्मांड मे कितने आयाम ?

इसे बनाते मुसलमान हैं और स्वर फूंकते हैं हिन्दू

मोदी नहीं योगी मॉडल चाहिये ?

विकास की राह चलने से बदलेगी छवि

उधार लेने वाले..

बड़गूजर बनाम राघव द्वंद्व

"मास्टर दा" सूर्य सेन की १२३ वीं जयंती

ओ रे मन !

खुशी का मन्त्र

बेशरम होता है इसीलिये बेशर्मी से कह भी रहा होता है

यूपी में रहना है तो...


आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

मंगलवार, 21 मार्च 2017

रोना क्यूँ ?




शारीरिक संरचना की स्थिति किसी शिक्षा से नहीं बदल सकती 
अपने अंतस को दृढ करना है 
कि - गिरने से हार नहीं होती 
बिना गिरे संकल्प नहीं उभरता 
स्थापित होने से पहले खौफनाक तूफानों से जूझना होता है 
मन की मजबूती नए दरवाज़े खोलती है
तो रोना क्यूँ ? 

सोमवार, 20 मार्च 2017

विश्व गौरैया दिवस और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
आज विश्व गौरैया दिवस है। विश्व गौरैया दिवस पहली बार वर्ष 2010 ई. में मनाया गया था। यह दिवस प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को पूरी दुनिया में गौरैया पक्षी के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है।

जैसा कि आप सबको विदित है की गौरैया आजकल अपने अस्तित्व के लिए हम मनुष्यों और अपने आस पास के वातावरण से काफी जद्दोजहद कर रही है। ऐसे समय में हमें इन पक्षियों के लिए वातावरण को इनके प्रति अनुकूल बनाने में सहायता प्रदान करनी चाहिए। तभी ये हमारे बीच चह चहायेंगे। गौरैया की घटती संख्या के कुछ मुख्य कारण है - भोजन और जल की कमी, घोसलों के लिए उचित स्थानों की कमी तथा तेज़ी से कटते पेड़ - पौधे। गौरैया के बच्चों का भोजन शुरूआती दस - पन्द्रह दिनों में सिर्फ कीड़े - मकोड़े ही होते है। लेकिन आजकल हम लोग खेतों से लेकर अपने गमले के पेड़ - पौधों में भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते है जिससे ना तो पौधों को कीड़े लगते है और ना ही इस पक्षी का समुचित भोजन पनप पाता है। इसलिए गौरैया समेत दुनिया भर के हजारों पक्षी हमसे रूठ चुके है और शायद वो लगभग विलुप्त हो चुके है या फिर किसी कोने में अपनी अन्तिम सांसे गिन रहे है।

हम मनुष्यों को गौरैया के लिए कुछ ना कुछ तो करना ही होगा वरना यह भी मॉरीशस के डोडो पक्षी और गिद्ध की तरह पूरी तरह से विलुप्त हो जायेंगे। इसलिए हम सबको मिलकर गौरैया का संरक्षण करना चाहिए।


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर.....

साथी थी गौरैया...

बच्चों से चर्चा

अब राष्ट्रपति-चुनाव की रस्साकशी

लालसा बढ़ी, ज्यों-ज्यों स्थापित हुए

मणिशंकर अय्यर के महागठबंधन की कल्पना और योगी सरकार में मंत्री मोहसिन रजा

मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ (योग से राजयोग)

राधानगर बीच @ हैवलॉक द्वीप

कौन यहाँ किसकी खातिर है

आज और बस आज ...

मौसम चुनावी


आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

रविवार, 19 मार्च 2017

राजनीति का ये पक्ष गायब क्यों : ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार मित्रो,
आख़िरकार उत्तर प्रदेश में सरकार बन गई. आज शपथ ग्रहण कार्यक्रम भी संपन्न हो गया. हिन्दुत्वादी छवि रखने वाले योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाये गए. उनके साथ दो उप-मुख्यमंत्री भी बनाये गए. इसका सभी लोग अपने-अपने स्तर पर अपना-अपना आकलन कर रहे हैं. नए मुख्यमंत्री के लिए आने वाला समय काफी कठिन साबित होने वाला है, जो यकीनन उनकी परीक्षा लेगा. एक तरफ जहाँ राम मंदिर निर्माण मुद्दा सामने आएगा वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सबका साथ, सबका विकास को व्यावहारिक रूप से लागू करना भी होगा. ये तो आने वाला समय बताएगा कि योगी और उनका मंत्रिमंडल इसके अलावा अन्य मुद्दों पर कितना खरा उतरता है किन्तु आज शपथ ग्रहण पश्चात् मंच पर जो दृश्य उभर कर सामने आया वो व्यापक सन्देश देता है बशर्ते उस सन्देश को पूर्वाग्रह-रहित होकर देखा-समझा जाये.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (मध्य में) बाँए उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और दांए उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा 

लखनऊ में स्मृति उपवन में संपन्न शपथ ग्रहण समारोह के बाद मंच पर एक दूसरे से अभिवादन की श्रंखला में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव जी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से बड़ी ही गर्मजोशी से मिले. मिलने के साथ-साथ उन्होने मोदी जी के कान में कुछ कहा. इसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह द्वारा इशारा करके उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बुलाकर नरेन्द्र मोदी जी से मिलने का इशारा किया. अखिलेश ने मुस्कुराकर मोदी जी से हाथ मिलाया साथ ही मोदी जी ने भी पूरे स्नेह से अखिलेश जी के कंधे को देर तक थपथपाया. इसी दौरान मुलायम सिंह ने भी हँसकर अखिलेश की ओर इशारा करते हुए कुछ कहा. पूरे चुनाव भर एक दूसरे के लिए अत्यधिक कटु शब्दों, वाक्यों, बयानों का इस्तेमाल करने वाले ये नेता आपस में किस तरह बिना किसी मनमुटाव के मिले ये सीखने वाली बात है. 


ये बातें ख़ास तौर से उन लोगों को सीखनी चाहिए जो राजनीति में दूर तक जाना चाहते हैं; जो जिला, तहसील, ब्लॉक, नगर की राजनीति करने में लगे हैं. ऐसे लोग जरा-जरा सी बात पर आपसी रंजिश निभाने लगते हैं. आपसी कटुता इस कदर बढ़ जाती है कि हत्याएँ तक हो जाती हैं. स्पष्ट है कि ये राजनीति नहीं है. समझना-सोचना-सीखना होगा कि जबकि राष्ट्रीय स्तर पर इन बड़े नेताओं में ऐसी कटुता नहीं दिखाई देती तो जरा-जरा से पद के लिए, छोटे-छोटे लाभ के लिए आपस में छोटे नेताओं में वैर-भाव क्यों पनप जाता है?

बहरहाल, उत्तर प्रदेश की नई सरकार को बधाई. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्रिमंडल को बधाई, शुभकामनायें कि उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश के रूप में अपनी पहचान बनाये.

लीजिये, आज की बुलेटिन आपके समक्ष प्रस्तुत है.

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शनिवार, 18 मार्च 2017

यूपी का माफ़िया राज और नए मुख्यमंत्री

सुनने में आया कि उत्तर प्रदेश में लाखों विद्यार्थी परीक्षा नहीं देंगे क्योंकि उन्होंने परीक्षा की तैयारी ही नहीं की और नक़ल कॉन्ट्रैक्टर के जरिए परीक्षा पास होने का सपना पाल रखा था। अब सरकार बदलते ही सरकारी मशीनरी के केंद्र के हाथ में है सो सीधे जेल जाने का डर भी सताता होगा। इस मुद्दे को मैं सामाजिक मानता हूँ और बानवे में सरकार गिरने के बाद के चुनाव में राम लहर पर सवार भाजपा की सरकार सिर्फ इसी शिगूफे के कारण दुबारा सत्ता में नहीं आ पाई। मुलायम सिंह का चुनावी पैंतरा और मुस्लिम यादव समीकरण के कारण पूरी सोशल इंजीनियरिंग बिगड़ गयी। इस बार उत्तर प्रदेश ने चुनाव के बाद जब यह साफ़ किया कि वह आखिर बिहार से बेहतर और अलग क्यों है - इससे बेहतर क्या होगा कि जनता स्वयं को जातिवादी राजनीति से ऊपर निकलते हुए विकास के नाम पर वोट दे! 

बहरहाल नक़ल विरोधी अध्यादेश की बात करते हैं तो अब इसे क़ानून बनाने में कोई अड़चन न होगी। विधान परिषद में भाजपा ही नहीं किसी भी दल को बहुमत नहीं है सो देखते हैं कैसी स्थिति बनती है। यकीनी तौर पर पढ़ाई, शिक्षा को माफिया से निकालना होगा, नक़ल माफिया हैं... पूरा तंत्र है जो नेता मंत्री तक फल-फूल गया है। सरकार ही नहीं बाबूओं की पूरी फ़ौज बदलनी होगी। व्यापम को लेकर छाती पीटने वाले लोगों को अब "यादव भर्ती" घोटाले के लिए तैयार रहना चाहिए - अब सवाल किए जाएंगे कि आखिर हर थाने में यादव, अस्सी में छप्पन एसडीएम यादव कैसे। टोल माफिया, रेत माफिया, नक़ल माफिया, दारु माफिया.... लिस्ट बड़ी लंबी है। 

बहरहाल जो भी हो लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने जा रहे योगी आदित्यनाथ के लिए चुनौती गंभीर होगी। हमारी तरफ से मोदी और उनकी पूरी टीम को शुभकामनाएं, यह लोकतंत्र का एक नया दौर है, मोदी का दौर है.....  

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